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संसात महाकाव्य ]
(६२८)
[संस्कृत महाकाव्य
प्राप्त हुमा और एक ही काव्य में राम, कृष्ण एवं पाण्डवों की कथा प्रकट होने लगी बोर सर्ग-के-सगं एक ही अक्षर में लिखे जाने लगे।
संस्कृत के प्रसिख महाकाव्यों के नाम-कालिदास ( रघुवंश एवं कुमारसंभव ), बस्वषोष (बुद्धचरित एवं सौन्दरनन्द ), बुद्धघोष (पद्यचूड़ामणि, १० सों में ), भीम या भीमक ( रावणार्जुनीयम्, २७ सर्ग), भर्तृमेष्ठ ( हयग्रीववध ), भारवि ( किरातार्जु. मीयम् ), भट्टि (भट्टिकाव्य ), कुमारदास ( जानकीहरण ), माघ (शिशुपालवध ), रत्नाकर ( हरविजय ५० सर्ग), शिवस्वामी ( कफ्फिणाभ्युदय ), अभिनन्द ( रामचरित ) शंकुक ( भुवनाभ्युदय ), क्षेमेन्द्र ( दशावतारचरित, रामायणमंजरी एवं महाभारतमंजरी), मंखक (श्रीकण्ठचरित), हरिश्चन्द्र (धर्मशर्माभ्युदय ), हेमचन्द्र ( द्वयाश्रयकाव्य, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ), माधवभट्ट ( राघवपाण्डवीय ), चण्डकवि ( पृथ्वीराजविजय ), वाग्भट ( नेमिनिर्माण ) तथा श्रीहर्ष ( नैषधचरित )। [ उपर्युक्त सभी महाकाव्यों का परिचय इस 'कोश' में उनके नामों पर देखिए ।
१३ वीं शती के महाकाव्य-कृष्णानन्द ( सहृदयानन्द, १५ सर्ग), जयरथ (हरचरित चिन्तामणि, ३२ सर्ग), अभयदेव जैन कवि ( जयन्तविजय, १९ सर्ग), अमरसिंह ( सुकृत कीर्तन, ११ सर्ग), श्री बालचन्दसूरि ( वसन्तविलास १४ सर्ग), सोमेश्वर ( सुरथोत्सव १५ सर्ग), अमरचन्द्र (बालभारत, ४४ सर्ग), चन्द्रप्रभसूरि (पाण्डवचरित, १८ सर्ग), वीरनन्दी ( चन्द्रप्रभचरित १८ सर्ग)।
१४ वीं शती के महाकाव्य-नयनचन्द्र ( हम्मीर महाकाव्य १७ सर्ग), वासुदेव कवि ( युधिष्ठिरविजय, नलोदय ) अगस्त्य (बालभारत, २० सर्ग), गङ्गादेवी (मथुराविजय ), महाचार्य ( उदारराषव), वेदान्तदेशिक ( यादवाभ्युदय, २४ )।
१५ वी शती के महाकाव्य-वामनभट्ट (रघुनाथचरित, ३० सर्ग) नलाभ्युदय, ८ सर्ग), जोनराज (जैनराजतरंगिणी), श्रीवर ( जैनराजतरंगिणी ) तथा प्राज्यभट्ट कृत (राजा बलिपताका )।
१६ वीं शताब्दी के महाकाव्य-राजनाथ तृतीय (अच्युतारामाभ्युदय, २० सर्ग), उत्प्रेक्षावहम ( भिक्षाटन काव्य, अपूर्ण ३९ सगं ), रुद्रकवि ( राष्ट्रौढवंश, २० सर्ग), चन्द्रशेखर ( सुजनचरित २० सर्ग)।
१७ वीं शताब्दी के महाकाव्य-यज्ञ नारायण दीक्षित (रघुनाथभूपविजय, १६ सर्ग), राजचूड़ामणि दीक्षित ( रुक्मिणीकल्याण, १० सर्ग), राजा रघुनाथ की पत्नी रामभद्राचा ( रघुनाथाभ्युदय, १२ सगों में अपने पति की वीरता का वर्णन ), मधुरवाणी कवयित्री ( रामायण १४ सर्ग), नीलकण्ठ दीक्षित, अप्पय दीक्षित के पुत्र (शिवलीलावर्णन, २२ सर्ग), जैन दार्शनिक मेषविजयगणि (सप्तसन्धान, ९ सर्ग), [यह श्लेष काव्य है और वृषभनाथ, शान्तिनाथ, पाश्र्वनाथ, नेमिनाथ, महावीर स्वामी, कृष्ण तथा बलदेव पर समान रूप से घटता है, जैन विद्वान् देव विमलगणि (हीर सौभाग्य, १७ सर्ग), चक्रकवि (जानकीपरिणय, ८ सर्ग), अद्वैतकवि ( रामलिंगामृत) मोहनस्वामी (रामचरित ), श्रीनिवास (भूवराहविजय, ८ सर्ग), वरदेशिक [ लक्ष्मीनारायण परित तथा रघुवरविजय ], भगवन्त ( मुकुन्दविलास १० सर्ग)।