Book Title: Sanskrit Sahitya Kosh
Author(s): Rajvansh Sahay
Publisher: Chaukhambha Vidyabhavan

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Page 647
________________ संकर पाहित्य ] (६३६ ) [संस्कृत साहित्य संस्कृत का 'स्तोत्रसाहित्य' अत्यन्त प्रौढ़ है [ दे० स्तोत्रसाहित्य ]। यह अत्यन्त विद्याल, सरस एवं हृदयग्राही होने के साथ-ही-साथ अभिव्यक्तिकला की निपुणता के लिए प्रसिद्ध है। अनेक दार्शनिकों एवं भक्तों ने अपने इष्टदेव एवं देवियों की प्रार्थना में असंख्य स्तोत्रकाव्यों की रचना की है। इनमें शंकराचार्य, मयूर ( सूर्यशतक) तथा बाणभट्ट (चण्डीशतक ) की देन अत्यधिक महत्वशाली है । पण्डितराज जगन्नाथ की 'गङ्गालहरी' भी स्तोत्रसाहित्य की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। संस्कृत में उपदेशकाव्यों की प्रभूत रचनाएं प्राप्त होती हैं। ऐसे कवियों में क्षेमेन्द्र का नाम अत्यधिक प्रसिद्ध है [३० क्षेमेन्द्र । गव साहित्य-संस्कृत का अधिकांश साहित्य पद्यबद्ध है, किन्तु इसमें जिस परिमाण में गद्य की रचना हुई है, उसका अपना वैशिष्ट्य है। संस्कृत में गद्य-लेखन की कई शैलियां हैं। उपाख्यान, नीतिकथा तथा लोककथाओं के रूप में अनेक ग्रन्थों की रचना हुई है [ दे० संस्कृत गद्य ] । गद्य के दो रूप प्राप्त होते हैं-बोलचाल का सरल गद्य तथा लौकिक साहित्य का प्रौढ़ एवं अलंकृत गद्य । इसका प्रथम रूप शास्त्रीय तथा टीकापन्यों में प्राप्त होता है। शबरस्वामी (पूर्वमीमांसाभाष्य ), शंकराचार्य (वेदान्तभाष्य ) तथा न्यायदर्शन के प्रख्यात भाष्यकार जयन्तभट्ट ने संस्कृत गह की शास्त्रीय शैली का परिनिष्ठित रूप प्रस्तुत किया है । महाभाष्यकार पतन्जलि का गब अकृत्रिम, सहज, सरल तथा प्रवाहपूर्ण है । पुराणों में विशेशतः 'श्रीमद्भागवत्' तथा "विष्णूपुराण' में गव का अलंकृत रूप प्राप्त होता है । संस्कृत गद्य का प्रौढ़ रूप सुबन्धु, दण्डी, बाणभट्ट तथा पं० अम्बिकादत्त व्यास के ग्रन्थों में दिखाई पड़ता है। इनकी रचनाएं साहित्यिक गव का रूप प्रस्तुत करती हैं। संस्कृत में चम्पूकाव्यों की अब परम्परा प्राप्त होती है जिसमें गव और पब का मिषित रूप प्रयुक्त होता है । शताधिक लेखकों ने चम्पूकाव्यों की रचना कर संस्कृत साहित्य में नवीन शैली की रचनाएं प्रस्तुत की हैं जिनमें भट्ट त्रिविक्रम ( नलचम्पू), सोमदेवसूरि ( यशस्तिलकचम्पू), भोजराज (चम्पूरामायण) आदि के नाम उल्लेखनीय हैं [ दे० चम्पूकाव्य ]। संस्कृत में कथा-साहित्य के दो रूप प्राप्त होते हैं-नीतिकथा तथा लोककथा। नीतिकथा में रोचक कहानियों द्वारा सदुपदेश दिया जाता है । इनमें 'हितोपदेश' एवं 'पञ्चतन्त्र' नामक ग्रन्थ अत्यन्त लोकप्रिय हैं। लोककथाएं मनोरंजनप्रधान होती हैं। संस्कृत में गुणाव्यकृत 'बृहत्कथा', सोमदेवरचित "सिंहासनद्वात्रिंशिका' आदि ग्रन्य लोककथा के प्रतिनिधि हैं। संस्कृत का नाट्यसाहित्य अत्यन्त प्रौढ़ एवं विस्तृत है। माव्य ग्रन्थों के साथ-ही-साथ इसमें नाट्यशास्त्रीय ग्रन्थों की भी विशाल परम्परा रही है । भरत ने 'नाट्यशास्त्र' की रचना ईसा पूर्व कई शताब्दी की थी जिससे ज्ञात होता है कि संस्कृत नाट्य साहित्य अत्यन्त प्राचीन है। प्रसिस नाटककारों में भास, कालिदास, शूद्रक, अश्वघोष, विशाखदत्त, हर्ष, भट्टनारायण, भवभूति एवं राजशेखर आदि आते है। संस्कृत में रूपक के दस तथा उपरूपक के १८ प्रकार माने जाते हैं। इन सभी विधाओं के ऊपर इसमें प्रचुर साहित्य उपलब्ध है [ दे० संस्कृत नाटक]। प्राचीन

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