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सायण ]
( ६५२ )
सायणाचार्य वेदार्थस्य प्रकाशने ॥ ये पूर्वोत्तरमीमांसे ते व्याख्यायाति संग्रहात् । कृपालुः सायणाचार्यो वेदार्थ वक्तुमुद्यतः ॥ ( तैत्तिरीय संहिताभाष्योपक्रमणिका ) ।
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सायणाचार्य के भाष्य-लेखन का विशेष क्रम है, जिसकी सूचना उनके ग्रन्थों के उपोद्घातों से प्राप्त होती है । सर्वप्रथम 'वैत्तिरीय संहिता' तथा उसके ब्राह्मणों की रचना की गयी है । सायण ने इसका कारण यह दिया है कि यज्ञ-संचालन के समय चार ऋत्विजों में अध्वर्युं की सर्वाधिक महत्ता सिद्ध होती है, अतः सर्वप्रथम इसी की संहिता; अर्थात् यजुर्वेद का भाष्य लिखा गया । 'तैत्तिरीय संहिता' सायणाचार्य की अपनी संहिता थी, क्योंकि वे तैत्तिरीयशाखाध्यायी ब्राह्मण थे। तदनन्तर उन्होंने 'तैत्तिरीय ब्राह्मण' एवं 'तैत्तिरीयमारण्यक' की व्याख्या की। इसके बाद 'ऋग्वेद' का भाष्य लिखा गया । सायण ने होत्रकमं को महत्त्व देते हुए 'ऋग्वेद' को द्वितीय स्थान दिया । 'ऋग्वेद' के पश्चात् 'सामवेद' एवं 'अथर्ववेद' की व्याख्याएं रची गयीं। सभी भाष्यों में 'शतपथब्राह्मण' का भाष्य पीछे लिखा गया है। उन्होंने अपने वेदभाष्य का नाम 'वेदार्थप्रकाश' रखा है तथा उसे अपने गुरु विद्यातीर्थं को समर्पित किया । भाष्यों के रचना-काल के सम्बन्ध में विद्वानों का कहना है कि वि० सं० १४२० से लेकर १४४४ तक के बीच ही इनका लेखन हुआ है, और २४ वर्षों का समय लगा। स्वयं सायण के ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि उन्होंने राजा बुक एवं उनके पुत्र महाराज हरिहर के यहाँ २४ वर्षो तक अमात्य पद का संचालन किया था। बड़ौदा की सेन्ट्रल लाइब्रेरी में सायणरचित 'ऋग्वेदभाष्य' की एक प्रति सं० १४५२ को सुरक्षित है, जिसे सायण का हस्तलेख माना जाता है । सायणाचार्य का निधन वि० सं० १४४४ ई० में हुआ था, अतः उनकी मृत्यु के बाठ वर्ष पूर्व उक्त प्रति तैयार की गयी होगी। सायण ने 'ऋग्वेदभाष्य' की पुष्पिका में बुक महाराज का उल्लेख किया है तथा महाराज हरिहर के सम्बन्ध में भी लिखा है-तस्कटाक्षेण तद्रपं दधतो बुकभूपतेः । अभूद् हरिहरो राजा क्षीराब्धेरिव चन्द्रमाः ॥ वेदभाष्यसंग्रह पृ० ११९ । वेदभाष्यों की रचना के समय सायण की अवस्था लगभग ४८ वर्षो की थी । सायणाचार्य के कतिपय ग्रन्थों में ग्रन्थों के नामों के पूर्व 'माधवी' शब्द लिखा हुआ है तथा उनके द्वारा निर्मित 'धातुवृत्ति' 'माधवीयधातुवृत्ति' के नाम से विख्यात है । 'ऋक्संहिता का भाष्य भी माधवीय के नाम से प्रसिद्ध है । इन नामों को देखकर विद्वानों को भ्रम हुआ है कि उपयुक्त ग्रन्थों के रचयिता माधव ही हैं। पर वास्तविक रचयिता तो सायण ही हैं। रहस्य है माधव द्वारा प्रोत्साहन प्राप्त कर सायण का वेद भाष्य की होना ।
माधवीय नाम का रचना में प्रवृत्त
किया है कि
fago वेदभाष्यों को देखते हुए आधुनिक विद्वानों ने यह सन्देह प्रकट अमात्य जैसे व्यस्त पद को सँभालते हुए सायण ने इतने ग्रन्थों का भाष्य कैसे लिख दिया, अतः ये भाष्य उनकी कृति न होकर उनके निर्देशन में के ग्रन्थ हैं । संवत् १३८६ में नारायण वाजपेयी जी, नरहरि
लिखे गए लिखित एक शिलालेख से इस मत की सोमयाजी तथा पण्डरि दीक्षित को स्वामी के समक्ष चतुर्वेदभाष्य-लेखन के लिए अग्रहार देकर सम्मानित
विभिन्न विद्वानों पुष्टि होती है कि विचारण्य श्रीपाद किया गया था ।