________________
समयमातृका
( ६४०)
[सम्राट्वरितम्
प्रति मोह, पाण्डित्य-प्रदर्शन, शब्दक्रीड़ा आदि विशेषताएँ युग की प्रवृत्ति के अनुसार इस परम्परा में भी समान रूप से समाविष्ट हुई । संस्कृत गीतिकाव्य का विकास पृ० २६६ । ___ आधारप्रन्य-१ हिस्ट्री ऑफ क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर-एम० कृष्णमाघारी। २. हिस्ट्री ऑफ दूतकाव्य ऑफ बंगाल-डॉ. जे. बी. चौधरी। ३. संस्कृत के सन्देशकाव्य-डॉ० रामकुमार आचार्य । ४. संस्कृत साहित्य का इतिहास-गरोला (चौखम्बा)। ५. संस्कृत गीतिकाव्य का विकास-डॉ० परमानन्द शास्त्री। ६. इण्डिया
ऑफिस लाइब्रेरी कैटलॉग भाग २, खण्ड १, २-डॉ. प्राणनाथ तथा डॉ० जे० बी० चौधरी । ७. हिस्टोरिकल एप फिलोसिकल स्टडी ऑफ अभिनवगुप्त-डॉ० के० सी० पाण्डेय ।
समयमातृका-इसके रचयिता क्षेमेन्द्र हैं। 'समयमातृका' का अर्थ है 'समय द्वारा माता' । दामोदर कृत 'कुट्टनीमतम्' से प्रभावित होकर क्षेमेन्द्र ने इसकी रचना की थी। यह वेश्याओं के सिद्धान्तों का प्रतिपादक सुन्दर व्यंग्यप्रधान ग्रन्थ है, जो सम्पत्तिशाली पुरुषों को वेश्याओं के मायाजाल से बचने के लिए लिखा गया है। पुस्तक के अन्त में इस बात का निर्देश है कि इसका प्रणयन काश्मीर नरेश अनन्तदेव के शासनकाल में हुआ था (१०५० ई.)। इसमें आठ समय या परिच्छेद हैं। पुस्तक में एक नापित कुट्टनी का वेश बनाकर किसी वृद्धा कुट्टनी से जिसका नाम कलावती है भविष्य में वेश्या बननेवाली एक स्त्री का परिचय कराता है और उसे शिक्षा दिलाता है। यहाँ कुट्टनी का उपयोग, कामुकजनों को आसक्त करने की कला तथा उनसे धन ऐंठने की विद्या की शिक्षा दी गयी है। [१८५३६० में काव्यमाला संस्था १०, बम्बई से प्रकाशित ] ।
सम्राट्चरितम्-यह बीसवीं शती का महाकाव्य है जिसके रचयिता पं० हरिनन्दन भट्ट हैं । वे बिहार राज्य के अन्तर्गत गया जिला स्कूल के प्रधान पण्डित थे। इस ग्रन्थ का प्रकाशन संवत् १९९० (१९३३ ई.) में हुआ था। इस महाकाव्य में
आंग्ल सम्राट् पंचम जॉर्ज का चरित चार सौ पृष्ठ एवं २५०० श्लोकों में वर्णित है। प्रारम्भ में कवि ने लंडन नगरी का भव्य वर्णन किया है और उसकी तुलना अयोध्या तथा अमरावती से की है। द्वितीय अध्याय में रानी विक्टोरिया के शासन का वर्णन तथा तृतीय में उसके राज्यकाल की प्रशंसा की गयी है। चतुर्थ अध्याय में सप्तम एडवर्ड का विवरण तथा पंचम जॉर्ज के राज्याभिषेक का वर्णन है। पंचम अध्याय में पंचम जॉर्ज की भारत यात्रा एवं समुद्र-यात्रा का मोहक चित्रण किया गया है। षष्ठ अध्याय में काशीनरेश द्वारा सम्राट् के वाराणसी आगमन की प्रार्थना तथा उनके वहाँ आने का वर्णन है। अष्टम अध्याय में दिखी दरवार का भव्य चित्रण तथा नवम में सम्राट् के लंडन प्रत्यावर्तन का वर्णन है। कवि की भाषा प्रवाहपूर्ण एवं प्रौढ़ है। लंडन नगरी का वर्णन
सीमावनी कि रमणीयताया भूमण्डनं लण्डननाम घेया । पारे समुद्र नगरी गरीयोविपेता जयतीह लोके ॥११॥ प्राप्तिस्थान-टाउन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, पौरंगाबाद (बिहार)।