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शोभाकर मित्र ]
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[श्रीकृष्णविलास चम्पू
आचार्य हैं ( ९०० ई० ) ये सोमानन्द के शिष्य थे। इन्होंने 'ईश्वरप्रत्यभिज्ञाकारिका' नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की है। इनके अन्य ग्रन्थ हैं-अजडप्रमातृसिलि, ईश्वर सिद्धि, तथा सम्बन्ध-सिद्धि, शिवस्तोत्रावली। अभिनवगुप्त उत्पलाचार्य के शिष्य एवं लक्ष्मणगुप्त के शिष्य थे। इनका 'तन्त्रालोक' मन्त्रशास्त्र का महाकोश माना जाता है । इनके. अन्य ग्रंथ हैं-ईश्वरप्रत्यभिज्ञाविमशिनी, तन्त्रसार आदि । दे. अभिनवगुप्त । इस दर्शन के अन्य प्रसिद्ध आचार्य क्षेमराज ( ९७५-१०२५) हैं। ये अभिनवगुप्त के शिष्य थे। इनके ग्रन्थ है--शिवसूत्रविमशिनी, स्वच्छन्दतन्त्र, विज्ञानभैरव, नेत्रतन्त्र पर उद्योत टीका, प्रत्यभिज्ञाहृदय, स्पन्दसन्दोह, शिवस्तोत्रावली की टीका सहित ।
आधारग्रन्थ-१. भारतीय साधना, और संस्कृति भाग १,२-म. म. डॉ. गोपीनाथ कविराज । २. भारतीयदर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय । ३. शैवमतडॉ. यदुवंशी।
शोभाकर मित्र-मलंकारशास्त्र के आचार्य । इनका समय संवत् १२५० से १९५० के बीच है। इन्होंने 'अलंकाररत्नाकर' नामक अलंकार-विषयक ग्रन्थ की रचना की है। इसमें सूत्रशैली में १३३ अलंकारों का विवेचन है तथा वृत्तियों के द्वारा उनका स्वरूप स्पष्ट किया गया है। लेखक ने अनेक अलंकारों-रूपक, स्मरण, भ्रान्तिमान, सन्देह, अपहति आदि के संबंध में नवीन तथ्य प्रकट किये हैं यथा ४१ नवीन बलंकारों का वर्णन है । 'अलंकार रत्नाकर' में कुल १११ अलंकार वर्णित हैं। इसमें बढ़ाये गए अलंकारों की सूची इस प्रकार है-असम, उदाहरण, प्रतिमा, विनोद, व्यासंग, वैधयं, अभेद, वितर्क, प्रतिभा, क्रियातिपत्ति, निश्चय, विध्याभास, सन्देहाभास, विकल्पाभास, विपर्यय, अचिन्त्य, अशक्य, व्यत्यास, समता, उद्रेक, तुल्य, अनादर, आदर, अनुकृति, प्रत्यूह, प्रत्यादेश, व्याप्ति, आपत्ति, विधि, नियम, प्रतिप्रसव, तंत्र, प्रसंग, बधमानक, अवरोह, अतिशय, शृङ्खला, विवेक, परभाग, उभेद एवं गूढ़। शोभाकर मित्र का अलंकार विवेचन अत्यन्त प्रौढ़ है। इनके अलंकार-निरूपण के लिए दे० लेखक का शोधप्रबन्ध-"अलंकारों का ऐतिहासिक विकास : भरत से पपाकर तक" अलंकार रत्नाकर का प्रकाशन ओरियन्टल बुक एजेन्सी, पूना ( १९४२ ई० ) से हो
चुका है।
बाधारग्रन्थ-अलंकारानुशीलन-राजवंश सहाय 'हीरा' चौखम्बा प्रकाशन ।
शौनकोपनिषदू-इसका प्रकाशन आड्यार लाइब्रेरी की एकमात्र पाण्डुलिपि के आधार पर हुआ है। इसमें एकाक्षर 'ॐ' की उपासना का महत्व प्रतिपादित किया गया है तथा असुरों पर देवों की विजय एवं इन्द्र का महत्त्व वर्णित है। इसके अन्त में शौनक ऋषि का उल्लेख उपदेष्टा के रूप में है और यही इसके नाम का रहस्य भी है।
श्रीकृष्णविलास चम्पू-इस चम्पूकाव्य के रचयिता नरसिंह सूरि कवि हैं। इनके पिता का नाम अनन्त नारायण एवं माता का नाम लक्ष्मी था। इसमें कवि ने सोलह माश्वासों में भागवत की कथा का वर्णन किया है। रचना में वर्णन विस्तार पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होता है और इसकी भाषा प्रवाहपूर्ण है। कलानिधि नामक