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होती है। वह युग भारतीय इतिहास में विकेन्द्रीकरण का काल रहा है जब देश अनेक छोटे-छोटे स्वाधीन राज्यों में बंटा हुआ था जिनमें हूणों द्वारा संस्थापित राज्य भी था जो विदेशी आक्रान्ता थे । शूद्रक ऐसे छोटे-छोटे नरेशों में था जिसको या तो सता प्राप्ति के लिए स्वयं कोई छोटा-मोटा संघर्ष करना पड़ा था या फिर किसी सत्तापहरण वाले कांड में उसकी गहरी दिलचस्पी थी ।
ख - शूद्रक का व्यक्तित्व रोमांटिक था । उसे यह चिन्ता नहीं थी कि वह कोई मौलिक प्रणयन करे। भास की रचना उसे मिली और कुछ नवीन तत्त्वों को जोड़कर, उसने मिट्टी की गाड़ी रच दी क्योंकि वह साधारण मिट्टो का मनुष्य था." 'मृच्छकटिक' का प्रणयन-काल ईसा की छठी शताब्दी का पूरा अन्तराल रहा होगा । महाकवि शूद्रक पृ० १३७-३८ । दण्डी के 'काव्यादर्श में 'मृच्छकटिक' का पद्य 'लिम्पतीव तमोऽङ्गानि ' उधृत है । दण्डी का समय विद्वान् ७०० ई० मानते हैं, इस दृष्टि से भी शूद्रक का समय ईसा की छठी शताब्दी ही निश्चित होता है ।
शूद्रक की एकमात्र यही रचना प्राप्त होती है । मृच्छकटिक में दस अंक हैं, अतः शास्त्रीय दृष्टि से इसे प्रकरण की संज्ञा दी गयी है। इसमें कवि ने ब्राह्मण चारुदत्त एवं वेश्या वसन्तसेना के प्रणय प्रसंग का वर्णन किया है । 'मृच्छकटिक' कई दृष्टियों से संस्कृत का विशिष्ट नाटक सिद्ध होता है । इसमें रंगमंच का शास्त्रीय टेकनीक अत्यधिक गठित है और रूढ़ि एवं परम्परा को विशेष महत्व नहीं दिया है। इसका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग इसका हास्य है । कथानक की विभिन्नता एवं वस्तु का वैचित्र्य, चरित्रों की बहुलता एवं उनकी स्वतन्त्र तथा स्पष्ट वैयक्तिकता घटनाचक्र का गतिमान संक्रमण, सामाजिक राजनीतिक क्रान्ति और उच्चकोटि का हास्य मृच्छकटिक को विश्व नाटक के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करते हैं [ दे० मृच्छकटिक ] | नाटककार एवं कवि दोनों ही रूपों में शूद्रक की प्रतिभा विलक्षण सिद्ध होती है । डॉ० कीथ का कहना है कि " इस रूपक के गुण इतने पर्याप्त हैं कि लेखक की अनुचित प्रशंसा अनावश्यक । इसके रचयिता माने जाने वाले शूद्रक को सर्वदेशीय होने का गौरव प्रदान किया गया है। 'कविताकामिनी के विलास' कालिदास और वश्यवाक् भवभूति में चाहे जितना अन्तर हो किन्तु मृच्छकटिक के लेखक की तुलना में इन दोनों का परस्पर भावनासाम्य कहीं अधिक है; शकुन्तला और उत्तररामचरित की रचना भारत के अतिरिक्त किसी भी देश में संभव नहीं थी, शकुन्तला एक हिन्दू नायिका है, माधव एक हिन्दू नायक है, जब कि संस्थानक, मैत्रेय और मदनिका विश्वनागरिक हैं । परन्तु यह दावा स्वीकार्य नहीं है । मृच्छकटिक अपने पूर्ण रूप में एक ऐसा रूपक है जो भारतीय विचारधारा और जीवन से ओतप्रोत है ।" संस्कृत नाटक पृ० १३८ । वस्तुतः मृच्छकटिक के पात्र भारतीय मिट्टी के पात्र होते हुए भी सार्वभौम भी हैं, इसमें किसी प्रकार की द्विधा नहीं है ।
शुद्रक की शैली अत्यन्त सरल, आकर्षक तथा स्पष्टता एवं सादगी से पूर्ण है । इन्होंने ऐसी भाषा का प्रयोग किया है जो क्लिष्ट पदावली से रहित तथा लम्बे-लम्बे समासों से मुक्त है। मुख्यतः इन्होंने वैदर्भी रीति का ही प्रयोग किया है किन्तु यत्र