Book Title: Sanskrit Sahitya Kosh
Author(s): Rajvansh Sahay
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 700
________________ गर्गसंहिता] (६८९) [गिरिधरसर्माः चतुर्वेदी द्वारा उन्हें ऐरावत पर बिठाकर मंदराचल पर जाने की घटना वणित है। षष्ठ में इन्द्र जितेन्द्र का अभिषेक कर उन्हें पुनः माता के पास दे देते हैं और उनका नाम मुनिसुव्रत रखते हैं । सप्तम में मुनिसुव्रत का विवाह एवं राज्यारोहण तथा अष्टम सर्ग में एक विशेष घटना के कारण मुनि के वैराग्य ग्रहण करने का वर्णन है । नवम सर्ग में मुनि द्वारा एक वर्ष तक कायक्लेश नामक तपस्या करना एवं दशम में मुनि की मोक्ष-प्राप्ति की घटना वर्णित है । इस महाकाव्य का कथानक सुनियोजित विकासक्रम से युक्त है। इसमें न तो किसी घटना का अतिविस्तार है और न अति संक्षेप । इसी कारण यह ग्रन्थ महाकाव्योचित अन्विति ( कथानक में ), धारावाहिकता एवं गतिशीलता से युक्त है । इसका कथानक पुराणसम्मत है। कवि प्रकृति-सौन्दयं के अतिरिक्त मानवीय सौन्दर्य के वर्णन में भी सुदक्ष दिखाई पड़ता है। इसमें कुल १२ छन्द प्रयुक्त हुए हैं और अलंकारों का बाहुल्य है। भ्रान्तिमान् अलंकार का वर्णन देखें-रतिक्रियायां विपरीतवृत्ती रतावसाने किल पारवश्यम् । बभूवं मल्लेषु गदाभिषातो भयाकुलत्वं रविचन्द्रयोश्च ॥ ॥३२ । दे० तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी के जैन-संस्कृत-महाकाव्य-डॉ. श्यामशंकर दीक्षित। गर्गसंहिता-इसके रचयिता ज्योतिषशास्त्र के आचार्य गर्ग हैं। इसमें श्रीराधा और कृष्ण की माधुयंभावमिश्रित लीलाओं का वर्णन सरस एवं प्रान्जल शैली में किया गया है। महाभारत [शल्यपर्व ३७१४-१८] से ज्ञात होता है कि गर्गाचार्य ने कुरुक्षेत्र के गगंनोत नामक स्थान में अपना आश्रम बनाया था जो सरस्वती के तट पर स्थित था। यहीं पर इन्होंने ज्योतिषविषयक सभी अन्यों का प्रणयन किया था। 'गर्गसंहिता' नामक इतिहास ग्रन्थ की रचना गर्गाचल पर हुई थी। महाभारत एवं भागवत महापुराण के अनुसार ये महाराज पृथु तथा यदुवंशियों के मुरु थे [महा. शान्ति, ५९।११, भागवत, १०८]। गर्गसंहिता में केवल श्रीकृष्ण का वर्णन होने के कारण इसे पुराण न कह कर इतिहास कहा गया है । इसके श्लोक काव्यगुणों से समन्वित हैं । यह ग्रन्थ गोलोक खण्ड ( २० अध्याय ), श्रीवृन्दावन खण्ड (२६ अध्याय), गिरिराज खग (११ अध्याय), माधुर्यखण्ड (२४ अध्याय), श्रीमथुराखण (२६ अध्याय), द्वारका खण्ड ( २२ अध्याय ), विश्वजित खण्ड (५० अध्याय), श्रीबलभद्रसह (१३ अध्याय ), श्रीविज्ञान खपड ( १० अध्याय) तथा अश्वमेष (६२ अध्याय), खण्डों के रूप में १० भागों में विभक्त है । गर्गाचार्य ने 'गगंमनोरमा' तथा 'वृहदगर्गसंहिता' नामक ज्योतिष के अन्यों की रचना की है। यो राषिकाहृदयसुन्दरचन्द्रहारः श्रीगोपिकानयनजीवनमूलहारः । गोलोकधामधिषणध्वज आदिदेवः स त्वं विपत्सु विबुधान् परिपाहि पाहि ॥ गोलोक ३२१ । गर्गसंहिता का हिन्दी अनुवाद गीता प्रेस गोसपुर से प्रकाशित, १९७०,१९७१ गिरिधरशर्मा चतुर्वेदी (महामहोपाध्याय)-चतुर्वेदी जी का जन्म २९ सितम्बर १८८१ में जयपुर में हुआ था। ये बोसयों शताम्दो के श्रेष्ठ संत विद्वान एवं वक्ता थे। इन्होंने हिन्दी एवं संस्कृत दोनों ही भाषाओं में समान अधिकार के ४४ सं० सा०

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