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संस्कृत शब्द कोश ]
[संस्कृत शब्द कोश
संस्कृत शब्द कोश-संस्कृत में कोश-लेखन की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। वैदिक काल से ही कोशप्रन्यों का निर्माण होने लग गया था, पर वे ग्रन्थ सम्प्रति उपलब्ध नहीं होते, कतिपय ग्रन्थों में केवल उनके उद्धरण ही प्राप्त होते हैं। प्राचीन समय में व्याकरण और कोश के विषयों में अत्यधिक साम्य था और वैयाकरणों ने भी कोशप्रन्थों का प्रणयन किया था। उस समय व्याकरण और कोश दोनों ही शब्दशास्त्र के अंग माने जाते थे। उन विलुप्त कोशों में 'भागुरि-कोश' का एक उद्धरण 'अमरकोश' की टीका में प्राप्त होता है [ दे० अमर टीका सर्वस्व, भाग १, पृ० १११, १२५, १९३ तथा अमरक्षीरटीका पृ० ९, ५, १२] । 'हैम अभिधानचिन्तामणि' की स्वोपज्ञ टीका में भागुरि कृत कोश के उद्धरण प्राप्त होते हैं तथा सायण की 'धातुवृत्ति' (धातुवृत्ति, भू-धातु पृ० ३० ) में भी भागुरि का एक श्लोक उद्धृत है। यही श्लोक 'अमरटीकासर्वस्व' में भी है ( अमरटीका सर्वस्व, भाग १, पृ० १९३)। भागुरिकृत कोशग्रन्थ का नाम 'त्रिकाण्ड' था जिसकी पुष्टि पुरुषोत्तमदेव की 'भाषावृत्ति' (४॥४॥ १४३ ), सृष्टिधर की 'भाषावृत्तिटीका' (४।४।१४३ ) तथा 'प्रभावृत्ति' से होती है। 'शौनकीय बृहदेवता' में बतलाया गया है कि भागुरि ने 'त्रिकाण्ड कोश' के अतिरिक्त अनुक्रमणिका-विषयक कोई दैवत ग्रन्थ की भी रचना की थी [ बृहदेवता ३।१०, २४०, ६।९६, १०७ ] । भानुजी दीक्षित कृत 'अमरकोश' की टीका में आचार्य आपि. शलि का एक वचन उपलब्ध है जिससे ज्ञात होता है कि इन्होंने भी कोश-विषयक ग्रन्थ लिखा था ( अमरटीका, १११।६६ पृ० २८)। शाकटायन तथा व्याधि के भी विलुप्त कोशों के उद्धरण कई ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं, जिनके द्वारा उनके कोश-ग्रन्थों की पुष्टि होती है। केशवकृत 'नानार्थार्णव संक्षेप' में शाकटायन के वचन उद्धृत हैं (नानार्थार्णव संक्षेप, भाग १, पृ० १९) । हेमचन्द्र की 'अभिधानचिन्तामणि' में इस प्रकार का उल्लेख है कि अपने कोशग्रन्थ में व्याडि ने २४ बौद्धजातकों के नाम का उल्लेख किया है (अभिधानचिन्तामणि, देवकाण्ड, श्लोक १४७ की टीका पृ० १००-१०१)।
वैदिक कोश-वैदिक शब्दों का सर्वप्रथम कोश 'निघण्टु' है [दे० निघण्टु एवं निरुक्त यास्क ने 'निघण्टु' पर 'निरुक्त' नामक टीका लिखकर वैदिक शब्दों की व्युत्पत्ति दी है। 'निरुक्त' से ज्ञात होता है कि उनके पूर्व अनेक निघण्टु एवं निरुतग्रयों की रचना हुई थी। आधुनिक युग में कई भारतीय एवं यूरोपीय विद्वानों ने बैंपिक कोशों की रचना की है । भारतीय विद्वानों में श्री विश्वबन्धु शास्त्री ने 'वैदिकशब्दार्थपारिजात' (प्रथम खण्ड १९२९ ई.), सात खण्डों में 'वैदिकपदानुक्रम कोश' 'ब्राह्मणोद्धार कोश' तथा 'उपनिषदोद्धारकोश' नामक प्रसिद्ध कोशों की रचना की है। श्री चम्पतिकृत 'वेदार्थ शब्दकोश' ( तीन खण्डों में ) भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कोश है। अन्य महत्त्वपूर्ण वैदिककोशों में श्री मधुसूदनशर्मा कृत 'वैदिक कोश' श्री हंसराज का 'वैदिक कोश', श्री केवलानन्द सरस्वती कृत 'ऐतरेय ब्राह्मण आरण्यक कोश', श्री गयानन्द शंभूसाधले कृत 'उपनिषद वाक्य महाकोश', श्री लक्ष्मण शास्त्री कृत 'धर्मकोश' के व्यवहारकाण्ड