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हर्ष-चरित]
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[हर्षचरित
प्रेम करने लगी और दोनों के संयोग से सारस्वत नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। शाप की समाप्ति के पश्चात् दोनों सखिया ब्रह्मलोक चली गई तथा दधीच ने अपने पुत्र सारस्वत को अक्षमाला नामक एक ऋषि पत्नी को लालन-पालन के लिए सौंप दिया। अक्षमाला के पुत्र का नाम वत्स था, बाण ने इसी के साथ अपना संबंध जोड़ा है। उसने अपने साथियों का भी परिचय दिया है तथा बताया है कि प्रारम्भ से ही वह घुमक्कड़ था। द्वितीय उच्छ्वास में राजदर्शन का वर्णन है। द्वितीय उच्छ्वास के प्रारम्भ में ग्रीष्म ऋतु का अत्यन्त विस्तृत वर्णन हुआ है। तत्पश्चात् बाण का प्रीतिकूट ( निवासस्थान ) से बाहर जाने तथा मजकूट और वनग्रामक पार करके राजद्वार पर पहुंचने का वर्णन है। इस प्रसंग में गजशाला, अश्वशाला, दपशात हाथी तथा सम्राट हर्ष का वर्णन किया गया है। बाण ने एक सौ चालीस पंक्तियों के एक लंबे वाक्य में महाराज हर्ष का वर्णन किया है और अन्त में बाण और हर्ष की भेंट तथा दोनों की तीखी बातचीत का वर्णन है। तृतीय उच्छ्वास में राजवंश वर्णन किया गया है। बाण राजधानी से लौट कर घर आता है और अपने भ्राता ( चचेरा भाई ) श्यामल के अनुरोध पर हर्ष का चरित सुनाता है। प्रथमतः श्रीकण्ठजनपदवर्णन, स्थाण्वीश्वर, पुष्पभूति, भैरवाचार्य के शिष्य एवं भैरवाचार्य का वर्णन किया गया है। पुष्पभूति राजा बाण की कल्पना है तथा इसी के साथ हर्ष का संबंध स्थापित किया गया है। चतुर्थ उच्छवास में पुष्पभूति के वंश में प्रभाकरवद्धन का जन्म लेना वर्णित है। तत्पश्चात् प्रभाकरवदन की रानी यशोमती के स्वप्न एवं राज्यवर्टन की उत्पत्ति का वर्णन है। हर्ष की उत्पत्ति एवं राज्यश्री का जन्म होने पर होनेवाले महोत्सव का भी वर्णन किया गया है। राज्यश्री के युवती होने पर उसका विवाह मोखरिनरेश ग्रहवर्मा के साथ होता है। पंचम उच्छवास में महाराज प्रभाकरवर्दन की मृत्यु वणित है। राजा प्रभाकरवद्धन हूणों से युद्ध करने के लिए राज्यवर्द्धन को भेजते हैं। हपं भी उनके साथ जाता है और बीच में आखेट के लिए ठहर जाता है। वहीं पर उसे समाचार प्राप्त होता है कि उसके पिता रोगग्रस्त हैं। मरणासन्न राजा अपने पुत्र को देख कर गले लगाता है। राजा की मृत्यु के कारण शोकाकुल राजभवन तथा रानी के सती होने का वर्णन, प्रभाकरवर्द्धन द्वारा हर्ष को सान्त्वना देना तथा प्रभाकरवर्टन की मृत्यु आदि घटनाएँ इसी उच्छ्वास में वर्णित हैं । षष्ठ उच्छ्वास-राज्यवर्द्धन का लौटना तथा हर्ष को समझाना, हर्षचिन्ता, मालवराज द्वारा ग्रहवर्मा की मृत्यु तथा राज्यश्री को कारावास दिये जाने का समाचार, राज्यवर्धन का क्रोध करना और युद्ध के लिए प्रस्थान, राज्यवर्धन की मृत्यु एवं हर्ष की दिग्विजय की प्रतिज्ञा, गजसेनाध्यक्ष स्कन्द गुप्त को हस्तिसेना संगठित करने का आदेश, स्कन्दगुप्त द्वारा हर्ष को राजाओं के छल-कपट का वर्णन आदि घटनाएं षष्ठ उच्छ्वास में वर्णित हैं। सप्तम उच्छ्वास-हर्ष का विशाल रणवाहिनी के साथ युद्ध के लिए प्रस्थान, सैनिक-प्रयाण से जनता को कष्ट तथा हर्ष द्वारा सेना का निरीक्षण, प्रागज्योतिषेश्वर ( आसाम नरेश ) द्वारा हर्ष को दिव्य पुत्र की भेंट तथा भास्करवर्मा द्वारा भेजे गए अन्य उपहारों का वर्णन । राज्यश्री का परिजनों के साथ विन्य-प्रवेश करने की सूचना तथा हर्ष का अश्वारूढ़ होकर