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हर्ष या हर्षवर्धन ]
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[हर्ष या हर्षवर्धन
उसे खोजने के लिए जाना, विन्ध्याटवी का वर्णन । अष्टम उच्छ्वास–निर्धात नामक शबर युवक का राज्यश्री की खोज में सहायता देने का वचन तथा हर्ष एवं शबर युवक का दिवाकर मित्र के आश्रम में जाना, हर्ष का आगमन-प्रयोजन का कथन, एक भिक्षु का राज्यश्री की दशा का वर्णन तथा हर्ष का राज्यश्री के निकट जाना, दिवाकर मित्र का हर्ष को एकावली देना, दिवाकर मित्र का राज्यश्री को उपदेश देना तथा राज्यश्री को लेकर हर्ष का सेना में आना, सूर्यास्त चन्द्रोदय-वर्णन ।
अन्तिम घटना के वर्णन से ज्ञात होता है कि कवि ने हर्ष की सम्पूर्ण जीवन-गाषा का वर्णन न कर केवल उनके जीवन की प्रारम्भिक घटनाओं का ही वर्णन किया है। कवि ने 'हर्षचरित' का प्रारम्भ पौराणिक कथा के ढंग पर किया है । ब्रह्मलोक में बिके हुए कमल के आसन पर ब्रह्माजी बैठे हैं जिन्हें इन्द्रादि देवता घेरे हुए हैं। ब्रह्मा की सभा में विद्यागोष्ठियो के चलने का भी वर्णन है । 'हर्षचरित' की रचना आख्यायिका शैली पर हुई है। स्वयं लेखक ने भी इसे आख्यायिका कहा है । 'बाण के अनुसार हर्षचरित' आख्यायिका है और कादम्बरी कथा। आख्यायिका में ऐतिहासिक आधार होना चाहिए। कथा कल्पनाप्रसूत होती है। कम-से-कम हर्षचरित और कादम्बरी के उदाहरण से ऐसा ज्ञात होता है। किन्तु कथा और आख्यायिका के सम्बन्ध में बाण और दण्डी के समय में बहुत कुछ वाद-विवाद था। दण्डी ने उन दोनों का भेद बताने की कोशिश की-जैसे, आख्यायिका का वक्ता स्वयं नायक होता है, कथा का नायक या अन्य कोई; किन्तु यह नियम सब जगह लागू नहीं। फिर नायक स्वयं वक्ता रूप में हो अथवा अन्य कोई व्यक्ति, इसमें कोई बात नहीं होती, इसलिए यह भेद अवास्तविक है। कुछ विद्वानों का मत था कि आख्यायिका में वक्त्र और अपर वक्त्र छन्दों का प्रयोग किया जाता है और उसमें कथांश उच्छ्वासों में बंटा रहता है । यद्यपि दण्डी ने प्रसंगवश कथा में भी इन लक्षणों का होना कहा है और इस भेद को अस्वीकार किया है, तथापि बाण के हर्षचरित में यह लक्षण अवश्य घटित होता है। दण्डी के मत से तो कथा और आख्यायिका में केवल नाम का ही भेद है, दोनों की जाति एक ही है । पर बाण ने हर्षचरित को आख्यायिका और कादम्बरी को कथा माना है। हर्षचरित के आरम्भ में कहा है कि चपलतावश मैं इस आख्यायिकारूपी समुद्र में अपनी जिह्वा का चप्पू चला रहा है। कादम्बरी की भूमिका में उसे वासवदत्ता और बृहत्कथा इन दोनों को मात करनेवाली [ अतिव्यो ] कथा कहा है। हर्षचरित-एक सांस्कृतिक अध्ययन पृ० ५। 'हर्षचरित' के कई हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं, यहां चोखम्बा प्रकाशन की प्रति से सहायता ली गयी है।
आधार ग्रन्थ-१. हर्षचरित ! हिन्दी अनुवाद ] आचार्य जगन्नाथ पाठक । २. हर्षचरित ( हिन्दी अनुवाद ] सूर्यनारायण चौधरी।
हर्ष या हर्षवर्धन-प्रसिद्ध सम्राट् तथा कान्यकुम्ज के राजा। उन्होंने ६०६ ई. से लेकर ६४८ ई. तक शासन किया था। उन्होंने जहाँ बाणभट्ट, मयूर प्रभृति कवियों को अपने यहाँ आश्रय देकर संस्कृत साहित्य की समृद्धि में योग दिया, वहीं स्वयं