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संस्कृत गद्य ]
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[ संस्कृत गद्य
शताब्दी के अन्त एवं सप्तम शताब्दी के प्रारम्भ में हुआ था। इसमें प्रत्यक्षरश्लेषकौशल के द्वारा प्रबन्ध-रचना को चातुरी प्रदर्शित की गयी है । दण्डो ने 'दशकुमारचरित' एवं 'अवन्तिसुन्दरीकथा' नामक दो गद्यकाव्यों की रचना की है । दण्डी के बाद बाणभट्ट ने 'हर्षचरित' एवं 'कादम्बरी' की रचना कर संस्कृत गद्य का अत्यन्त प्रोज्ज्वल एवं प्रौढ़ रूप प्रस्तुत किया। बाण के अनुकरण पर संस्कृत में अनेक ग्रन्थों की रचना हुई जिनमें धनपाल - कृत 'तिलक्रमंजरी' ( १००० ई०) बादीर्भासहरचित 'गद्य चिन्ता - मणि' ( ११ वीं शती) सोढल्लकृत 'उदयसुन्दरी' कथा ( ११०० ई०) अगस्तकृत 'कृष्णचरित' ( १४०० ई०), वामनभट्टबाणरचित 'वेमभूपालचरित' ( १६०० ई० ) आदि ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। पं हृषीकेश भट्टाचार्य ( १८५० - १९१३ ई० ) ने 'प्रबन्धमंजरी', पं० अम्बिकादत्त व्यास ने 'शिवराजविजय' ( १९०१ ई० ) नामक ग्रन्थों की रचना की है ।
बीसवीं शताब्दी में अनेक लेखकों ने संस्कृत में पाश्चात्त्य उपन्यासों के ढंग पर ऐतिहासिक, सामाजिक एवं राजनैतिक गद्यग्रन्थों की रचना की है तथा कतिपय ग्रन्थ महापुरुषों तथा राष्ट्रीय नेताओं के चरित्र पर लिखे गए हैं। इस शताब्दी में अनेक त्रैमासिक, मासिक, पाक्षिक एवं साप्ताहिक पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ है जिनमें संस्कृत गद्य अत्यन्त व्यवहारोपयोगी होता जा रहा है। ऐसी पत्रिकाओं में 'संस्कृतरत्नाकर', 'भारती' एवं 'गाण्डीव' प्रभृति प्रमुख है । मैसूर राज्य के श्री नरसिंहाचार्य ने 'सौदामिनी ( बीसवीं शती का प्रारम्भ ) नामक उपन्यास की रचना की है जिसमें मगधनरेश शूरसेन एवं विदर्भ की राजकुमारी सौदामिनी की प्रणयगाथा वर्णित है । आचार्य श्रीशैल ने (जन्म १८९३ ई० ) 'मेनका' नामक पौराणिक उपन्यास की रचना की है। बीसवीं शती का उत्कृष्ट उपन्यास 'कुमुदिनीचन्द्र' है जिसके लेखक हैं मेघव्रताचायं । यह उत्कृष्ट कोटि का काव्यात्मक उपन्यास है। इसमें वीरवर केसरीसिंह के पुत्र चन्द्रसिंह एवं कुमुदिनी के प्रणय का वर्णन है । यह उपन्यास १६ कलाओं में विभक्त है । इसमें व्यंग्यरूप से वर्तमान युग की समस्याओं पर विचार किया गया है । सन् १९५६ ई० में शरदाश्रम विद्यामन्दिर के प्रधानाध्यापक 'लोकमान्य तिलकचरित' नामक ग्रन्थ की रचना की है जिसकी आद्यन्त छोटे-छोटे वाक्यों से युक्त है। इसकी रचना १८ पर्वो में हुई है तथा तिलक के जन्म से लेकर उनकी मृत्यु तक का इतिवृत्त प्रस्तुत किया गया है । श्रीभगीरथ प्रसाद त्रिपाठी ने 'कथासंवतिका' नामक पुस्तक ०६ कथाओं का वर्णन किया है। ये कथाएं Treat के लिए विशेष रुचिकर हैं। पं० रामनारायण शास्त्रो कृत 'कौमुदीकथा- कल्लोलिनी' नामक गद्यकाव्य का प्रकाशन १९६० ई० में ( चौखम्भा प्रकाशन ) हुआ है ! इसमें लेखक ने 'लघुकोमुदी' के सूत्रों का नरवाहनदत्त की कथाओं के आधार पर हृदयंगम कराया है। श्रीनिवास शास्त्री 'कृत 'चन्द्रमहीपति' नामक अन्यन्त सुन्दर उपन्यास प्रकाशित हुआ है [ दे० चन्द्रमहीपति ] । अनेक लेखकों ने संस्कृति, इतिहास, विज्ञान, मनोविज्ञान दर्शन, नीतिशास्त्र एवं व्याकरण पर भी ग्रन्थों का प्रणयन किया है जिनसे !
श्रीकृष्ण वामन चितले ने भाषा अत्यन्त सरल एवं
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