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स्कन्दपुराण]
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[ स्कन्दपुराण
करती हुई सुन्दरी का करुण चित्र अंकित किया है। सप्तम सगं में नन्द अपनी प्रिया का स्मरण कर दुःखी होकर घर लौटने की चेष्टा करता है । अष्टम सर्ग में वह अपने दुःख का कारण किसी श्रमण से पूछता है और वह भिक्षु उसे उपदेश देता है, तथा स्त्रियों की निन्दा करते हुए उसे तपस्या का बिन बतलाता है। दशम सर्ग में बुद्ध द्वारा नन्द को समझाने का वर्णन है। जब बुरको ज्ञात हुआ कि नन्द व्रत तोड़ना चाहता है तो वे उसे आकाश में लेकर उड़ जाते हैं और उसे एक बन्दरी को दिखाकर पूछते हैं कि क्या तुम्हारी पत्नो इससे भी सुन्दर है तो नन्द उत्तर देता है कि 'हा'। इस पर बुद्ध रूपवती देवांगनाओं को दिखाकर पूछते हैं कि क्या तुम्हारी पत्नी इनसे भी सुन्दर है ? इस पर नन्द कहता है कि मेरी पत्नी इनके सामने कानी बन्दरी की भांति है। अप्सराओं को देखकर नन्द अपनी पत्नी को भूल जाता है और उन्हें प्राप्त करने के लिए लालायित हो उठता है । बुद्ध उसे बताते हैं कि तपस्या करने पर ही तुम उन्हें प्राप्त कर सकोगे। एकादश सर्ग में आनन्द नामक एक भिक्षु उसे अप्सरा की प्राप्ति के लिए तपस्या करने पर उसकी खिल्ली उड़ाता है। बारहवें सगं में नन्द तथागत के पास जाकर निर्वाण की प्राप्ति का उपाय पूछता है। त्रयोदश सर्ग में बुर द्वारा नन्द को उपदेश देने का वर्णन है। चतुदंश सर्ग में इन्द्रियों पर विजय प्राप्ति के कर्तव्य का वर्णन तथा पंचदश सगं में मानसिक-शुद्धि की विधि बतलायी गयी है। षष्ठदश सर्ग में बौद्धधर्मानुसार चार आयं सत्य-वर्णन एवं सप्तदश सगं में अमृत-तत्व की प्राप्ति का निरूपण है । अन्तिम सर्ग में नन्द की तपस्या, मार पर विजय एवं उसके अज्ञान का नष्ट होकर ज्ञानोदय होने का वर्णन है । अन्तिम दो श्लोकों में ग्रन्थरचना के उद्देश्य पर विचार किया गया है-इत्यहंतः परमकारुणिकस्य शास्तुः मूना वश्च चरणी च समं गृहीत्वा । स्वस्थः प्रशान्त हृदयो विनिवृत्त कार्यः पाश्र्वान्मुनेः प्रतिययौ विमदः करीब ॥ १८॥६१ ॥
स्कन्दपुराण-क्रमानुसार तेरहवां पुराण । 'स्कन्दपुराण' पुराणों में बहकाय पुराण है जिसमें ८१ हजार श्लोक हैं। इस पुराण का नामकरण शिव के पुत्र स्वामी कात्तिकेय तथा देवताओं के सेनानी के नाम पर हुआ है। इसमें स्वयं स्वामी कात्तिकेय ने ही शैव तत्त्वों का प्रतिपादन किया है। यह पुराण ६ संहिताओं एवं सात खण्डों में विभाजित है। इसके दो संस्करण उपलब्ध होते हैं-खण्डात्मक तथा संहितात्मक । 'मत्स्यपुराण' के ५३ में अध्याय में इस पुराण का जो विवरण प्राप्त होता है उसके अनुसार स्कन्द ने तत्पुरुष कल्प के प्रसंग में 'स्कन्दपुराण' में नाना चरित उपास्यान एवं माहेश्वरधर्म का विवेचन किया था, जिसमें ८१ हजार एक सौ श्लोक थे । यत्र माहेश्वरान् धर्मानधिकृत्यच षण्मुखः। कल्पे तत्पुरषे वृत्ते चरितैरुपबृंहितम् ॥ स्कान्द नाम पुराणं तदेकाशीति निगद्यते । सहस्राणि शतै चैकमिति मत्र्येषु गद्यते। समात्मक विभाजन में इसके खण्डों को संख्या बात है-माहेश्वरखण्ड, वैष्णवखण्ड, ब्रह्मखण्ड, काशीखण्ड, रेवाखण्ड, तापीखण्ड और प्रभासखण। इसकी संहितानुसार श्लोक संस्था इस प्रकार है