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संस्कृत महाकाव्य ]
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[ संस्कृत महाकाव्य
हैं। इनमें कवियों ने दूर की उड़ान भरने तथा हेतुत्प्रेक्षा एवं प्रौढोक्ति के आधार पर लम्बी कल्पना करने का प्रयास किया है। मंखक कृत 'श्रीकण्ठचरित' तथा माघ की रचना में ऐसे अप्रस्तुत विधानों का बाहुल्य है पर 'नैषधचरित' में यह प्रवृत्ति चरम सीमा पर पहुंच जाती है । महाकाव्य की तृतीय पद्धति चरित काव्यों की है जिसमें इतिहास कम एवं कल्पना का रङ्ग गाढ़ा है । दे० ऐतिहासिक महाकाव्य ] ।
संस्कृत महाकाव्य की ऐतिहासिक रूपरेखा का उपसंहार करते हुए यह कहा जा सकता है कि कालिदास ने जिस रससिक्त स्वाभाविक शैली का प्रारम्भ किया था उसका निर्वाह करने वाला उनका कोई भी उत्तराधिकारी न हुआ । कालिदास का शृङ्गार अन्ततः शृङ्गार-कला का रूप लेकर वात्स्यायन का अनुगामी बना, फलतः परवर्ती महाकाव्यकारों ने आंगिक सौन्दर्य का विलासमय चित्र उपस्थित कर मन को उत्तेजित करने का प्रयास किया ।
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बीसवीं शताब्दी - बीसवीं शताब्दी के महाकाव्यों में भाषा, विषय एवं शिल्पविधान की दृष्टि से नवीनता के दर्शन होते हैं कतिपय कवियों ने राष्ट्रीय भावना का भी पवन तथा कितनों ने आधुनिक युग में महापुरुषों के जीवन पर महाकाव्यों की रचना की है। इस युग के महाकाव्यों में प्राचीन तथा नवीन परम्पराओं का शैली और भाव दोनों में ही समाश्रय हुआ है । नोआखाली के अन्नदाचरण ने 'रामाभ्युदय' तथा 'महाप्रस्थान' दो महाकाव्य लिखे हैं । काशी के पं० बटुकनाथ शर्मा ( १८४८१९४४ ) ने 'सीतास्वयंवर', गुरुप्रसाद भट्टाचार्य ने 'श्रीरास', शिवकुमार शास्त्री ने 'यतीन्द्रजीवनचरित' ( योगी भास्करानन्द का जीवन ) नामक महाकाव्यों का प्रणयन किया । मैसूर के नागराज ने १९४० ई० 'सीतास्वयंवर' तथा स्वामी भगवदाचार्य ने २५ सर्गों में 'भारत पारिजात' नामक महाकाव्य लिखा । अन्तिम में महात्मा गान्धी का जीवनवृत्त वर्णित है । विष्णुदत्त कृत 'सोलोचनीय', 'गङ्गा' ( १९५८ ) मेघाव्रतस्वामी कृत 'दयानन्द दिग्विजय', पं० गङ्गाप्रसाद उपाध्याय रचित 'आर्योदय' नामक महाकाव्य इस युग की महत्वपूर्ण कृतियां हैं । अन्य महाकाव्य इस प्रकार हैं- 'पारिजातहरण' ( उमापति शर्मा कविपति) प्रकाशन काल १९५८, श्रीरामसनेही कृत ( जानकी'चरितामृत', द्विजेन्द्रनाथ कृत 'स्वराज्यविजय', श्री हरिनन्दन भट्ट कृत 'सम्राटचरितम्', पं० काशीनाथ शर्मा द्विवेदी रचित 'रुक्मिणीहरणम्' तथा पं० श्री विष्णुकान्त झा रचित 'राष्ट्रपति राजेन्द्रवंश - प्रशस्ति' ।
आधारग्रन्थ -- १. संस्कृत साहित्य का इतिहास -- श्री कीथ ( हिन्दी अनुवाद ) २. हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर - डॉ० डे तथा डॉ० दासगुप्त । ३. संस्कृत साहित्य का इतिहास - पं० बलदेव उपाध्याय । ४. संस्कृत साहित्य का इतिहास - श्री गैरोला । ५. संस्कृत साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास – डॉ० रामजी उपाध्याय । ६. संस्कृत साहित्य का नवीन इतिहास - ( हिन्दी अनुवाद ) - श्री कृष्ण चैतन्य | ७. हिन्दी
महाकाव्य का स्वरूप विकास- डॉ० शम्भूनाथ सिंह । ८. संस्कृत महाकाव्यों की परम्परा - निबन्ध, आलोचना, अक्टूबर १९५१, डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी ।