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शिवपुराण ।
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[शिवपुराण
रुद्रकादश संहिता-१३०००। ७. कैलास संहिता-६००० । ८. शतरुद्रसंहिता१००००। ९. कोटिरुद्र संहिता--१००००। १०. सहस्रकोटि संहिता-१०००० । ११. वायुप्रोक्त संहिता-५००० । १२. धर्म संहिता-४०००। योग १०००००। ___ तत्र शैवं तुरीयं यच्छावं सर्वार्थसाधकम् । ग्रन्थलक्षप्रमाणं तद् व्यस्तं द्वादशसंहितम् ॥ निर्मितं तच्छिवेनैव तत्र धर्मः प्रतिष्ठितः। तदुक्तेनैव धर्मेण शेवास्त्रैवर्णिका नराः ॥ एकजन्मनि मुच्यन्ते प्रसादात्परमेष्ठिनः। तस्माद्विमुक्तिमिच्छन् वै शिवमेव समाश्रयेत् ॥ कहा जाता है कि इस लक्षश्लोकात्मक शिवपुराण की रचना साक्षात् भगवान् शंकर ने की थी जिसका व्यास जी ने २४ सहस्र श्लोकों में संक्षिप्तीकरण किया। 'शिवपुराण' का निर्देश अल्बेरूनी के भी प्रन्थ में मिलता है। उसने पुराणों की दो सूचियां दी हैं जिनमें एक में शिवपुराण का नाम है तथा दूसरी में वायुपुराण का। इससे विदित होता है कि शिवपुराण की रचना १०३० ईस्वी के पूर्व हो चुकी थी। इसकी कैलास संहिता में ( १६ वें १७ वें अध्याय में ) प्रत्यभिज्ञादर्शन के सिद्धान्तों का विवेचन है जिसमें शिवसूत्र के दो सूत्रों का स्पष्ट निर्देश है । चैतन्यमात्मेतिमुने शिवसूत्रं प्रवर्तितम् ॥ ४४ ॥ चैतन्यमिति विश्वस्य सर्वज्ञान-क्रियात्मकम् । स्वातन्त्र्यं तत्स्व. भावो यः स आत्मा परिकीर्तितः ।। ४५ ॥ इत्यादि शिवसूत्राणं वार्तिकं कथितं मया । ज्ञानं बन्ध इतीदं तु द्वितीयं सूत्रमोशितु ॥ ४६॥ (कैलास संहिता ) इसमें शिवसूत्र के वात्तिकों का भी स्पष्टतः उल्लेख किया गया है । शिवसूत्र के रचयिता वसुगुप्त हैं जिनका समय ८५० ई० है। अतः शिवपुराण का समय दशमी शती युक्तिसंगत है। इस प्रकार यह वायुपुराण से अर्वाचीन हो जाता है। शिवपुराण में तान्त्रिक पद्धति का बहुशः वर्णन प्राप्त होता है, अतः इसे तांत्रिकता से युक्त उपपुराण मानना चाहिए । शिवपुराण शिव-विषयक विशाल पुराण है जिसमें शिव से सम्बद अनेक कथाओं, चरित्रों, पूजा पद्धतियों तथा दीक्षा-अनुष्ठानों का विस्तारपूर्वक वर्णन है। इसके रुद्रसंहिता में दक्षप्रजापति की पुत्री सती का चरित्र ४३ अध्यायों में विस्तार के साथ दिया गया है जिसमें सती द्वारा सीता का रूप धारण करने तथा रामचन्द्र की परीक्षा लेने का वर्णन है। इसी प्रकार पार्वतीखण्ड में पार्वती के जन्म, तपश्चरण एवं शिव . के साथ उनके विवाह का विस्तृत वर्णन उपलब्ध होता है। वायवीय संहिता में शैव-दर्शन के सिद्धान्तों का भी प्रतिपादन किया गया है जिस पर तांत्रिकता का पूर्ण प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। इसमें शैवतन्त्र से सम्बद्ध उपासना-पद्धति का भी विवरण दिया गया है। शिवपुराण का यह विषय वायुपुराण से नितान्त भिन्न है। शिवपुराण में पुराणपंच लक्षण की पूर्ण व्याप्ति नहीं होती तथा इसमें सर्ग, प्रतिसगं, मन्वन्तरादि के विवरण नहीं प्राप्त होते । यत्र-तत्र केवल संग के ही विवरण मिलते हैं। महाभारत में वायुप्रोक्त तथा ऋषियों द्वारा प्रशंसित एक पुराण का उल्लेख किया गया है जिसमें अतीतानागत से सम्बद्ध चरितों के वर्णन की बात कही गयी है । उपलब्ध वायुपुराण में इस श्लोक के विषय की संगति सिद्ध हो जाती है। अतः वायुपुराण निश्चित रूप से-शिवपुराण से प्राचीनतर सिद्ध हो जाता है। शिवपुराण में राजाओं की वंशावली नहीं है। इसके मुख्य विषय इस प्रकार हैं-शिवपूजाविधि, तारकोपाख्यान, शिव की