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स्तोत्रकाव्य या भक्तिकाव्य ]
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[ स्तोत्रकाव्य या भक्तिकाव्य
हैं, फलतः वह इष्टदेव की गाथा गाकर अपूर्व आत्मतोष प्राप्त करता है। इन स्तोत्रों में मोहकता, हृदयद्रावकता, गेयता तथा कलात्मक समृद्धि का ऐसा रासायनिक सम्मिश्रण है, जिससे इसकी प्रभावोत्पादकता अधिक बढ़ जाती है । सांगीतिक तत्वों के अतिरिक्त शब्द-सौष्ठव एवं अभिव्यक्ति-सौन्दयं स्तोत्रों की व्यंजना में अधिक आकर्षण भर देते हैं । संगीतात्मक परिवेश में काव्यात्मक लालित्य की योजना कर संस्कृत के भक्त कवियों ने ऐसे साहित्य का सर्जन किया है जिसका मादक आकर्षण आज भी उसी रूप में है ।
स्तोत्रसाहित्य की प्रचुर सासग्री उपलब्ध होती है जिसमें कुछ का तो प्रकाशन हुआ है, किन्तु अधिकांश साहित्य अभी तक अप्रकाशित है, और वह हस्तलेखों के रूप में वर्तमान है। मद्रास सरकार की ओरियण्टल मैन्युस्क्रिप्ट लाइब्रेरी में ही पाण्डुलिपियों की सूची तीन भागों में प्रकाशित हो चुकी है ( भाग १५-२० ) । श्री एस० पी० भट्टाचार्य ने १९२५ ई० मे 'इण्डियन हिस्टोरिकल क्वार्टरली' भाग १ ( पृ० ३४०६० ) में इस साहित्य का सौन्दर्योद्घाटन कर विद्वानों का ध्यान आकृष्ट किया था, किन्तु इस सम्बन्ध में व्यापक अध्ययन अभी शेष है ।
स्तोत्रसाहित्य की परम्परा का प्रारम्भ वेदों से ही होता है । वैदिक साहित्य में अनेक ऐसे मन्त्र हैं 'जिनमें मानव आत्मा का ईश्वर के साथ बालक अथवा प्रेमिका जैसा सम्बन्ध स्थापित किया गया है । "ये गीत कोमल और मर्मस्पर्शी आकांक्षाओं, तथा पाप की चेतना से उत्पन्न सत्तानिवृत्ति की दुःखद भावना से युक्त हैं। यह गीतात्मक विशुद्धता कदाचित् ही कभी पूर्णतया निखर सकी है; फिर भी, सूक्तों का विकास एक अभिजात परम्परा के रूप में हुआ है, जिसने क्रमशः एक साहित्यिक प्रकार के रूप में एक विशिष्ट रूप तथा स्वतन्त्र मर्यादा अर्जित कर ली है ।" संस्कृत साहित्य का नवीन इतिहास पृ० ४४२ । 'रामायण', 'महाभारत' तथा पुराणों में भी ऐसे स्तोत्र प्रचुर मात्रा में प्राप्त होते हैं । 'रामायण' में 'आदित्यहृदय स्तोत्र' मिलता है जिसे अगस्त्य मुनि ने राम को बतलाया था । [ रामायण लंकाकाण्ड ] । 'महाभारत' में 'विष्णुसहस्रनाम' प्रसिद्ध स्तोत्र है जिसे भीष्म ने युधिष्ठिर को उपदेशित किया था । 'मार्कण्डेयपुराण' में भी प्रसिद्ध 'दुर्गास्तोत्र' है । इन ग्रन्थों में स्तोत्रकाच्य का रूप तो अवश्य दिखाई पड़ता है, किन्तु कालान्तर में स्वतन्त्र रचनाओं के रूप में पृथक् साहित्य लिखा गया। कालान्तर में हिन्दू भक्तों के अतिरिक्त जैन एवं बौद्ध कवियों ने भी स्तोत्र - काव्य की रचना की। संख्या एवं गुण दोनों ही दृष्टियों से हिन्दू भक्तिकाव्यों का साहित्य जैन एवं बौद्धों की कृतियों से उत्कृष्ट है ।
हिन्दू-स्तोत्र - साहित्य - स्तोत्रों में प्रमुख स्थान 'शिवमहिम्नः स्तोत्र' को दिया जाता है। इसकी रचना शिखरिणी छन्द में हुई है तथा प्रत्येक पद्य में शिव की महिमा का बखान करते हुए एक कथा दी गयी है । सम्प्रति इसके ४० श्लोक प्राप्त होते हैं, पर मधुसूदन सरस्वती ने ३२ इलोकों पर ही अपनी टीका लिखी है। मालवा में नर्मदा नदी के तट पर स्थित अमरेश्वर महादेव के मन्दिर में 'शिवमहिम्नः स्तोत्र' के ३१