Book Title: Sanskrit Sahitya Kosh
Author(s): Rajvansh Sahay
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 682
________________ स्मृति धर्मशास्त्र] ( ६७१) [स्मृति धर्मशास्त्र तिस्मृति' के अधिकांश उपलब्ध वचन ईशा पूर्व दूसरी शती के हैं । सम्प्रति 'मनुस्मृति' के अतिरिक्त 'नारदस्मृति', 'याज्ञवल्क्यस्मृति' एवं 'पराशरस्मृति' उपलब्ध हैं। इनके अतिरिक्त अन्य स्मृतियां भी प्राप्त होती हैं जिनका प्रकाशन एवं हिन्दी अनुवाद तीन खण्डों में श्रीराम शर्मा द्वारा हो चुका है। कई स्मृतियों का प्रकाशन कलकत्ता से भी स्मृतियों का विषय-धर्मशास्त्र के अन्तर्गत राजा-प्रजा के अधिकार कर्तव्य, सामाजिक आचार-विचार, व्यवस्था, वर्णाश्रमधर्म, नीति, सदाचार तथा शासन सम्बन्धी नियमों का विवेचन किया जाता है। स्मृतियों के माध्यम से भारतीय मनीषियों ने हिन्दूजीवन के सुदीर्घकालीन नियमों का क्रमबद्ध रूप प्रस्तुत किया है। शताब्दियों से प्रचलित सामाजिक रीति-नीति एवं व्यवस्था को सुव्यवस्थित करते हुए उन्हें प्रामाणिकता प्रदान करने का श्रेय स्मृतिग्रन्थों को ही है। अधिकांश स्मृतिग्रन्थ श्लोकबद्ध हैं, किन्तु 'विष्णुस्मृति' में गद्य का भी प्रयोग है। इन ग्रन्थों में प्राचीन भारतीय समाज के रीति-रिवाजों तथा धार्मिक एवं राजनीतिक नियमों पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है। स्मृतिग्रन्थों में सामाजिक नियमों, वर्णाश्रम-व्यवस्था, पति-पत्नी के कर्तव्याकर्तव्य का प्रतिपादन, प्रायश्चित्त, खाद्याखाद्य-विवेचन, दण्डनीति, उत्तराधिकार का नियम, शुद्धि, विवाह, उपनयन आदि सोलह संस्कार, राजधर्म आदि का विवेचन है। स्मृतिग्रन्थों में वर्णित विधान आज के विधि-ग्रन्थों की तरह उस समय राजकीय नियम के रूप में प्रचलित थे। उनका महत्व आज भी हिन्दूसमाज के लिए उसी रूप में विद्यमान है। स्मृतिग्रन्थ अपने युग के विधि ग्रन्थ ही थे, जिनकी स्वीकृति तत्कालीन शासनयन्त्र द्वारा हुई थी और इन्हीं के आधार पर दण्डादि विधान किये जाते थे। स्मृतियों की रचना ६०० ई० पू० से लेकर १८०० ई० तक क्रमबद्ध रूप से होती रही है। इनके प्रमुख विषय या अंग चार हैं-आचार-विषयक, व्यवहारसम्बन्धी, प्रायश्चित्त तथा कर्मफल । इनमें चतुर्वणं एवं चार आश्रमों के आधार पर विविध विधियों का विश्लेषण किया गया है। इस समय स्मृतियों की संख्या १५२ मानी जाती है। 'मनुस्मृति', 'याज्ञवल्क्यस्मृति', 'नारदस्मृति', 'पराशरस्मृति', 'बृहस्पतिस्मृति' के अतिरिक्त अन्य प्रसिद्ध ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं-'धर्मरन' (जीमूतवाहन, १२वीं शती), 'स्मृतिकल्पतरु' (लक्ष्मीधर ), 'ब्राह्मणसर्वस्व' (हलायुध, १२वीं शती), 'स्मृतिचन्द्रिका' (रेवण्णभट्ट, १३वीं शती), स्मृतिसंग्रह' ( वरदराज ), 'चतुवंगचिन्तामणि' ( हेमाद्रि ), 'मदनपारिजात' ( विश्वेश्वर, १४वीं शती ), 'स्मृतिरत्नाकर' ( चण्डेश्वर ), 'कालमाधवीय' (माधव ), 'चिन्तामणि' (वाचस्पति, १५वीं शती), 'सरस्वतीविलास' (प्रतापरुद्रदेव, १६वीं शती.), 'अग्निपरीक्षा' (रघुनन्दन ), 'स्मृतिमुक्ताफल' (वैद्यनाथ दीक्षित ), 'तिथिनिर्णय' ( भट्टोजिदीक्षित, १७वीं शती), 'निर्णयसिन्धु' (कमलाकर भट्ट), 'भगवन्त-भास्कर' (नीलकण्ठ), 'वीर. मित्रोदय' ( मित्र मिश्र )। आधारग्रन्थ-१. धर्मशास्त्र का इतिहास भाग १-काणे (हिन्दी अनुवाद)। २. प्रमुख स्मृतियों का अध्ययन-डॉ. लक्ष्मीदत्त ठाकुर ।

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