Book Title: Sanskrit Sahitya Kosh
Author(s): Rajvansh Sahay
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 672
________________ सोडूडल कृत उदयसुन्दरीकथा ] ( ६६१ ) [ सोमदेव सूरि संख्या ७५६ है । इसका समय १७वीं शताब्दी का प्रथमाधं है । १९०८ ई० में काव्यमाला ग्रन्थमाला ८९, बम्बई से प्रकाशित । १० - पद्मामृततरंगिणी - हरिभास्कर इसके संग्रहकर्ता हैं । समय १७वीं शती का उत्तराद्धं । ११ – सूक्तिसुन्दर — इसके संकलनकर्ता का नाम सुन्दरदेव है। इसका समय १७वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध है । १२ -- कवीन्द्र बचन समुच्चय - १२वीं शताब्दी की हस्तलिखित ( नेपाल की ) प्रति के आधार पर श्री एफ० डब्ल्यू • टॉमस द्वारा इसका सम्पादन हुआ है । इसमें ५२५ पद्यों का संग्रह है । आधारग्रन्थ - १. संस्कृत साहित्य का इतिहास - श्री ए० बी० कीथ ( हिन्दी अनुवाद ) । २. हिस्ट्री ऑफ क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर- डॉ० दासगुप्त एवं डे । ३. संस्कृत साहित्य का इतिहास - पं० बलदेव उपाध्याय । ४. संस्कृत सुकवि समीक्षा - पं० बलदेव उपाध्याय । - सोड्ढल कृत उदयसुन्दरीकथा — इस चम्पूकाव्य के रचयिता सोड्डल, गुजराती कायस्थ थे । ये कोकण के तीन राजाओं - चित्तराज, नागार्जुन तथा सुम्मुनि के राजदरबार में समाहत थे । इनका शिलालेख १०६० ई० का प्राप्त होता है । चालुक्यनरेश वत्सराज की प्रेरणा से इन्होंने 'उदयसुन्दरीकथा' की रचना की थी । 'सुभाषितमुक्तावली' में इनकी प्रशस्ति की गयी है। तस्मिन् सुवंशे कविमौक्तिकानामुत्पत्तिभूमो कचिदेकदेशे । कश्चित् कविः सोढल इत्यजातनिष्पत्तिरासीज्जलबिन्दुरेखा ॥ जडेन तेनोदय सुन्दरीति कथा दुरालोकिनि काव्यमागें । सारस्वतालोककलेकदृष्टा सृष्टा कविमन्य मनोरथेन || 'उदयसुन्दरीकथा' में प्रतिष्ठाननगर के राजा मलयवाहन का नागराज शिखण्डतिलक की कन्या उदयसुन्दरी के साथ विवाह वर्णित है । इसमें बाणकृत 'हर्षचरित' का अनुकरण किया गया है। इसका प्रकाशन गायकवाड ओरियण्टल सीरीज, संख्या ११ काव्यमीमांसा के अन्तर्गत १९२० ई० में हुआ है । आधारग्रन्थ-- चम्पूकाव्य का ऐतिहासिक एवं आलोचनात्क अध्ययन - डॉ० छविनाथ त्रिपाठी । सोमदेव सूरि- प्राचीन भारत के राजशास्त्रप्रणेता एवं कवि । इन्होंने 'नीतिवाक्यामृत' नामक ग्रन्थ की रचना की है । इनका लिखा हुआ 'यशस्तिलकचम्पू' नामक ग्रन्थ भी है । ये जैनधर्मावलम्बी थे । इनके द्वारा रचित तीन अन्य ग्रन्थ भी हैं किन्तु वे अभी तक अनुपलब्ध हैं- युक्ति-चिन्तामणि, त्रिवगंमहेन्द्रमातलि संकल्प तथा षण्णवतिप्रकरण । इसका रचनाकाल १०१६ वि० सं० के आसपास है । नीतिवाक्यामृत गद्यमय है जिसमें छोटे-छोटे वाक्य एवं सूत्र हैं। इसका विभाजन बत्तीस समुद्देश्यों (अध्यायों) में हुआ है जिसमें कुल सवा पन्द्रह सौ सूत्र हैं । इसमें वर्णित विषयों की सूची इस प्रकार है -विद्या को विभाजन - आन्वीक्षिकी, त्रयी, वार्ता एवं दण्डनीति, राज्य की उत्पत्ति, राजा का दिव्यपद, देवी राजा की विशेषता, राज्य का स्वरूप, राजा की नियुक्ति के सिद्धान्त - क्रमसिद्धान्त, आचारसम्पत्ति सिद्धान्त, विक्रमसिद्धान्त, बुद्धिसिद्धान्त, संस्कार सिद्धान्त, चरित्रसिद्धान्त, शारीरिक परिपूर्णता सिद्धान्त उत्तरा

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