________________
स्तोत्रकाव्य या भक्तिकाव्य ]
( ६६७ )
[स्तोत्रकाव्य या भक्तिकाव्य
श्लोक उत्कीर्ण हैं जिसका समय ११२० संवत् (१०६३ ई.) है। इससे यह अनुमान किया जाता है कि उस समय तक इसके ३१ श्लोक ही प्रचलित थे तथा अन्तिम १ श्लोक आगे चल कर बढ़ा दिये गए हैं। इसके टीकाकारों ने 'पुष्पदन्त' को इसका रचयिता माना है, पर मद्रास की कई पाण्डुलिपियों में कुमारिल भट्टाचार्य ही इसके रचयिता के रूप में हैं। इसका रचनाकाल ८वीं शताब्दी है। मयूरभट्ट और बाणभट्ट की दो प्रसिद्ध रचनाएं हैं। दोनों सगे सम्बन्धी थे तथा दोनों की प्रतिष्ठा कान्यकुब्ज नरेश हर्षवर्धन के यहां पी। कहा जाता है कि किसी कारण मयूर एवं बाण दोनों को कुष्ठरोग हो गया था, जिसके निवारण के लिए उन्होंने क्रमशः 'सूर्यशतक' एवं 'चण्डी. शतक' की रचना स्रग्धरावृत्त में की। दोनों में ही १००-१०० श्लोक हैं तथा ह्रासोन्मुखयुग की विशेषताओं का आकलन है। श्लेषसमासान्त पदावली की गाड़बन्धता तथा आनुप्रासिक सौन्दर्य के द्वारा संगीतात्मक संक्रान्तता की व्यंजना इनकी अपनी विशेषता है । दोनों में बाण की रचना कलात्मक समृद्धि की दृष्टि से बढ़कर है।
कालान्तर में जब स्तोत्र-सम्बन्धी प्रचुर साहित्य की रचना हुई तो कवियों का ध्यान उत्तान श्रृंगार, उक्तिवैचित्र्य एवं सुष्ट्र शब्द-विन्यास की ओर गया। फलतः लक्ष्मण आचार्य कृत 'चण्डी-कुच-पंचाशिका' प्रभृति रचनाओं का निर्माण हुआ, जिसमें पचास श्लोकों में देवीजी के कुचों का वर्णन है। शंकराचार्य ने दो सौ वेदान्त-विषयक स्तोत्रों की रचना की है। अद्वैतवाद के प्रतिष्ठापक होते हुए भी उन्होंने विष्णु, शिव, शक्ति, गंगा आदि देवों का स्तवन किया है। इनमें दार्शनिक सिदान्तों के साथ भक्ति का मणिकांचन योग दिखाई पड़ता है। 'शिवापराधक्षमापन' 'मोहमुद्गर', 'चपंटमंजरिका', 'दशश्लोकी', 'आत्मशतक' आदि श्लोकों में 'दार्शनिक सिद्धान्तों की पृष्ठभूमि में भक्ति की मधुर अभिव्यक्ति हुई है।' [दे. शंकराचार्य ] | उन्होंने 'सौन्दर्यलहरी' में देवीजी का दिव्य सौन्दर्य अंकित किया है। कुलशेखर कृत 'मुकुन्दमाला' एवं यामुना. चार्य के 'आलम्बन्दारस्तोत्र' श्रीवैष्णवमत के स्तोत्रों में अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। 'मुकुन्दमाला' में केवल ३४२ श्लोक हैं एवं इनमें हृदयावर्जन की अपूर्व क्षमता है। लीलाशुक रचित 'कृष्णकर्णामृत' महाप्रभु चैतन्य का परमप्रिय स्तोत्र है। इसमें भाव सुन्दर एवं चमत्कारी हैं तथा भाषा रसपेशल है। इसमें ३०० श्लोक तथा तीन आश्वास हैं। यह संस्करण दाक्षिणात्य है पर बंगाल वाले संस्करण में एक ही आश्वास है, जिसमें ११२ श्लोक हैं।
वेंकटध्वरी-ये मद्रास निवासी श्रीवैष्णव थे। इनका स्थितिकाल १७वीं शताब्दी है। इन्होंने 'लक्ष्मीसहस्र' नामक स्तोत्र काव्य में लक्ष्मीजी की स्तुति एक सहस्र श्लोकों में की है। इनकी कविता में पाण्डित्य-प्रदर्शन का आग्रह है तथा श्लोक के प्रति प्रबल आकर्षण दिखाई पड़ता है। ___सोमेश्वर-इन्होंने १०० श्लोकों में 'रामशतक' की रचना स्रग्धरा वृत्त में की है। इसमें राम की जीवन-कथा का वर्णन कर स्तुति की गयी है। भगवान् विष्णु के ऊपर अनेक स्तोत्र लिखे गए हैं। शंकराचार्य नामक कवि कृत 'विष्णुपदादिकेशान्तवर्णन'