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[ अर्हद्दास
अम्बिकादत्तव्यास ]
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के उपरान्त उनके अनुयायियों के शोक का अत्यन्त करुण वर्णन है । अन्तिम सर्ग में कवि 'अपना परिचय दिया है । इस महाकाव्य में कुल २३४८ श्लोक हैं और शान्त रस का प्राधान्य है । यत्र-तत्र प्रकृति की मनोरम छटा प्रदर्शित की गयी है और कतिपय स्थानों पर कवि अलंकृत वर्णन प्रस्तुत करता है। इस महाकाव्य में सर्वत्र प्रसादमयी शैली का प्रयोग हुआ है । दयानन्दजी का परिचय प्रस्तुत करते हुए भाषा की प्रासादिकता स्पष्ट हो गयी है - अभूदभूमिः कलिकालकर्मणाम् अशेषसौन्दर्य निवासवासः । जगत्त्रये दर्शितवेदभास्करः प्रभो दयानन्द इति प्रतापवान् ॥ १।२ ऋषि दयानन्द और आर्य समाज की संस्कृत साहित्य को देन पृ० १३७ - १४७ ।
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अम्बिकादत्तव्यास - [ १८५९ से १५ नवम्बर १९०० ई०] जयपुर ( राजस्थान ) के निकट भानपुर ग्राम में जन्म पिता का नाम श्री दुर्गादत्त ( गोड़ ब्राह्मण ) । काश्मीर संस्कृत कॉलेज में अध्ययन और वहीं व्यास की उपाधि से विभूषित । १८९३ ई० में भारतरत्न की उपाधि प्राप्त । १८८० ई० में एक घड़ी में सौ श्लोकों की रचना करने के कारण 'घटिकाशतक' की उपाधि । १८९७ ई० में छपरा कॉलेज में संस्कृत के अध्यापक अन्त में गवर्नमेष्ट संस्कृत कॉलेज पटना में संस्कृत के प्राध्यापक । ग्रन्थों का विवरण इस प्रकार है-गणेशशतकम्, शिवविवाहः ( खण्डकाव्य ), सहस्रनाम - रामायणम्, पुष्पवर्षा ( काव्य ) उपदेशलता ( काव्य ), साहित्यनलिनी, रत्नाष्टक ( हास्य रस की कहानियाँ), कथाकुसुमम्, शिवराजविजय: ( उपन्यास ) १२ निश्वासों में कादम्बरी की शैली पर रचित वीररसात्मक उपन्यास । समस्यापूत्तयः, सामवतम् (नाटक), ललितानाटिका, मूर्तिपूजा, गुप्ताशुद्धिप्रदर्शनम्, क्षेत्रकौशलम्, प्रस्तारदीपिका, सांख्यसागरसुधा । सखि हे नन्दतनय आगच्छति । मन्दं मन्दं मुरलीरणनैः समधिकसुखं प्रयच्छति । भैरवरूपः पापिजनानां सतां सुखकरो देवः कलितललितमालती मलिकः सुरवरवांछितसेवः ॥ दे० आधुनिक संस्कृत साहित्य — डॉ० हीरालाल शुक्ल ।
अर्हद्दास–जैनधर्माबलंबी संस्कृत महाकाव्यकार । कवि का परिचय अभी तक उपलब्ध नहीं होता । विद्वानों ने 'मुनिसुव्रत' महाकाव्य का रचनाकाल सं० १३०१ से १३२५ के मध्य माना है | अदास के अद्यावधि तीन काव्यग्रन्थ उपलब्ध हैं- 'मुनिसुव्रतकाव्य', 'पुरुषदेवचम्पू' तथा 'भव्यकण्ठाभरण' । इनके काव्यगुरु का नाम आशाधर था। 'मुनिसुव्रतकाव्य' का अन्य नाम 'काव्यरत्न' भी है। इसमें बीसवें तीर्थंकर (जैन) मुनिसुव्रत स्वामी की जीवनगाथा दस सर्गों में रचित हैं। इसमें कवि ने शास्त्रीय तथा पौराणिक महाकाव्य की उभय शैलियों का समावेश किया है। यह महाकाव्य लघु कलेवर का है जिसमें छन्दों की संख्या ४०८ है । प्रथम सर्ग में मंगलाचरण, मगध एवं राजगीर का वर्णन तथा द्वितीय में मगधनरेश राजा सुमित्र और उनकी रानी पद्मावती का वर्णन है। तृतीय एवं चतुर्थ सर्गों में पद्मावती के गर्भ से जिनेश्वर के अवतीर्ण होने एवं पुंसवनादि संस्कारों का कथन है। पंचम में इन्द्राणी का जिन माता की गोद में कपट शिशु को डालना तथा जिनेन्द्र को उठाकर उन्हें इन्द्र को दे देना एवं इन्द्र