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स्वप्नवासवदत्त ]
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वासवदत्त
कही थी। इस समय मगध राज्य की सहायता से आपको पद्मावती और राज्य दोनों ही प्राप्त हुए। सभी लोग महासेन को यह संवाद सुनाने के लिए उज्जयिनी जाने को उद्यत होते हैं और भरतवाक्य के पश्चात् नाटक समाप्त हो जाता है। राजा द्वारा स्वप्न में वासवदत्ता को देखने के कारण इस नाटक का नाम 'स्वप्नवासवदत्तम्' रखा गया है।
'स्वप्नवासवदत्त' में भास की कला की चरम परिणति दिखाई पड़ती है। नाटकीय संविधान, चरित्रांकन, संवाद, प्रकृति-चित्रण तथा रसोन्मेष सभी तत्वों का इस नाटक में पूर्ण परिपाक हुआ है। यों तो इसके सभी दृश्य आकर्षक हैं, पर स्वप्न वाला दृश्य अधिक महत्वपूर्ण है। इसे देखकर दर्शक विशेष रूप से अभिभूत हो जाये हैं। धीरललित नायक उदयन की कलाप्रियता जहाँ एक ओर दर्शकों का आवर्जन करती है, वहीं कूटनीतिज्ञ योगन्धरायण का बुद्धि-कौशल उन्हें चमत्कृत कर देता है। इसमें प्रधान रस शृंगार है तथा गौण रूप से हास्य एवं वीररस की भी उद्भावना की गयी है । वासवदत्ता तथा उदयन की कथा के आधार पर इसमें विप्रलम्भ श्रृंगार की प्रधानता है। पद्मावती एवं वासवदत्ता के विनोद में शिष्ट हास्य की झलक है तथा विदूषक के वचनों से हास्य की सृष्टि की गयी है।
चरित्र चित्रण-चरित्र-चित्रण की दृष्टि से भी यह नाटक सफल है। इसमें प्रधान है-उदयन, वासवदत्ता, पपावती एवं योगन्धरायण ।
उदयन-इस नाटक के नायक उदयन हैं। शास्त्रीय दृष्टि से वे धीरललित नायक हैं । वे कलाप्रेमी, विलासी तथा रूपवान् हैं और वीणा-वादन की कला में दक्ष हैं। जब वे आखेट के लिए जाते हैं तभी लावाणक गृह की घटना घटती है। वे बहुपत्नीक होते हुए भी दाक्षिण्य गुण से युक्त हैं । एक पत्नी के रहने पर वे जान बूझकर द्वितीय विवाह नहीं करते, अपितु परिस्थितिवश वैसा करने को प्रस्तुत होते हैं। वासवदत्ता के प्रति उनका प्रगाढ प्रेम है और पपावती से परिणय होने पर भी वासवदत्ता की स्मृति उन्हें बनी रहती है। पद्मावती से विवाह करने के पश्चात् जब विदूषक उनसे वासवदत्ता के सम्बन्ध में पूछता है तो वे उत्तर देते हैं कि पनावती वासवदत्ता की भांति उनके मन को आकृष्ट नहीं करती। वासवदत्ता की मृत्यु हो जाने के पश्चात भी उसका प्रेम उनके हृदय में विद्यमान रहता है। वे वासवदत्ता के प्रति अगाध प्रेम का भाव रखते हुए भी पद्मावती के प्रति उदार बने रहते हैं और उसे किसी प्रकार से दुःख नहीं पहुंचाते । वासवदत्ता के वियोग में असिक्त नेत्र होने पर वे पावती से अश्रुपूर्णनेत्र होने का कारण पुष्पों के पराग नेत्रों में पड़ जाने को कहते हैं। दाक्षिण्य गुण उनमें कूट-कूटकर भरा हुआ है और वे वासवदत्ता के प्रति अपने प्रेम को पपावती पर प्रकट नहीं होने देते। राजा अत्यधिक कलापरायण हैं और मृदु होने के कारण उनमें क्रोध का अभाव है। पर, इनमें शौयं की कमी नहीं है । पंचम अंक में आमणि पर रुमण्वान् द्वारा आक्रमण करने की बात सुन कर वे युद्ध के लिए उचत हो जाते हैं। उनमें गुरुजनों के प्रति सम्मान की भावना है। महासेन तथा बंगारवती के यहां
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