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संसात गद्य]
(६१२)
[ संस्कृत गद्य
इसमें रोचक लोककथाओं का संग्रह है [ दे. वेतालपंचविंशति ] | "विक्रमचरित' या "सिंहासन द्वात्रिंशिका' में ३२ पुतलियों की ३२ कथाएं दी गयी हैं। इसमें राजाभोज को ३२ पुतलियों द्वारा उतनी ही कथाएं सुनाने का वर्णन है। इसके दो रूप मिलते है-पद्यबद्ध एवं गद्यबद्ध। इसका समय १३ वीं शताब्दी से प्राचीनतर नहीं है [ दे० सिंहासन द्वात्रिंशिका ] । 'शुकसप्तति' में एक सुग्गे द्वारा अफ्नो गृहस्वामिनी को कथा सुनाने का वर्णन है जो अपने पति के परदेश-गमन पर भ्रष्टाचार में प्रवृत्त होने जा रही है। इसका समय १० वीं शताब्दी है [ दे० शुकसप्तति ] । संस्कृत में जैन लेखकों ने अत्यन्त ही मनोरंजक कहानियां लिखी हैं। इन्होने लोक प्रचलित धून, विट, मूर्ख एवं स्त्रियों से सम्बद्ध कथाएं लिखी है । 'भरटक द्वात्रिंशिका' इसी प्रकार की रचना है जिसमें प्रचलित लोकभाषा के भी पद्य यत्र-तत्र प्राप्त होते हैं। जैन लेखक हैमविजय गणि ने 'कथारत्नाकर' नामक २५६ छोटी-छोटी कथाओं का ग्रन्थ लिखा है, जिसका निर्माणकाल १७ वीं शताब्दी है। जैन कथाओं का मुख्य उद्देश्य जैन सिद्धान्त के प्रचार का रहा है, अतः साहित्यिक तत्त्व गोण पड़ गया है।
जेन कवियों ने संस्कृत में विशेष प्रकार के पद्य ग्रन्थों का निर्माण किया है जिन्हें 'जैनप्रवन्ध' कहा गया है। इन प्रबन्धों में बोल-चाल की भाषा में अधं ऐतिहासिक पुरुषों की जीवनी लिखी गयी है। सरल शैली का प्रयोग होने के कारण इनकी लोकप्रियता अधिक रही है। इन प्रबन्धग्रन्थों में 'प्रबन्धचिन्तामणि' एवं 'प्रबन्धकोश' नामक दो ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। प्रबन्ध-चिन्तामणि की रचना मेरुतुंगाचार्य ने १३०५ ई० में की थी। इसमें पांच प्रकाश या खण्ड हैं। प्रथम प्रकाश में विक्रमार्क, सातवाहन, मुंज तथा मूलराज-सम्बन्धी कथानक हैं। द्वितीय में धारानरेश भोज का वर्णन है। तृतीय प्रकाश में सिद्धराज और जयसिंह की कथाएं हैं तथा चतुर्थ में कुमारपाल, वीरधवल तथा इनके महामन्त्री दानवीर जैन वस्तुपाल तथा तेजपाल का विवरण है। पंचम प्रकाश में लक्ष्मणसेन, जयचन्द्र, वराहमिहिर, भर्तृहरि, वैद्य वाग्भट आदि के प्रबन्ध हैं। __ प्रबन्धकोश के रचयिता राजशेखर हैं। इसमें २४ प्रसिद्ध पुरुषों का वर्णन है तथा निर्माणकाल १४०५ संवत् है। इन पुरुषों में १० जैनधर्म के आचार्य, ४ संस्कृत के कवि, ७ प्राचीन एवं मध्यकालीन राजा तथा ३ जैनधर्मानुरागी गृहस्थ हैं। इसकी भाषा व्यावहारिक एवं सीधी-सादी है । वल्लालसेन कृत 'भोजप्रबन्ध' संस्कृत की अत्यन्त लोकप्रिय रचना है। इसका रचनाकाल १६ वीं शताब्दी है [ दे० भोजप्रबन्ध ] । आनन्दा रचित 'माधवनलकथा' एवं विद्यापति कवि-विरचित 'पुरुष-परीक्षा' नामक पुस्तके भी संस्कृत कथा साहित्य की उत्तम रचनाएं हैं। ___ संस्कृत गद्य-किसी भी साहित्य का प्रारम्भ पद्य से होता है। चूकि पद्य में संगीत का तत्व सहज रूप से लिपटा रहता है, अतः मनुष्य नैसर्गिक रूप से उसकी
ओर आकृष्ट होता है । गेयतस्व की ओर सहज आकर्षण होने के कारण मानवीय चेतना पद्य के परिवेश में भावेष्टित रहती है। पद्य में भावना का प्राधान्य होता है और गद्य में विचार के तस्य प्रबल होते हैं। संस्कृत साहित्य वैदिक गीतों के रूप में ही प्रस्फुटित