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नरनायणानन्द ]
[ नरनारायणानन्द
तथा उनके संन्यास ग्रहण की घटनायें उल्लिखित हैं। अष्टम बिन्दु में महर्षि दयानन्द द्वारा हरिद्वार तथा उत्तराखण्ड के भ्रमण का वर्णन है। नवम बिन्दु में प्राकृतिक सौन्दर्य एवं महाकाव्योचित ऋतु-वर्णन का निदर्शन हुमा है। दशम बिन्दु में ऋषि द्वारा नर्मदा स्रोत का अन्वेषण एवं अन्तिम बिन्दु में दण्डी विरजानन्द पाठशाला में स्वामी जी के अध्ययन का वर्णन हुआ है। इस महाकाव्य की भाषा प्रसादगुणमयी एवं अलंकार से पूर्ण है। इसमें सर्वत्र अनुप्रास एवं यमक अलंकारों का चमत्कारपूर्ण संगुंफन हुआ है । यत्र-तत्र कवि ने सुन्दर सूक्तियों का भी प्रयोग किया है । वसन्त ऋतु का मनोरम चित्र देखिए-नानारसास्वादनायासशीला फुलप्रसूनवजासत्तिलीला । गुरुजद्विरेफावली कापि धीरं कत्तुं वसन्तोद्भवसज्जितेन ॥ ९।१७।
आधारग्रन्थ-ऋषि दयानन्द और आर्य समाज की संस्कृत साहित्य को देनडॉ० भवानीलाल भारतीय ।
नरनारायणानन्द-संस्कृत का प्रसिद्ध शास्त्रीय महाकाव्य जिसमें महाभारत की कथा के आधार पर अर्जुन तथा कृष्ण की मैत्री एवं सुभद्राहरण की घटना का ७४० श्लोकों एवं १६ सर्गों में वर्णन है। इसके रचयिता जैन कवि वस्तुपाल हैं [दि० वस्तुपाल] । ग्रन्थ के अन्तिम सगं में प्रशस्ति है जिसमें कवि ने अपनी.वंश-परम्परा एवं गुरु का परिचय प्रस्तुत किया है। प्रथम सर्ग में समुद्र के मध्य स्थित द्वारवती नगरी एवं श्रीकृष्ण का वर्णन है। इसका नाम 'पुरनृपवर्णन सर्ग' है । द्वितीय सर्ग 'सभापर्व' में पाण्डुपुत्र अर्जुन के प्रभासतीर्थ में आगमन की सूचना श्रीकृष्ण की सभा में किसी दूत द्वारा प्राप्त होती है। तृतीय सर्ग 'नरनारायणसंगम' में श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के मिलन एवं रैवतक पर्वत का वर्णन है। चतुर्थ सर्ग का नाम 'ऋतुवर्णन' है जिसमें षड्ऋतुओं का परम्परागत वर्णन किया गया है । 'चन्द्रोदय' नामक पंचमसर्ग में सन्ध्या एवं चन्द्रोदय का वर्णन है। षष्ठ सर्ग में द्वारवती के नवयुवक एवं नवयुवतियों का सुरापान तथा सुरतविलास वर्णित है। इस सर्ग का नाम 'सुरापानसुरतवर्णन' है। सप्तम सर्ग का नाम 'सूर्योदय' है जिसमें कवि ने रात्रि के अवसान एवं सूर्योदय का वर्णन किया है। अष्टमसर्ग में बलराम का सपरिवार अपनी सेना के साथ रैवतक पवंत पर आगमन दिखलाया गया है। इस सर्ग का नाम 'सेनानिवेशवर्णन' है । नवें सर्ग 'पुष्पावचयप्रपंच' में श्रीकृष्ण एवं अर्जुन की वनक्रीडा वणित है। दसवें सर्ग का नाम 'सुभद्रादर्शन' है जिसमें जलक्रीडा के अवसर पर अर्जुन एवं सुभद्रा के प्रथम दर्शन एवं परस्पर आकर्षण का वर्णन किया गया है। ग्यारहवें 'दूतिकाद्योतक' सगं में अर्जुन एवं सुभद्रा के विरह एवं श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को आसुर विधि से सुभद्राहरण का संकेत दिलाया गया है । 'सुभद्राहरण' नामक बारहवें सर्ग में अर्जुन का सुभद्रा को रथ पर चढ़ा कर भागना एवं क्रुद्ध बलराम का सात्यकि सहित सेना के साथ अर्जुन को पकड़ने का आदेश एवं अन्त में श्रीकृष्ण के समझाने पर उनका शान्त होना वर्णित है । तेरहवें सर्ग ( संकुलकलिसंकलन सर्ग ) में सात्यकि की सेना के साथ अर्जुन का युद्ध तथा चौदहवें सर्ग 'अर्जुनावर्जन' में बलराम एवं श्रीकृष्ण द्वारा दोनों पक्षों को युद्ध से