Book Title: Sanskrit Sahitya Kosh
Author(s): Rajvansh Sahay
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

View full book text
Previous | Next

Page 698
________________ परिशिष्ट अखिलानन्द कविरत्न-इनका जन्म बदायूं ( उत्तर प्रदेश ) जिले के अन्तर्गत चन्द्रनगर ग्राम में हुआ था। [ जन्मतिथि तृतीया माष शुक्ल वि० सं० १९३७ ] इनके पिता का नाम टीकाराम शास्त्री था। इन्होंने 'दयानन्द दिग्विजय' नामक प्रसिद्ध महाकाव्य की रचना की है जिसका प्रकाशनकाल १९१० ई० है। इनके द्वारा रचित काव्यों की संख्या २२ है और समस्त काव्यों की श्लोक संख्या ९५००० है। ग्रन्थों के नाम इस प्रकार है-'विरजानन्दचरितम्', 'भामिनीभूषण-काव्य', 'ईश्वरस्तुति-काव्य', 'धर्मलक्षणवर्णन-काव्य', 'गुरुकुलोदय-काव्य', 'विद्याविनोद-काव्य', 'उपनयनवर्णन-काव्य', विवाहोत्सववर्णन काव्य', 'आयवृत्तेन्दुचन्द्रिका', परोपकारकल्पद्रुम', 'रमामहषिसंवाद. काव्य', 'दशावतारखण्डन-काव्य', 'देवोपालम्भकाव्य', 'आर्यसंस्कृतगीतयः', 'द्विजराज. विजयपताका-काव्य', 'भारतमहिमावर्णन-काव्य', 'आयविनोद-काव्य', 'संस्कृतविद्यामन्दिर-काव्य', आर्यसुताशिक्षासागर-काव्य', 'महर्षिचरितादर्श-काव्य', 'आयंशिरोभूषणकाव्य', शोकसम्मूर्छन-काव्य'। अखिलानन्द शर्मा की सर्वाधिक महत्वपूर्ण रचना 'दयानन्ददिग्विजय' है जिसकी रचना २१ सौ में हुई है। इसमें महर्षि दयानन्द की जीवनगाथा वर्णित है। प्रथम सर्ग में स्वामी दयानन्द के आविर्भावकाल की परिस्थितियों तथा महर्षि के प्रभाव का वर्णन है। द्वितीय तथा तृतीय सों में कवि ने चरितनायक के बाल्यकाल एवं विद्याध्ययन का वर्णन किया है। चतुर्थ सगं में दयानन्द जी के आविर्भावकाल में विद्यमान सम्प्रदायों-शैव, शाक्त, वैष्णव बादि का वर्णन एवं पंचम में स्वामी जी के प्रमुख उपदेशों का निदर्शन है। षष्ठ सगं में स्वामी जी के वाराणसी शास्त्रार्थ का वर्णन है जिसमें काशीस्थ स्वामी विशुद्धानन्द एवं बालशास्त्री के साथ महर्षि दयानन्द के शास्त्रार्थ का उल्लेख है। सप्तम सगं में स्वामी जी का बम्बई-प्रवास एवं अष्टम में दयानन्द जी के ग्रन्थों का विवरण है। नवम सर्ग में चरितनायक की प्रशंसा एवं दशम में मृत-श्राद्ध, तीर्थ-पुराण एवं मूर्तिपूजा का खण्डन है। इसी सर्ग में महाकाव्य का पूर्वार्द समाप्त होता है और उत्तरादं में ११ सग हैं। एकादश सर्ग में आर्यसमाज के दस नियमों का उल्लेख एवं स्वामी जी के. लाहोरगमन का वर्णन है। द्वादश सर्ग में दयानन्द जी की कलकत्ता-यात्रा एवं त्रयोदश में आर्यसमाज की स्थापना का वर्णन किणा गया है। चतुर्दश सगं की रचना चित्रकाम्य की शैली में हुई है जिसमें सर्वतोगमनबन्ध, षोग्शकमलबन्ध, गोमूत्रिकाबग्ध, छत्रबन्ध, हारबन्ध के प्रयोग किये गए हैं। पंचदश सग में परोपकारिणी सभा की स्थापना वर्णित है और षष्ठदश सगं में सभासदों का परिचय प्रस्तुत किया गया है। सप्तदश सर्ग में विभिन्न मतों-शैव, वैष्णव, शाक्त, जैन, बोट, वेदान्त, शाकुर, गाणपत्य-की आलो. चना की गयी है। अष्टदश सगं में महर्षि दयानन्द के जोधपुर निवास का वर्णन एवं उन्नीसवें सगं में उनके स्वर्गारोहण का उल्लेख है। बीसवें सर्ग में स्वामीजी को मृत्यु

Loading...

Page Navigation
1 ... 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728