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शंकराचार्य |
( ६०१ )
[ शंकराचार्य
पादादिकेशान्त ५२ श्लोक, पाण्डुरङ्गाटक, अच्युताष्टक, कृष्णाष्टक, हरमोडेस्तोत्र ४३ श्लोक, गोविन्दाष्टक, भगवन मानसपूजा १७ श्लोक, जगन्नाथाष्टक ।
युगलदेवतास्तोत्र - बर्धनारीश्वरस्तोत्र ९ श्लोक, उमामहेश्वरस्तोत्र १३ श्लोक, लक्ष्मीनृसिंह पब्चरत्न, लक्ष्मीनृसिंहकरुणारसस्तोत्र १७ श्लोक ।
नदी तीर्थ-विषयक स्तोत्र – नर्मदाष्टक, गङ्गाष्टक, यमुनाष्टक ( दो प्रकार का ), afrofengs, काशीपञ्चक ।
साधारणस्तोत्र – हनुमत्पञ्चरत्न ६ इलोक, सुब्रह्मण्यभुजङ्ग ३३ वलोक, प्रातःस्मरणस्तोत्र ४ इलोक, गुर्वष्टक ९ श्लोक |
प्रकरण
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प्रकरण ग्रन्थ - ऐसे ग्रन्थों की संख्या अधिक है, पर यहां मुख्य ग्रन्थों का विवरण दिया जा रहा है -१ अद्वैतपञ्चरत्न - अद्वैततस्व प्रतिपादक ५ श्लोक, २--अद्वैतानुभूति - - ८४ अनुष्टुप् छन्दों में अद्वैततत्त्व का निरूपण । ३ – अनात्मश्री - विगर्हण - इसमें १८ श्लोक हैं तथा आत्मतत्व का साक्षात्कार न करने वालों की निन्दा है । ४ – अपरोक्षानुभूति - १४४ श्लोक में अपरोक्ष अनुभव के साधन तथा स्वरूप का बर्णन । ५ – आत्मपञ्चक — अद्वैतपञ्चरत्न का अन्य नाम । ६ – आत्मबोध - ६८ लोकों में आत्मा के स्वरूप का वर्णन । ७ – उपदेशपञ्चक – ५ श्लोकों में वेदान्त के आचरण का वर्णन । ८ - उपदेशसाहस्री - इसमें गद्यप्रबन्ध एवं पद्यप्रबन्ध नामक दो पुस्तकें हैं । पद्यप्रबन्ध में विविध विषयों पर १९ प्रकरण हैं । ९—कोपीन पञ्चकवेदान्ततस्व में रमण करने वाले व्यक्तियों का वर्णन । १०- - चर्पटपञ्जरिका – १७ श्लोकों में गोविन्दभजन । ११ – जीवन्मुक्तानन्दलहरी - १७ शिखरिणी छन्द में जीवन्मुक्त पुरुष का वर्णन । १२ – तत्वबोध - वेदान्ततस्व का प्रश्नोत्तर के रूप में वर्णन । १३ – तत्त्वोपदेश- -८७ अनुष्टुप् छन्द में आत्मतत्व की अनुभूति । १४दशश्लोकी - आत्मतत्व का १० श्लोकों में वर्णन । १५- द्वादशपञ्जरिका-वेदान्त की शिक्षा १२ पद्यों में । १६ – धन्याष्टक - १० श्लोकों में ब्रह्मज्ञान से धन्य बनाने वाले पुरुषों का वर्णन । १७ – निर्गुणमानसपूजा – ३३ अनुष्टुप् छन्द में निर्गुणतत्त्व का वर्णन । १८ - निर्वाणमञ्जरी - १२ श्लोक में शिवतत्व का निरूपण । १९निर्वाणाष्टक - ६ श्लोक में आत्मरूप का वर्णन । २०- परापूजा - परमात्मा की परापूजा का वर्णन ६ श्लोक में । २१ – प्रवोधसुधाकर - २५७ आर्यायों में वेदान्ततत्व का निरूपण । २२ - प्रश्नोत्तररत्नमालिका – ६७ आर्यायों में वेदान्ततत्त्व का निरूपण । २३ – प्रौढ़ानुभूति - १७ बड़े पद्यों में आत्मतत्त्व का निरूपण । २४ब्रह्मज्ञानावलीमाला – २१ अनुष्टुप् छन्द में ब्रह्म का निरूपण । २५ – ब्रह्मानुचितन - २९ श्लोकों में ब्रह्म स्वरूप का वर्णन । २६ – मनीषापञ्चक – चण्डाल रूपधारी शिव द्वारा शंकराचार्य को उपदेश देने का वर्णन । २७ – मायापञ्चक- -माया के स्वरूप का पांच पद्यों में वर्णन । २८. मुमुक्षुपञ्चक– ५ पद्यों में मुक्ति पाने का उपदेश । २९. योग ताराबली - हठयोग का वर्णन २९ श्लोक में । ३०. लघुवाक्यावृत्ति - जीव मोर ब्रह्म का ऐक्यप्रतिपादन, १८ अनुष्टुप् छन्द में । ३१. वाक्यावृत्ति - ५३ श्लोकों में 'तत्त्वमसि' वाक्य का विशद विवेचन । ३२. विज्ञान नौका- १० श्लोकों में बहै ततस्य