Book Title: Sanskrit Sahitya Kosh
Author(s): Rajvansh Sahay
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 701
________________ गुरुगोविन्दसिहचरितम् ] . ( ६९०) [गुरुगोविन्दसिंहचरितम् साथ उत्कृष्ट कोटि के ग्रन्थों का प्रणयन किया है। इन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से शास्त्री एवं जयपुर से व्याकरणाचार्य की परीक्षाएं उत्तीर्ण की थीं। इन्हें भारत सरकार की ओर से महामहोपाध्याय की एवं हिन्दी साहित्य सम्मेलनसे साहित्य वाचस्पति की उपाधियाँ प्राप्त हुई थीं। इन्हें राष्ट्रपति द्वारा भी सम्मान प्राप्त हुवा था। चतुर्वेदी जी १९०८ से १९१७ तक ऋषिकुल ब्रह्मचर्याश्रम हरिद्वार में आचार्य थे और सनातनधर्म कॉलेज लाहौर में १९१८ से १९२४ तक आचार्य पद पर विद्यमान रहे । सन् १९२५ से १९४४ तक ये जयपुर महाराजा संस्कृत कॉलेज के दर्शनाचार्य के पद पर रहने के पश्चात् १९५० से १९५४ तक वाराणसी हिन्दू विश्वविद्यालय में संस्कृत अध्ययन एवं अनुशीलन के अध्यक्ष रहे। १९६० ई० से वे वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय में सम्मानित अध्यापक पद को सुशोभित करते रहे। आपने अनेक संस्कृत पत्रिकाओं का संपादन किया था। आपको 'वैदिक विज्ञान एवं भारतीय संस्कृति' नामक ग्रन्थ पर १९६२ ई० में साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ था। चतुर्वेदी जी वेद, व्याकरण एवं दर्शनशास्त्र के असाधारण विद्वान् थे। आपने अनेक महनीय ग्रन्थों का सम्पादन किया है जिनमें पतंजलिकृत 'महाभाष्य' भी है। आपकी संस्कृत रचनाओं के नाम इस प्रकार हैं-'महाकाव्य संग्रह', 'महर्षिकुलवभव', 'ब्रह्मसिद्धान्त', 'प्रमेयपारिजात', 'चातुर्वण्य', 'पाणिनीय परिचय', 'स्मृतिविरोध. परिहार', 'गीताब्याख्यान', 'वेदविज्ञान विन्दु' एवं 'पुराणपारिजात' । आपने अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का हिन्दी में प्रणयन किया है । 'गीताव्याख्यान', 'उपनिषदव्याख्यान', 'पुराण परिशीलन', 'वैदिकविनान' एवं भारतीय संस्कृति' आदि । 'चतुर्वेदसंस्कृतरचनावलिः' भाग १ एवं निबन्धादर्श' नामक पुस्तकें संस्कृत भाषा में लिखित विविध विषयों से सम्बट निबन्ध-संग्रह हैं। 'पुराणपारिजात' नामक ग्रन्थ दो खण्डों में है । चतुर्वेदी जी का निधन १० जून १९६६ ई. को हुआ। गुरुगोविन्दसिंहचरितम्-यह बीसवीं शताब्दी का सुप्रसिद्ध महाकाव्य है जिसके रचयिता डॉ. सत्यव्रत शास्त्री हैं [दे० सत्यव्रतशास्त्री]। इस ग्रन्थ के ऊपर लेखक को १९६८ ई० का साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ है। यह महाकाव्य चार खण्डों में विभक्त है जिसमें कवि ने गुरुगोविन्द सिंह के विशाल व्यक्तित्व का परिचय दिया है । प्रथम खण्ड में गुरुगोविन्द सिंह के जन्म, बाल्यकाल, शिक्षा-दीक्षा, उनके पिता गुरुतेगबहादुर के बलिदान, गुरुगोविन्द सिंह की गुरुपद-प्राप्ति तथा गुरु द्वारा शिष्यों की सैनिक-शिक्षा का वर्णन है। द्वितीय खण्ड में गुरुगोविन्द सिंह के विवाह, पोष्टासाहब नामक रमणीय पर्वतीय स्थान में निवास, ५२ पण्डितों के द्वारा विद्याधर नामक विशाल अन्य की रचना, विलासपुर के राजाओं की औरङ्गजेब के प्रतिनिधि म्या खां के विरुद्ध सहायता, पहाड़ी राजाओं का उनके साथ युद्ध एवं उनकी पराजय आदि का वर्णन है । तृतीय खण्ड में खालसा पन्थ के संगठन, औरङ्गजेब के सामन्तों की पहाड़ी राजाओं के साथ सांठगांठ से गुरुगोविन्दसिंह की नगरी आनन्दपुर पर आक्रमण एवं गुरुजी का उस नगरी से निष्क्रमण आदि घटनाएं वर्णित हैं। चतुर्य खण्ड में पीछा

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