Book Title: Sanskrit Sahitya Kosh
Author(s): Rajvansh Sahay
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

View full book text
Previous | Next

Page 670
________________ सुभद्रा] ( ६५९) [ सुश्रुतसंहिता प्रकाश' नाम्नी टीका। छ–'सूर्यसिद्धान्त' की 'सुधावर्षिणी' टीका । च-बाह्मस्फुटसिद्धान्त' की टीका। छ-'महासिद्धान्त' (आर्यभट्ट द्वितीय रचित) की टीका। ज'प्रहलाघव' की सोपपत्तिक' टीका। इन्होंने हिन्दी में भी 'चलनकलन', 'चकराशिकलन', एवं 'समीकरणमीमांसा' नामक उच्चस्तरीय गणित ग्रन्थों का प्रणयन किया है। आधारग्रन्थ-१. भारतीय ज्योतिष का इतिहास-डॉ. गोरखप्रसाद । २. भारतीय ज्योतिष- डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री। सुभद्रा-ये संस्कृत की कवयित्री हैं। इनकी रचनाओं का कोई विवरण प्राप्त नहीं होता, पर वलभदेव की 'सुभाषितावली' में इनका केवल एक पद्य उधृत है । राजशेखर ने इनके कविताचातुर्य का वर्णन इस प्रकार किया है-पार्थस्य मनसि स्थानं लेभे मधु सुभद्रया। कवीनां च वचोवृत्ति-चातुर्येण सुभद्रया ॥ सूक्तिमुक्तावली ४१९५। इनके निम्नांकित श्लोक में स्नेह के दुष्परिणामों का वर्णन है-दुग्धं च यत्तदनु यत् क्वथितं ततोनु, माधुर्यमस्य हृतमुन्मथितं च वेगात् । जातं पुनधृतकृते नवनीतवृत्ति-स्नेहो निबन्धनमनर्थपरम्पराणाम् ॥ स्नेह अनर्थ की परम्परा है। बेचारे दूध के ऊपर स्नेह के कारण ही इतनी आपत्तियां आती हैं। उसे खूब औटा जाता है तथा कांजी या खटाई डालकर इसकी मिठास दूर की जाती है । पुनः इसे जोरों से मथा जाता है तब यह घी के लिए मक्खन का रूप धारण करता है। सुश्रुतसंहिता-आयुर्वेदशास्त्र का सुप्रसिद्ध ग्रन्थ । इस ग्रन्थ के उपदेष्टा का नाम काशिराज धन्वन्तरि है। सम्पूर्ण ग्रन्थ सुश्रुत को सम्बोधित कर रचा गया है । सुश्रुत ने धन्वन्तरि से शल्यशास्त्र-विषयक प्रश्न पूछा है और धन्वन्तरि ने इसी विषय का उपदेश दिया है। इसमें पांच स्थानों-सूत्र, निदान, शरीर, चिकित्सा एवं कल्पमें से शल्य का ही प्राधान्य है। वर्तमान रूप में उपलब्ध 'सुश्रुतसंहिता' के प्रतिसंस्कर्ता नागार्जुन माने जाते हैं । ये द्वितीय शताब्दी में हुए थे और दक्षिण के राजा सातवाहन के मित्र थे। सुश्रुत में १२० अध्याय हैं किन्तु इसमें उत्तरतन्त्र की गणना नहीं होती, यह इसका परिशिष्ट या खिल है । अध्यायों का विवरण इस प्रकार है-सूत्रस्थान ४६, निदान १६, शारीर १०, चिकित्सास्थान ४०, कल्पस्थान ८ तथा उत्तरतन्त्र ६६ । शल्यतन्त्र का क्रियात्मक ज्ञान देना इस ग्रन्थ का मुख्य उद्देश्य है। इसमें शवच्छेद सीखने की विधि भी बतलायी गयी है। इसमें वर्णितागार ( अस्पताल ) का विवरण, यन्तशस्त्र (इनकी संख्या १०० है ) तथा इनके प्रकार-स्वस्तिक, सन्देश, ताल, नाड़ीशलाका एवं उपयन्त्र, शस्त्र की तीक्ष्णता की पहचान, प्लाल्टिक सर्जरी आदि विषयों के वर्णन अत्यन्त विस्तृत हैं। सुश्रुत में रोगियों के पास स्त्रीपरिचारिकाओं का रहना निषिद्ध है। इसके अनेक टीकाकारों के विवरण प्राप्त होते हैं। प्रथम टीकाकार बेज्जट थे। दूसरे टीकाकार हैं गयदास, इनकी टीका का नाम पंजिका है। इस पर अन्य १४ टीकाग्रन्थ उपलब्ध होते हैं। हिन्दी में कविराज अम्बिकादत्त शाम्बी ने इसकी टीका लिखी है। आधारपन्य-आयुर्वेद का बृहत इतिहास-श्री अत्रिदेव विद्यालंकार ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728