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बिनपाक उपाध्याय]
(६९२)
[जिनप्रभसूरि
रतिसुन्दरी के साथ विवाह का वर्णन है। सत्रहवें सर्ग में विद्यादेवी द्वारा जयन्त एवं रतिसुन्दरी के पूर्वजन्म की कथा, अठारहवें सगं में ऋतुवर्णन के अतिरिक्त हस्तिनापुर के राजा द्वारा जयन्त को राज्य सौंपकर दीक्षा ग्रहण करने का वर्णन है। उन्नीस सर्ग में राजा विक्रमसिंह ससमारोह जयन्त को अपना राज्य देकर स्वयं प्रव्रज्या ग्रहण करते हैं । यह महाकाव्य भारतीय काव्यशास्त्रियों द्वारा निरूपित महाकाव्य के लक्षण पर पूर्णतः सफल सिद्ध होता है। इसकी भाषा शुद्ध, सरल एवं स्वाभाविक है। कवि प्रसंगानुकूल भाषा में मृदुलता एवं कर्कशता का नियोजन करने में सुदक्ष है। श्रुतिमधुर अनुप्रास का प्रयोग देखें-बहुविहगनिनादैबन्दिवृन्दैरिवोक्ते विकटविटपवीपीच्छायया शीतमागें । पृथुसरसि स हंसीमण्डलेनेव हंसः समचरदथ तस्मिन्साद्धमन्तःपुरेण ॥ ५॥५७ ।
जिनपाल उपाध्याय-संस्कृत के प्रसिद्ध जैन कवि एवं 'सनत्कुमारचकिचरित्र' महाकाव्य के प्रणेता । इनके दीक्षागुरु का नाम जिनपतिसूरि था। जैनधर्म में दीक्षित हो जाने के पश्चात् इनका नाम जिनपालगणी हो गया । कवि का निधन सं० १३११ ई० में हुआ। जिनपाल ने घटस्थानकवृत्ति नामक ग्रन्थ की रचना सं० १२६२ में की थी। 'सनत्कुमारचरित' की रचना सं० १२६२ से सं० १२७८ के मध्य हुई थी। 'सनत्कुमारचक्रिचरित्र' चौबीस सौ में रचित पौराणिक महाकाव्य है जिसमें सनत्कुमार. चक्री के चरित्र का वर्णन किया गया है। यह महाकव्य अभी तक अप्रकाशित है । आलकारिकों द्वारा निर्धारित महाकाव्य के सभी लक्षणों का इसमें सफल निर्वाह किया गया है। कवि ने सगवड कृति के रूप में इसकी रचना कर महोकाव्योचित विस्तार किया है । इसका नायक सनत्कुमार धीरोदात्त है और अंगी रस शान्त है एवं अनार, वीर, रौद्र एवं बीभत्स रसों का परिपाक अंगरूप में है। इसका कथानक ऐतिहासिक एवं लोकप्रिय जनसाहित्य एवं धर्म में विख्यात है। प्रकृतिचित्रण, समाजचित्रण, धर्म एवं दर्शन, रस-परिपाक, भाषा-सौष्ठव, अलंकृति तथा पाण्डित्य-प्रदर्शन की दृष्टि से एक महनीय कृति है। तस्यावभी श्मश्रुविनीलपंक्तिः सौरभ्यपात्रं परितो मुखाम्बम् । भुंगावली नूनमपूर्वगन्धलुब्धोपविष्टा प्रविहाय पपम् ॥ १५॥१७ ।
जिनप्रभसरि-ये संस्कृत के प्रसिद्ध जैन महाकाव्यकार है । इनकी प्रसिद्ध रचना है 'श्रेणिकचरित्र' जो शास्त्रीय महाकाव्यों की श्रेणी में आता है। इस महाकाव्य का रचनाकाल सं० १३५६ वि० है। जिनप्रभसूरि श्रीजिनसिंहसूरि के शिष्य थे। इन्होंने अनेक स्तोत्र काष्यों की रचना की है जिनमें 'पंचपरमेष्टिस्तव', 'सिद्धान्तागमस्तव', 'तीर्थकल्प' आदि प्रसिद्ध हैं। कवि ने आचार्य नन्दिषेण विरचित 'अजित शान्तिस्तव' पर 'सुबोधक' टीका लिखी है । 'श्रेणिकचरित्र' १८ सगों में विभक्त है । इसमें श्लोकों की कुल संख्या २२६७ है । इस महाकाव्य में भगवान महावीर के समसामयिक राजा श्रेणिक की जीवनगाथा वर्णित है । इसका नायक राजा श्रेणिक धीरोदात्त गुण समन्वित है । इसमें प्रधान रस शान्त है तथा शृङ्गार, वीर, करुण एवं रौद्र रसों का वर्णन अंग रस के रूप में हुआ है। कवि ने वृषभनाथ का स्मरण करते हुए अपने काव्य में मंगलाचरण का विधान