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शक्तिभद्र ]
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[ शतपथ ब्राह्मण
१७. अनुभाव, १८. धर्मशृङ्गार, १९. अर्थशृङ्गार, २०. कामशृङ्गार, २१. मोक्षशृङ्गार एवं नायक-नायिका भेद, २२. अनुराग वर्णन, २३. संयोग एवं विप्रलम्भ शृङ्गार-वर्णन, २४. विप्रलम्भ वर्णन, २५. पूर्वानुरागविप्रलम्भ वर्णन, २६. प्राप्त नहीं होता, २७. अभियोग विधि का निरूपण, २८. दूती एवं दूतकर्म का वर्णन, २९. दूत-प्रेषण तथा सन्देशदान वर्णन, ३०. भाव स्वरूप, ३१. प्रवास वर्णन, ३२. करुण रस का वर्णन, ३३. सम्भोग का स्वरूप ३४. प्रथमानुरागान्तर सम्भोग, ३५. मानप्रबास एवं करुण अन्तर्गत सम्भोग वर्णन, ३६. चार प्रकार की सम्भोगावस्था का वर्णन |
शक्तिभद्र- ये संस्कृत के नाटककार हैं। इनका निवासस्थान केरल था और ये आद्य शंकराचार्य के शिष्य थे। इन्होंने 'आश्चर्यचूडामणि' नामक नाटक की रचना की है । इस नाटक की प्रस्तावना से ज्ञात होता है कि यह दक्षिण देश में रचित सर्वप्रथम संस्कृत नाटक है । शंकराचार्य का शिष्य होने के कारण इन्हें दशम शतक से पूर्व होना चाहिए । 'आश्चर्यचूडामणि' के अतिरिक्त इनके अन्य नाटकों का भी विवरण प्राप्त होता है तथा 'वीणावासवदत्ता' नामक एक अधूरे नाटक का प्रकाशन भी हो चुका है । 'उन्मादवासवदत्ता' नामक नाटक के भी शक्तिभद्र ही प्रणेता माने जाते हैं । 'आश्चर्यचूडामणि' में रामकथा को नाटकीय रूप में उपस्थित किया गया है। इसका प्रकाशन १९२६ ई० में श्री बालमनोरमा सीरीज, मद्रास से हुआ है। इस नाटक की अपनी विशिष्टता है, आश्चर्यरस का प्रदर्शन। इसमें कवि ने मुख्यतः आश्चर्यरस को ही कथावस्तु का प्रेरक मानकर उसे महत्वपूर्ण स्थान दिया है। सात अंकों में आश्चर्यरस की रोचक परम्परा को उपस्थित किया गया है। नाट्यकला की दृष्टि से इसे राम-सम्बन्धी सभी नाटकों में उत्कृष्ट माना जाता है । कवित्व के विचार से भले ही इसका महत्व कम हो. लेकिन अभिनेयता की दृष्टि से यह एक उत्तम नाटक है।
आधारग्रन्थ- संस्कृत साहित्य का इतिहास - पं० बलदेव उपाध्याय |
हुई थी [ दे० तिलक कृत
शतपथ ब्राह्मण - यह यजुर्वेद का ब्राह्मण है । इसका सम्बन्ध शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन एवं काव्य दोनों संहिताओं से है । सो अध्याय से युक्त होने के कारण इसे 'शतपथ' कहते हैं । इसके ऊपर तीन भाष्य उपलब्ध होते हैं- हरिस्वामी, सायण एवं कवीन्द्र के । इन भाष्यों की भी अनेक टीकाएं हैं। शतपथ ब्राह्मण में ३३ देवताओं का उल्लेख है-८ वसु, ११ रुद्र. १२ आदित्य, १ आकाश तथा १ पृथ्वी । इसके रचनाकाल के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है । तिलक तथा दावगी महाराज के अनुसार इसकी रचना २५०० ई० पू० 'आक्टिक होम ऑफ दी वेदाज' पृ० ३८७, तथा पावगी रचित 'दि वैदिक फादर्स ऑफ जियोलॉजी' पृ० ७२ तथा 'दि आर्यावत्तिक होम एण्ड दि आर्यन क्रेडल इन द सप्तसिन्धुज' पृ० २५, २७ ] । परन्तु प्रसिद्ध महाराष्ट्र विद्वान् श्री शंकर बालकृष्ण दीक्षित ने इसका रचनाकाल शकपूर्व ३१०० वर्ष माना है [ दे० भारतीय ज्योतिष, हिन्दी अनुवाद पृ० १८१, २०५ ]। इसमें विविध प्रकार के ऐसे यज्ञों का वर्णन है जो अन्य ब्राह्मणों में नहीं मिलते। यह ब्राह्मण सभी ब्राह्मणों में इसमें बारह हजार ऋचाएं, आठ हजार यमु तथा चार हजार समय हैं।
विशाल है ।
इसमें