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सामवेद
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[सामवेद
प्रकार 'साम' का अर्थ हुबा 'ऋक् के साथ सम्बद्ध स्वरप्रधानमायन'। सा च अमश्चेति तत्साम्नः सामत्वम् । तया सह सम्बन; अमो नाम स्वरः यत्र वर्तते तत्साम [१॥३॥२२] । मन्त्र और स्वर का समवाय ही साम कहा जाता है। स्वर में गीतितत्व का समावेश होता है । साम शब्द के अनेक अर्थ किये गए हैं-छन्द की पवित्र पुस्तक', 'यभाषण' तथा संगीत ग्रन्थ आदि। पाश्चात्य विद्वानों ने इसे 'मैजिक सांग' कहा है। उदात्त, अनुदात्त और स्वरित के आधार पर इसके असंख्य भेद किये गए हैं। अंग्रेज विद्वान् साइमन ने स्वरों की संख्या आठ हजार बतलायी है ।
सामवेद का परिचय-'सामवेद' के दो विभाग हैं-वाचिक एवं गान । आचिक शब्द का अर्थ ऋक्-समूह होता है जिसके दो भाग हैं—पूर्वाचिक एवं उत्तराचिक । दोनों की मन्त्र-संख्या १८१० है जिनमें, २६१ मन्त्रों की पुनरावृत्ति हुई है जिससे मन्त्रों की संख्या १५४९ होती है। इनमें ७५ नये मन्त्र हैं, शेष सभी मन्त्र 'ऋग्वेद' के हैं। ये मन्त्र अष्टम और नवम मण्डल से लिये गए हैं। इस दृष्टि से 'सामवेद के अपने मन्त्र केवल ७५ हैं और यह सभी वेदों में छोटा है। विन्टरनित्स का कहना है कि "ऋग्वेद में न मिलने वाले ७५ मन्त्र अन्य संहिताओं में जहां-तहां, और कभी-कभी कर्मकाणपरक ग्रन्थों में भी, प्रकीणं मिलते हैं। सम्भव है इनमें कुछ किसी अज्ञात संस्करण से भी लिये गए हों। वैसे यही प्रतीत होता है कि ऋग्वेद की विखरी पंक्तियों को मिलाकर इनका एक और अर्थहीन-सा संस्करण स्थापित कर दिया गया है, बश । 'ऋग्वेद' और 'सामवेद' में कुछ पाठ-भेद भी मिलते हैं जिनका अभिप्राय यह कहा जाता है कि कोई और प्राचीनतर संहिता थी जो बाज हमें नहीं मिलती।" प्राचीन भारतीय साहित्य, भाग १, खण्ड १ पृष्ठ १२६ । आफेक्त नामक जर्मन विद्वान् ने इन पाठ-भेद के कारणों की भी खोज की है और बताया है कि ये पाठ-भेद जानबूझ कर गान की सुविधा के लिये किये गए हैं। 'सामवेद' का विभाजन 'प्रपाठक' में किया गया है। पूर्वाचिक में ६ प्रपाठक हैं तथा प्रत्येक प्रपाठक दो 'अध' या 'खण' में विभाजित है पौर प्रत्येक खण्ड 'दशति' में विभक्त है। प्रत्येक दशति का विभाजन 'मन्त्र' में हुआ है। पर, प्रत्येक 'दशति' में दस मन्त्रों का सभी जगह निर्वाह नहीं किया गया है; कहीं-कहीं इनकी संख्या ८ और ९ भी है। सम्पूर्ण पूर्वाचिक में ५८५ मन्त्र हैं । उत्तराचिक में नौ प्रपाठक हैं, जिनमें प्रारम्भिक पांच प्रपाठक दो अध भागों में तथा शेष चार में तीन अर्धक हैं। नौ प्रपाठकों में २२ अधं, ११९ खण्ड एवं ४०० सूक्त हैं तथा मन्त्रों की संख्या १८१० है । 'सामवेद' के मूल मन्त्रों को 'योनि के नाम से अभिहित किया जाता है। योनि स्वरों की जननी को कहते हैं । कतिपय पुराणों में 'सामवेद' की एक सहन शाखाओं का उल्लेख किया गया है, पर आज कल इसकी तीन ही शाखाएं प्राप्त होती हैं-कौथुमीय, राणायनीय तथा.जैमिनीय । 'महाभाष्य' में भी 'सामवेद' की सहस्र शाखाओं की पुष्टि होती है-सहस्रवर्मा सामवेदः । कौथुमशाखा अत्यन्त लोकप्रिय है और इसका प्रचार गुजरात में है। इसकी 'ताण्ड्य' नाम की एक शाखा भी प्राप्त होती है । 'ताण्ड्यबाह्मण' एवं 'छान्दोग्य उपनिषद्' का सम्बन्ध इसी शाखा से है। सूत्र-प्रन्थों में 'कलशकल्पसूत्र', 'लाव्यायन धौतसूत्र' तथा