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पद्यानन्द ]
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[ बलदेव उपाध्याय
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संपादन किया है । मागधम् (संस्कृतशोधपत्र ) जैन सिद्धान्तभास्कर ( हिन्दी शोधपत्र ) जैन एण्टीक्केटी एवं भारती जैन साहित्य - परिवेशन के आप संपादक हैं ।
पद्मानन्द - पौराणिक शैली में रचित संस्कृत का प्रसिद्ध महाकाव्य जिसके प्रणेता जैनकवि अमरचन्द्रसूरि हैं [ दे० अमरचन्द्रसूरि ]। 'पद्यानन्द' कवि के अन्य महाकाव्य 'बाल महाभारत' की भांति 'वीराङ्क' महाकाव्य है । इसमें प्रसिद्ध जैन तीर्थंकर ऋषभदेव का चरित १९ सर्गों में वर्णित है तथा छन्दों की संख्या ६३८१ है । इस ग्रन्थ की रचना हेमचन्द्रसूरि विरचित 'त्रिषष्टिशलाकासत्पुरुषचरित्र' के आधार पर हुई है। स्वयं इस तथ्य की स्वीकारोक्ति कवि ने की है-मया श्रीहेमसूरीणां त्रिषष्टिचरितक्रमः । यूथप्रभोरिभस्याध्वा कलमेनेव सेव्यते ॥ १९।६०-६१ । 'पद्मानन्द' में पौराणिक महाकाव्य के सभी तत्त्व विद्यमान हैं । इसकी कथावस्तु प्रसिद्ध जैन तीर्थंकर ऋषभदेव से सम्बद्ध है जो धीरप्रशान्त गुण समन्वित हैं । यह ग्रन्थ शान्तरसपर्यंवसायी है और शृंगार, करुण, वीर आदि अंगरस के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। महाकाव्य के अन्तर्गत कवि ने षड् ऋतु, नगर, अर्णव, शैल, मन्त्री, दूत, पुत्रोत्सव, सूर्योदय एवं प्रयाण आदि का यथोचित वर्णन किया है। इसमें ऋषभदेव के तेरह भवों का वर्णन है तथा कवि स्वधर्मप्रशंसा एवं अन्य मतों के खण्डन में भी प्रवृत्त हुआ है। तृतीय सगं में मन्त्री स्वयं बुद्ध द्वारा चार्वाक, बौद्ध एवं शांकर मत का खण्डन कर जैनधर्म की सर्वोच्चता प्रतिपादित की गयी । इसकी भाषा प्रसादगुणयुक्त एवं असमस्त पदावली से गुंफित हैं किन्तु युद्ध के प्रसंग में भाषा ओजगुणयुक्त हो जाती है ।
परमेश्वर झा - [ १५५६-१९२४ ई० ] ये दरभंगा ( बिहार ) जिले के तरौनी नामक ग्राम के निवासी थे । इसके पिता का नाम पूर्णनाथ झा था । इन्होंने क्वींस कॉलेज, वाराणसी में अध्ययन किया था । इन्हें 'वैयाकरणकेसरी' तथा 'कर्मकाण्डोद्धारक' प्रभृति सम्मानित उपाधियाँ प्राप्त हुई थीं तथा सरकार की ओर से ( १९१४ ई० में ) महामहोपाध्याय की उपाधि भी मिली थी । इन्होंने कई ग्रभ्थों की रचना की है(१) महिषासुरवधम् ( नाटक ), ( २ ) वाताह्वान ( काव्य ), ( ३ ) कुसुमकलिका (आख्यायिका ), ( ४ ) यक्षसमागम (खण्डकाव्य), (५) ऋतुवर्णन काव्य, (६) मिथिलेश प्रशस्ति, (७) परमेश्वरकोष । नवकिसलयदम्भाक्षिप्त- सिन्दूरमुष्टिः प्रतिनवति लक्ष्म्याक्रीड्य होल्युत्सवेऽसी । कमलदलमिषेणोत्कीर्यं सोवीरमभ्रं सरसिकवि सहायः स्नाति किसिद्धसन्तः ॥ दे० आधुनिक संस्कृत साहित्य - डॉ हीरालाल शुक्ल
बलदेव उपाध्याय - जन्म आश्विन शुक्ल द्वितीया, सं० १९५६ ( १०।१० १८९९ ई० ) । बलिया जिले ( उत्तर प्रदेश ) के अन्तर्गत सोनवरसा नामक ग्राम के निवासी । पिता का नाम पं० रामसुचित उपाध्याय । ११२२ ई० में संस्कृत एम० ए० की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में प्रथम ( हिन्दू विश्वविद्यालय ) । साहित्यचायं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीणं । हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी में ३८ वर्षों तक अध्यापन और रीडर पद से १९६० ई० में अवकाश ग्रहण । पुनः संस्कृत विश्वविद्यालय (वाराणसी) में दो वर्षों तक पुराणेतिहास विभाग के अध्यक्ष तथा चार वर्षों तक वहीं शोधप्रतिष्ठान
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