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श्रीनिवास चम्पू ]
( ५८६ )
[ श्रीमदभागवतपुराण
श्रीनिवास चम्पू(- इस चम्पूकाव्य के रचयिता वेंकट नामक कवि हैं । इनके विषय में कुछ भी विवरण प्राप्त नहीं होता है । 'श्रीनिवासचम्पू' के दो भाग हैंपूर्व विलास तथा उत्तरविलास । पूर्वबिलास पाँच उच्छ्वासों में विभक्त है और उत्तर बिलास में पांच उल्लास हैं । पूर्वविलास में कथावस्तु का विकास दिखलाया है तो उत्तरविलास में वाग्विलास का चमत्कार । पूर्वविलास के प्रथम परिच्छेद में राजा श्रीनिवास का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया गया है। द्वितीय में पद्मावती का राजा द्वारा दर्शन तथा तृतीय में पद्मावती का विरह-वर्णन है । चतुथं में राजा श्रीनिवास का नारायणपुर (पद्मावती का निवासस्थान ) में बकुला द्वारा संदेश प्रेषण तथा बकुला की सहायता से राजा श्रीनिवास एवं पद्मावती का मिलन वर्णित है । पञ्चम उच्छ्वास में विधि-विधान के द्वारा दोनों का विवाह वर्णित है । उत्तरविलास में विभिन्न देशों से आये हुए कवियों का वाग्विलास तथा समस्यापूर्ति के साथ राजा श्रीनिवास की प्रशस्ति की गयी है । सम्पूर्ण काव्य में उक्ति चमत्कार तथा श्लेष एवं यमक की छटा प्रदर्शित होती है और कवि का मुख्य उद्देश्य काव्यकौशल का प्रदर्शन रहा है जिसमें वह पूर्ण सफल हुआ है । यमक का चित्र देखिए - कमलाकमला यस्य ताक्ष्यंस्ताक्ष्यों धरापते । नन्दिनी नन्दिनी यरय स ते राजन् वरोवरः । पृ० ८५ । इस काव्य का प्रकाशन गोपालनारायण कं० से हो चुका है ।
-डॉ०
आधारग्रन्थ - चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन - छविनाथ त्रिपाठी ।
श्रीपति - ज्योतिषशास्त्र के भाचार्य । इन्होंने गणित एवं फलित दोनों प्रकार के ग्रन्थों की रचना की है। ये अपने समय के महान् ज्योतिर्विद् माने जाते थे। इनका समय १०३९ ई० के आसपास है । इनके द्वारा रचित ग्रन्थ हैं— 'पाटीगणित', 'बीजगणित', 'सिद्धान्तशेखर' ( तीनों ग्रन्थ गणित ज्योतिष के हैं ), 'श्रीपतिपद्धति', 'रत्नावली', 'रत्नसार' एवं 'रत्नमाला' ( सभी ग्रन्थ फलित ज्योतिष के हैं ) । प्रबोधचन्द्रसेन ने 'खण्डखाद्यक' नामक ज्योतिष ग्रन्थ की अंगरेजी टीका ( पृ० ९३ ) में बतलाया है कि 'श्रीपति के पहले किसी भारतीय ज्योतिषी ने काल- समीकरण के उस भाग का पता नहीं लगा पाया था जो रविमागं की तियंकता के कारण उत्पन्न होता है' । भारतीय ज्योतिष का इतिहास पृ० १६८। ये न केवल गणित ज्योतिष के ही मंमंश थे, अपितु ग्रहवेध-क्रिया के भी जानकार थे। इन्होंने 'सिद्धान्तशेखर' नामक ग्रन्थ में 'ग्रहवेध-क्रिया के द्वारा 'ग्रह- गणित' की वास्तविकता जानने की विधि का संकलन किया है । इन्होंने सरल एवं बोधगम्य शैली में अपने ग्रन्थों का प्रणयन किया है । सिद्धान्तशेखर, मक्किभट्ट कृत टीका के साथ कलकत्ता से १९४७ में प्रकाशित, सम्पादक - बबुआ मिश्र । आधारग्रन्थ - १. भारतीय ज्योतिष का इतिहास- डॉ० गोरखप्रसाद । २. भारतीय ज्योतिष - डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री ।
श्रीमद्भागवतपुराण - क्रमानुसार ५ व पुराण । 'श्रीमद्भागवत' को महापुराण की संज्ञा से विभूषित करते हुए सम्पूर्ण पुराणों में इसका प्राधान्य प्रदर्शित किया गया है । इसे 'ब्रह्मसम्मित' कहा जाता है - 'इदं भागवतं नाम पुराणं ब्रह्मसम्मितम्' । स्वयं