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जयन्तविजय]
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[जयन्तविषय
करती हुई मुगलसेना का चालीस सिखों द्वारा चमकौर नामक ग्राम में सामना करने, गुरुजी के दोनों ही बड़े पुत्रों के उसमें मारे जाने, दो छोटे पुत्रों के सरहिन्द के दरबार में मारे जाने, बन्दा वैरागी से भेंट, उसे उपदेश देकर पंजाब ले जाने, उनके देशाटन, एक पठान द्वारा गुरुजी पर प्रच्छन्न रूप से प्रहार एवं उनकी निर्वाणप्राप्ति आदि की घटनाओं का विवरण है। इस महाकव्य की भाषा प्रवाहपूर्ण एवं अलंकृत है। कवि का भाषा पर असाधारण अधिकार परिलक्षित होता है। अनुप्रास एवं यमक का चमत्कार स्थल-स्थल पर दिखाई पड़ता है। पर सर्वत्र ही अलंकारों का समावेश अनायास एवं स्वाभाविक रीति से हुआ है। यत्र-तत्र कवि ने प्राकृतिक छटा का सुरम्य वर्णन प्रस्तुत किया है। पोष्टा साहिब को प्राकृतिक छटा का वर्णन अवलोकनीय हैएकान्तरम्यं वनसण्डमाराद् दृष्ट्वा स हृष्टोजनि सौम्यदृष्टिः। अदृष्टपूर्वा प्रकृते मनोज्ञा छटा बलात्तस्य जहार चेतः ॥ फूले क्वचिद् भानुसुताऽपगायाः क्रीडन्ति वृन्दानि सुखं पशूनाम् । कचितामण्डपमण्डितानि रम्याणि सान्द्राणि च काननानि ।।
..जयन्तविजय-संस्कृत के प्रसिद्ध जैन कवि अभयदेवमूरि विरचित पौराणिक महाकाव्य जिसमें मगनरेश जयन्त एवं उनकी विजयगाथा का वर्णन १९ सर्गों में किया. गया है [ दे० अभयदेवसूरि]। इस महाकाव्य में श्लोकों की संख्या २२०० है, पर निर्णय सागर, प्रेस की प्रकाशित प्रति में १५४८ छन्द हैं। इसके प्रथम सर्ग में तीर्थंकरों की प्रार्थना के पश्चात् राजा विक्रमसिंह तथा उनकी पत्नी प्रीतिमती एवं सुबुद्धि नामक मन्त्री का परिचय है। इस सग का नाम 'प्रस्तावनानिरूपण' है। द्वितीय सर्ग में रानी सरोवर में अपने गज को करिणी के साथ क्रीड़ा करते हुए देख कर सन्तानाभाव के कारण चिंतित होती है किन्तु राजा उसकी इच्छा को पूर्ण करने की प्रतिज्ञा करता है । तृतीय सर्ग में राजा सभा में अपनी प्रतिज्ञा की चर्चा सुबुद्धि नामक मंत्री से करता है और वह इसकी पूर्ति का एकमात्र साधन 'श्रीपंचपरमेष्टिनमस्कारमंत्र' को बता कर राजा को इसे ग्रहण करने का परामर्श देता है । चतुर्थ सर्ग में श्मशानवासी सुर द्वारा राजा को बन्ध्या स्त्री को संतान प्राप्ति होने वाले हार की उपलब्धि एवं पंचम तथा षष्ठ सग में सुर द्वारा विक्रमसिंह के पूर्वजन्म वृत्तान्त, प्रीतिमती की बहिन से राजा का विवाह तथा उससे पुत्ररत्न की प्राप्ति का वर्णन है । पुत्र का नाम जयन्त रखा जाता है जो सुर-प्रदत्त हार के प्रभाव से उत्पन्न होता है। सप्तम एवं अष्टम सगों में जयन्त का युवराज होना तथा दोलाविलास पुष्पावचयजलकेलि और सूर्यास्त चन्द्रोदय का वर्णन है। नवें से ग्यारहवें सगं में सिंहलभूपति के हाथी का विक्रमसिंह की राजधानी में भाग आने तथा सिंहल-भूप के दूत के मांगने पर हाथी देने से राजा की अस्वीकारोक्ति, फलतः सिंहल नरेश हरिराज का जयन्त पर आक्रमण करने की घटना वर्णित है। जयन्त द्वारा सिंहल नरेश की युद्ध में मृत्यु एवं जयन्त की दिग्विजय का वर्णन । बारहवे एवं तेरहवें सों में जयन्त का जिनशासन देवता द्वारा कनकावती के लिए अपहरण एवं दोनों का विवाह वर्णित है। चौदहवें सगं में महेन्द्र का जयन्त से युद्ध एवं जयन्त की विजय तथा सोलहवें सर्ग तक जयन्त का हस्तिनापुर के नरेश वीरसिंह की पुत्री