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संस्कृत कथा साहित्य]
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[संस्कृत कथा साहित्य
में इसके दो सौ अनुवाद हो चुके हैं [ दे० पन्चतन्त्र] | फारस और भारत का सम्बन्ध स्थापित होने पर वहां के राजाओं ने अपने विद्वानों के द्वारा संस्कृत कथा-साहित्य का अनुवाद कराया था। 'बुरजोई' नामक हकीम ने ५३३ ई० में पहले-पहल 'पञ्चतन्त्र' का पहलवी या प्राचीन फारसी में अनुवाद किया। इस अनुवाद के पचास वर्षों के भीतर ही इसका अनुवाद सिरिअन भाषा में (५६० ई० ) किसी पादरी द्वारा प्रस्तुत हुआ । इस अनुवाद का नाम 'कलिलग और दमनग' था जो करकट और दमनक नामक नामों का ही सीरिअन रूप था। सीरिअन अनुवाद के आधार पर इसका भाषान्तर अरबी में हुआ जिसका नाम 'कलीलह और दमनह' है। अरबी अनुवाद अन्दुवा बिन अलमुकफफा नामक विद्वान् ने ७५० ई० में किया था। अरबी भाषा से इसके अनुवाद लैटिन, ग्रीक, जर्मन, फ्रेंच, स्पैनिश एवं अंगरेजी प्रभृति भाषाओं में हुए । ग्रीक की सुप्रसिद्ध कहानियां 'ईशाप की कहानियां' एवं अरब की कहानी 'अरेबियन नाइट्स' का आधार पन्चतन्त्र की ही कहानियां बनीं। इन कहानियों का मध्ययुग में अत्यधिक प्रचार हुवा और लोगों को यह ज्ञान भी नहीं हुमा कि ये कहानियां भारतीय हैं। पञ्चतन्त्र का मूल संस्करण प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् हटैल ने अत्यन्त परिश्रम के साथ प्रकाशित किया है। इसमें पांच विभाग हैं जिन्हें मित्रभेद, मित्रलाभ, सन्धि-विग्रह, लग्ध. प्रणाश एवं अपरीक्षित-कारक कहा जाता है। इसके लेखक विष्णु शर्मा नामक व्यक्ति हैं। ग्रन्थकार ने अपने प्रारम्भ में अन्त तक कहानियों के माध्यम से सदाचार की शिक्षा दी है।
पन्चतन्त्र के आधार पर संस्कृत में अनेक नीतिकथाएं लिखी गयीं जिनमें हितोपदेश' अत्यन्त लोकप्रिय है। इसके रचयिता नारायण पण्डित हैं तथा इसका रचनाकाल १४ वीं शताब्दी के निकट है [ दे० हितोपदेश ] । संस्कृत लौकिक कथा की अत्यन्त महत्वपूर्ण रचना 'बृहत्कथा' है। इसका मूल रूप पैशाची भाषा में गुणाढ्य नामक लेखक द्वारा रचित था जो राजा हाल के सभा-पण्डित थे। इसका मूल रूप नष्ट हो चुका है और इसके तीन संस्कृत अनुवाद प्राप्त होते हैं-गुषस्वामीकृत 'बहत्कथा. श्लोक-संग्रह', क्षेमेन्द्रकृत 'बृहत्कथा-मंजरी' तथा सोमदेव कृत 'कथासरित्सागर'। इन तीनों अनुवादों में गुणाढ्य रचित 'बड्डकहा' का मूल रूप कितना सुरक्षित है प्रमाण-भाव में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। बृहत्कथा की कहानियों के नायक नरवाहनदत्त हैं। वे अपने मित्र गोमुख की सहायता प्राप्त कर अपनी प्रियतमा मदनमंजूषा के साथ व्याह करने में समर्थ होते हैं तथा उन्हें विद्याधरों का साम्राज्य भी प्राप्त होता है। बृहत्कथा का महत्त्व दण्डी, सुबन्धु, बाणभट्ट एवं त्रिविक्रमभट्ट नामक कवियों ने भी स्वीकार किया है। १. भूतभाषामयीं प्राहुरभुतार्था बृहत्कथाम्-काव्यादशं ११२८ । २. बृहत्कथालम्बैरिव सालभंजिकानिवहैः-वासवदत्ता। ३. धनुषेव गुणाइयेन निःशेषो रजितो जनः-नलचम्पू १४ । ___ संस्कृत के अन्य प्रसिद्ध लोक-कथाओं में 'वेतालपञ्चविधति', 'सिंहासनानिशिका', 'शुकसप्तति' आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। 'वेतालपंचविंशति' में २५ कयामों का संग्रह है जिसके लेखक शिवदास नामक व्यक्ति हैं। इनका समय १४८७ के पूर्व है।