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शिवस्वामी ]
( ५७३ )
[ शिशुपालवध
में इन्होंने इस प्रकार गर्वोक्ति की है— अन्धास्ते कवयो येषां पन्याः क्षुण्णः परैर्भवेत् । परेषां तु यदाक्रान्तः पन्थास्ते कविकुल्जराः ।। १।१७ ।
शिवस्वामी - ये 'कफ्फिणाभ्युदय' नामक महाकाव्य के प्रणेता एवं काश्मीरनरेश अवन्तिवर्मा के सभापण्डित थे । अवन्तिवर्मा का शासनकाल ८५५ ई० से लेकर ८८४ ई० तक माना जाता है । राजतरंगिणी में इनका विवरण इस प्रकार है -- मुक्ताकणः शिवस्वामी कविरानन्दवर्धनः । प्रथां रत्नाकरश्चागात् साम्राज्येऽवन्तिवर्मणः || ५|३४| इस महाकाव्य ( कफ्फिणाभ्युदय ) के चरितनायक 'कफ्फण' हैं जो भगवान् बुद्ध के द्वारा पराजित होकर उनकी शरण में आते हैं, और तभी उनका अभ्युदय होता है । इसमें ऋतुवर्णन की शृङ्गारमयी परम्परा का पूर्ण पालन किया गया है । कफ्फ कफ्फिण दक्षिणदेश या लीलावती के राजा थे जिनका आख्यान बोद्धसाहित्य में प्रसिद्ध है । इन्होंने श्रावस्ती के राजा प्रसेनजित को हराया था । कफ्फण की ही कथा को शिवस्वामी ने २० सर्गों में वर्णित कर महाकाव्य का रूप दिया है । इस महाकाव्य में अलंकृत महाकाव्यों की तरह चित्रयुद्ध का वर्णन १८ में सगं में ( चित्रकाव्य के रूप में किया गया है । १९ वें सगं में संस्कृत- प्राकृत मिश्रित भाषा का प्रयोग है तथा प्रत्येक सगं के अन्तिम श्लोक में 'शिव' शब्द का प्रयोग होने के कारण इसे शिवांक कहा गया है | शिवस्वामी शैवमतावलम्बी थे। इनकी कविता में अनुप्रासमयी शैली, शब्दों का सुगुम्फन एवं सरस भावों का सुन्दर निदर्शन है ।
शिवादित्य मिश्र - ये वैशेषिकदर्शन के आचार्य हैं । इनका समय १०वीं शताब्दी है । इन्होंने 'सप्तपदार्थी' नामक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ का प्रणयन किया है जिसमें न्याय एवं वैशेषिक सिद्धान्त का समन्वय किया गया है । इन्होंने 'लक्षणमाला' नामक एक अन्य महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की है जिसमें वैशेषिकदर्शन का स्वतन्त्र रूप से विवेचन किया गया है। ये मिथिला-निवासी थे । शिवादित्य मिश्र ने 'अभाव' को सप्तम पदार्थ के रूप में वर्णित किया हैं । श्रीहर्ष ने 'खण्डनखण्डखाद्य' नामक ग्रन्थ में इनके सिद्धान्तों ( प्रमालक्षण ) की आलोचना की है ।
आधारग्रन्थ - १. इण्डियन फिलॉसफी, भाग २ - डॉ० राधाकृष्णन् । २. भारतीयदर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय । ३. भारतीय दर्शन - डॉ० उमेश मिश्र ।
शिशुपालवध - महाकवि माघ द्वारा रचित महाकाव्य [ दे० माघ ] । इसमें कवि ने युधिष्ठिर के राजसूय के समय कृष्ण द्वारा शिशुपाल के वध का वर्णन किया है, जो २० सर्गों में समाप्त हुआ है ।
कृष्ण के
आकाशमार्ग से औद्धत्य का
उतर कर वर्णन कर कहते हैं।
के
शिशुपाल का वध करने की इच्छा प्रकट की है
।
नारदजी शिशुपाल
प्रथम सर्ग - इसका प्रारम्भ देवर्षि नारद के पास आने से होता है । नारदजी उनसे शिशुपाल कि इन्द्र के वध की प्रार्थना कर आकाशमार्ग से पुनः चले जाते हैं । द्वितीय श्रीकृष्ण, बलराम एवं उद्धव मन्त्रणागृह में पहुँच कर तत्कालीन समस्याओं पर विचार करते हैं । श्रीकृष्ण उनसे शिशुपाल के वध की बात करते हैं । उसी समय युधिष्ठिर के राजसूय का भी निन्त्रमण आ जाता है। इस सगं में राजनीति का सुन्दर वर्णन है ।
सगं - इस सगं में