Book Title: Sanskrit Sahitya Kosh
Author(s): Rajvansh Sahay
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 662
________________ सायण] (६५१ ) [सायम 'सामवेद' के प्रमुख देवता सविता या सूर्य हैं। इसमें अग्नि और इन्द्र की भी प्रार्थना की गयी है, पर उनका प्राधान्य नहीं है। इसमें उपासना काण की प्रधानता है तथा अग्निरूप, सूर्यरूप, सोमरूप ईश्वर की उपासना की गयी है। विश्वकल्याण की भावना से भरे हुए इसमें अनेक मन्त्र हैं। गेयता एवं अन्य विषयों की प्रधानता के कारण 'सामवेद' का स्थान अवश्य ही महनीय है। ऋषियों ने प्रचार एवं प्रसार की दृष्टि से गीतात्मकता को प्रश्रय देते हुए 'ऋग्वेद' के मन्त्रों का चयन कर 'सामवेद' का संकलन किया और उसे गतिशैली में डाल दिया, जिससे मन्त्रों में स्वर-सन्धान के कारण अपूर्व चमत्कार का समावेश हुआ। सामवेद के हिन्दी अनुवाद-क. सामवेद (हिन्दी अनुवाद)-श्री तुलसीरामस्वामी। ख-सामवेद (हिन्दी अधुवाद)-श्री जयदेव विद्यालंकार । ग-सामवेद (हिन्दी अनुवाद)-श्री रामशर्मा । आधारग्रन्थ-१. प्राचीन भारतीय साहित्य-विन्टरनिस भाग १, सह १ (हिन्दी अनुवाद)-विन्टरनित्स । २. संस्कृत साहित्य का इतिहास-(हिन्दी अनुवाद) मैक्डोनल। ३. वैदिक साहित्य-सूचना विभाग, भारत सरकार १९५५ ई० । ४. भारतीय संस्कृति-(वैदिकधारा). मंगलदेवज्ञानी । ५. वैदिक साहित्य और संस्कृति-पं० बलदेवउपाध्याय । सायण-आचार्य सायण विजयनगरम् के महाराज बुक तथा महाराज हरिहर के मन्त्री एवं सेनानी थे। वे बुक के यहाँ १३६४-१३७८ ई. तक अमात्यपद पर बासीन रहे तथा हरिहर का मन्त्रित्व १३७९-१३८७ ई. तक किया। उनकी मृत्यु १३८७ ई० में हुई। उन्होंने वेदों के अतिरिक्त ब्राह्मणों पर भी भाष्य लिखा है। उनके लिखे हुए सुप्रसिद्ध भाष्यों के नाम इस प्रकार हैं-संहिता-'तैत्तिरीय संहिता' (कृष्णयजुर्वेद की ), 'ऋग्वेदसंहिता', 'सामवेद', 'काण्व संहिता', 'अथर्ववेदसंहिता' । कुल ५। ब्राह्मण-'तैत्तिरीयब्राह्मण', 'तैत्तिरीयारण्यक', 'ऐतरेयब्राह्मण', 'ऐतरेयमारण्यक', 'ताडय' (पन्चविंश ब्राह्मण), 'सामविधानब्राह्मण', 'आयब्राह्मण', 'देवताध्याय, 'उपनिषद्राह्मण', 'संहितोपनिषदब्राह्मण', 'वंशवाह्मण' तथा 'शतपथब्राह्मण' । कुल १३ । 'तैत्तिरीयसंहिता' के प्रारम्भ में भाष्य-रचना.का उपक्रम दिया हुआ है। जिसके अनुसार महाराज बुक के अनुरोध पर सायणाचार्य ने भाष्यों की रचना की थी। महाराज ने वैदिक साहित्य की व्याख्या लिखने के लिए अपने बाध्यात्मिक गुरु माधवाचार्य से प्रार्थना की। वे 'जैमिनीय न्यायमाला' नामक ग्रन्थ के रचयिता थे, पर अन्य कार्यों में व्यस्त रहने के कारण यह कार्य न कर सके और उन्होंने अपने अनुज सायण से ही यह कार्य सम्पन्न कराने के लिये राजा को परामर्श दिया। माधवाचार्य की इच्छा के अनुसार प्राचार्य सायण को इस कार्य के लिए नियुक्त किया गया और उन्होंने वेदों का भाष्य लिखा । तत्कटाक्षेण तद्रूपं दक्ष बुकमहीपतिः। बादिक्षन्माधवाचार्य वेदावंस्य प्रकाशने ॥ स प्राह नृपति 'राजन् ! सायणाचार्यों ममानुजः । सर्व वेत्येष वेदाना व्याख्यातृत्वे नियुज्यताम् ॥ इत्युक्तो माधवाचार्यण बीरो पुसमहीपतिः। बन्पशाद

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