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हृदयदर्पण ]
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[ हृदयदर्पण
किसी स्त्री के द्वारा श्रीकृष्ण के पास हंस द्वारा सन्देश भेजा गया है। हंस के वंश, निवासस्थान एवं सामथ्र्यं की प्रशंसा कर विभिन्न स्थानों में श्रीकृष्ण की खोज करते हुए अन्ततः उसे वृन्दावन में जाने को कहा गया है । ग्रन्थ में १०२ मन्दाक्रान्ता छन्द प्रयुक्त हुए हैं । प्रकाशन त्रिवेन्द्रम् संस्कृत सीरीज से हो चुका है । काव्य का प्रारम्भ मेघदूत की भाँति किया गया है- काचित् कान्ता विरहशिखिना कामिनी कामतप्ता निध्यायन्ती कमपि दयितं निर्दयं दूरसंस्थम् । भूयो भूयो रणरणकतः पुष्पवाटी भ्रमन्ती लीलावापीकमलपथिकं राजहंसं ददर्श ॥ १ ॥
आधारग्रन्थ – संस्कृत के सन्देशकाव्य - डॉ० रामकुमार आचार्य ।
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हृदयदर्पण – यह काव्यशास्त्र का ग्रन्थ है । इसके प्रणेता भट्टनायक हैं । [ दे० भट्टनायक ] यह ग्रन्थ अभी तक अनुपलब्ध है । 'हृदयदर्पण' की रचना ध्वनि सिद्धान्त के खण्डन के लिए हुई थी। 'हृदयदर्पण' ११वीं शताब्दी से अप्राप्त है। इसका उल्लेख ध्वनिविरोधी आचार्य महिमभट्ट ने किया है। उनका कहना है कि बिना 'दर्पण' को देखे ही मैंने ध्वनि सिद्धान्त का खण्डन किया है यदि मुझे 'हृदयदर्पण' के देखने का अवसर प्राप्त हुआ होता तो मेरा ग्रन्थ अधिक पूर्ण होता - सहसा यशोऽभिमतुं समुद्यताऽदृष्टदर्पणा मम धीः । स्वालङ्कारविकल्प प्रकल्पनेवेत्ति कथमिवावद्यम् || 'हृदयदर्पण' को 'ध्वनिध्वंस' भी कहा जाता है ।