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हेमचन्द्र ]
(६८५)
[हंस सन्देश
पदेश' के प्रत्येक खण्ड के अन्त में शिव के अनुग्रह की कामना करने वाले आशीर्वादास्मक वचन प्राप्त होते हैं, इससे ज्ञात होता है कि इसका लेखक शैव था। इसमें 'पंचतन्त्र' के गद्य का लगभग ३ भाग एवं पद्य भाग प्राप्त होता है। शिक्षा देने की शैली का प्रयोग करने के कारण इसकी भाषा अत्यन्त सरल है और यही इसकी लोकप्रियता का कारण भी है। इस समय प्रायः सारे भारतवर्ष में संस्कृत-शिक्षण का प्रारम्भ इसी पुस्तक से होता है । इसकी शैली सीधी-सादी एवं सरल है-विशेषतः गद्य की भाषा, पर श्लोकों की भाषा अपेक्षाकृत कठिन है। इसके अनेक हिन्दी अनुवाद प्राप्त होते हैं।
हेमचन्द्र जैन धर्म के प्रसिद्ध आचार्य एवं काव्यशास्त्री। आचार्य हेमचन्द्र जैन लेखकों में अत्यधिक प्रौढ़ पद के अधिकारी हैं। इनका जन्म गुजरात के अहमदाबाद जिले के अन्तर्गत धुन्धुक ग्राम में हुआ था। इनका जन्मकाल ११४५ वि० सं० एवं मृत्युकाल १२२९ सं० है । इनके माता-पिता का नाम चाचिग एवं पाहिनी था। इनका वास्तविक नाम चंगदेव था किन्तु जैन धर्म में दीक्षित हो जाने पर ये हेमचन्द्र के नाम से विख्यात हुए। इन्होंने अनेक विषयों पर अनेक ग्रन्थों की रचना की है। इनके प्रसिद्ध ग्रन्थ है- सिदहेमचन्द्र या शब्दानुशासन (व्याकरण का विख्यात अन्य ) काव्यानुशासन (काव्यशास्त्रीय ग्रन्य ) छन्दोनुशासन, द्रव्यानुश्रयकाम, अभिधानचिन्तामणि ( कोश ) देशीनाममाला, त्रिषष्टिशलाकाषुरुषचरित तथा योगशास्त्र । 'काव्यानुसासन' की रचना आठ अध्यायों में एवं सूत्रशैली में हुई है। इस पर लेखक ने 'विवेक' नामक टीका भी लिखी है। इसमें वर्णित विषयों का विवरण इस प्रकार है-प्रथम अध्यायकाव्य-प्रयोजन, काव्यहेतु, प्रतिभा के सहायक, काव्यलक्षण तथा शब्दशक्ति विवेचन। द्वितीय अध्याय-रस एवं उसके भेदों का वर्णन । तृतीय अध्याय में दोष तथा चतुर्थ में माधुर्य, पोज एवं प्रसाद गुण का निरूपण । पंचम अध्याय में छह शब्दालंकार एवं षष्ठ में २९ अर्थालंकारों का विवेचन । सप्तम अध्याय में नायक-नायिकाभेद एवं अष्टम में अध्याय प्रेक्ष्य तथा श्रव्य काव्य के दो भेद वर्णित हैं। 'काव्यानुशासन' मौलिक ग्रन्थ न होकर अनेक ग्रन्थों के विचार का संग्रह ग्रन्थ है। इसमें विभिन्न ग्रन्थों में १५०० श्लोक उद्धृत हैं। 'शब्दानुशासन' अत्यन्त प्रौढ व्याकरण ग्रन्थ है। इस पर डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने 'शब्दानुशासन एक अध्ययन' नामक खोजपूर्ण ग्रन्थ लिखा है। [चौखम्बा प्रकाशन ] काव्यानुशासन काव्यशास्त्र की साधारण रचना हैं । __ आधारग्रन्थ-संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास-डॉ. काणे ।
हंस सन्देश-इस सन्देश काव्य के रचयिता का नाम पूर्णसारस्वत है। कवि का समय विक्रम त्रयोदशशतक का प्रारम्भ है । लेखक के संबंध में कुछ भी ज्ञात नहीं होता केवल निम्नांकित श्लोक के आधार पर उसके नाम का अनुमान किया गया है । अश्यं विष्णोः पदमनुपतन् पक्षपातेन हंसः पूर्णज्योतिः पदयुगजुषः पूर्णसारस्वतस्य। क्रीग्त्येव स्फुटमकलुषे मानसे सज्जनानाम् मेघेनोनिजरसभरं वर्षता धषितेऽपि ॥ १०२ इस काव्य का रचयिता केरलीय ज्ञात होता है। 'हंस सन्देश' में कांचीपुर नगर की