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शिक्षामन्य]
( ५६९ )
[शिक्षाग्रन्थ
श्लोक हैं तथा इसका सम्बन्ध शुक्ल यजुर्वेदीय वाजसनेयी संहिता से है। इस ग्रन्थ में वैदिक स्वरों का सोदाहरण विवरण प्रस्तुत किया गया है तथा लोप, आगम, विकार और प्रकृतिभाव नामक चार सन्धियां भी वर्णित हैं। वर्णो के भेद, स्वरूप एवं पारस्परिक साम्य-वैषम्य का भी इसमें वर्णन है । ३. वासिष्ठी शिक्षा-इसका सम्बन्ध वाजसनेयी संहिता से है। इसमें बताया गया है कि 'शक्लयजुर्वेद' में ऋग्वेद के १४६७ मन्त्र हैं और यजुषों की संख्या २८२३ है । ४. कात्यायनी शिक्षा-इसमें केवल १३ श्लोक हैं। इस पर जयन्त स्वामी की संक्षिप्त टीका प्राप्त होती है । ५. पाराशरी शिक्षा-इसमें कुल १६० श्लोक हैं तथा स्वर, वर्ण सन्धि आदि का विवेचन है। ६. माण्डव्य शिक्षा-यह यजुर्वेद का शिक्षाग्रन्थ है। इसमें केवल ओष्ठय वर्णो का संग्रह है। ७. अमोघानन्दिनी शिक्षा-इसमें १३० श्लोक हैं और स्वरों तथा वर्णों का विवेचन है। ८. माध्यान्दिनी शिक्षा-यह दो रूपों में प्राप्त होती है-गद्यात्मक एवं पद्यात्मक । इसमें द्वित्व नियमों का विवेचन है। ९. वर्णरत्न-प्रदीपिका-इसमें २२७ श्लोक हैं। इसके लेखक भरद्वाजवंशी अमरेश हैं। इसमें वर्णों और स्वरों का विस्तार के साथ विवेचन है। १०. केशवी शिक्षा-इसके रचयिता केशव देवज्ञ हैं जो गोकुल देवज्ञ के पुत्र हैं। इसके दो रूप प्राप्त होते हैं-प्रथम में माध्यन्दिन शाखासम्बन्धी परिभाषाएं तथा द्वितीय में २१ पदों में स्वर का विचार है। ११. महशमं शिक्षा-इसमें कुल ६५ पद्य हैं तथा रचयिता का नाम है महशर्मा । ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे और इनके पिता का नाम खगपति था (उपमन्युगोत्रीय)। इसका रचनाकाल १७८१ संवत् है। १२. स्वराङ्कश शिक्षा-इसमें २५ पद्यों में स्वरों का विवेचन है। रचयिता का नाम है जयन्त स्वामी। १३. षोडश-श्लोकी शिक्षा-इसमें १६ पचों में वर्ण और स्वरों का विवेचन किया गया है। इसके लेखक रामकृष्ण नामक कोई विद्वान् हैं। १४. अवसान-निर्णय-शिक्षा-इसका सम्बन्ध शुक्ल यजुर्वेद से है। लेखक का नाम है अनन्तदेव । १५. स्वर-भक्ति लक्षण-शिक्षा-इसमें स्वरभक्ति का सोदाहरण विवेचन है । लेखक का नाम है महर्षि कात्यायन । १६. प्रातिशाख्य-प्रदीप-शिक्षा-इसमें स्वर, वर्ण आदि के सभी विषयों का विवेचन अनेक प्राचीन शिक्षाग्रन्थों के मतों को देते हुए किया गया है। इसके लेखक हैं बालकृष्ण जिनके पिता का नाम सदाशिव है। १७. नारदीय शिक्षा-इसका सम्बन्ध सामवेद से है। इस पर शोभाकरभट्ट ने विस्तृत टीका लिखी है। १८. गौतमी शिक्षा-यह सामवेद की अत्यन्त छोटी शिक्षा है। १९. लोमशी शिक्षा यह भी सामदेव की शिक्षा है। २०. माण्डूकी शिक्षा-इसमें १७९ श्लोक हैं । इसका सम्बन्ध अथर्ववेद से है। ___ इनके अतिरिक्त क्रमसन्धान शिक्षा, गलहशिक्षा, मनःस्वार शिक्षा नामक अन्य शिक्षाविषयक ग्रन्थ हैं जिनके रचयिता याज्ञवल्क्य ऋषि माने जाते हैं। अन्य ५० शिक्षाग्रन्थों का भी पता चला है जो हस्तलेख के रूप में विद्यमान हैं। इन ग्रन्थों में प्राचीन भारतीय भाषाशास्त्र एवं उच्चारणविद्या का गम्भीर अनुशीलन किया गया है। सभी ग्रन्थ 'शिक्षा-संग्रह' के नाम मे १८९३ ई० में बनारस संस्कृत सीरीज से प्रकाशित हो चुके हैं।