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शूद्रक]
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[ शूद्रक
तत्र आवश्यकतानुसार गोड़ी रीति भी अपनायी गयी है। भावानुसार भाषा में परिवर्तन करने के कारण ही यह शैली-भेद दिखाई पड़ता है । इनकी अभिव्यक्ति सबल है । ये अल्प शब्दों के द्वारा चित्र खींचने की कला में दक्ष हैं। इन्होंने लम्बे-लम्बे चित्रणों से यथासम्भव अपने को बचाया है और इसी कारण इनकी रचना रङ्गमन्चोपयोगी हो गयी है । पर कहीं-कहीं जैसे, वसन्तसेना के घर का विस्तृत वर्णन एवं वर्षा का विशद चित्रण मन को उबाने वाले सिद्ध होते हैं। शृङ्गार और करुण रसों के चित्रण में शूद्रक सिद्धहस्त हैं। इन्होंने दोनों ही रसों के बड़े ही मोहक चित्र अंकित किये हैं'धन्यानि तेषां खलु जीवितानि ये कामिनीनां गृहमागतानाम् । आर्द्राणि मेघोदकशीतलानि गात्राणि गात्रेषु परिष्वजन्ति ॥ ५॥४९ ।' उन्हीं मनुष्यों का जीवन धन्य है; जो स्वयं घर में आई हुई कामिनियों के वर्षा जल से भीगे एवं शीतल अङ्गों को अपने अङ्गों से आलिङ्गन करते हैं।' वसन्तसेना की शृङ्गारोद्दीपक ललित गति का चित्र देखने योग्य है-किं यासि बालकदलीव विकम्पमाना रक्तांशुकंपवनलोलदलं बहन्ती ॥ रक्तोत्पलप्रकरकुडूमलमुत्सृजन्ती टळेमनः शिल गुहेव विदार्यमाणा ।। १।२०। 'अस्त्र द्वारा विदारित मनःशिला के समान लाल-लाल समूहों को (पद-पद्यों से) अंकित कर रही हो, वायु के स्पर्श से अंचल चंचल हो रहा है। इस प्रकार लाल वस्त्र धारण कर नवीन केले के समान क्यों कांपती हुई जा रही है।'
कवि ने प्रकृति चित्रण उद्दीपन के रूप में किया है। पंचम अंक का वर्षा-वर्णन अत्यन्त सुन्दर बन पड़ा है। प्राकृत-प्रयोग की दृष्टि से मृच्छकटिक एक अपूर्व प्रयोग के रूप में दिखाई पड़ता है। इसमें सात प्राकृतों का प्रयोग है-शौरसेनी, मागधी, प्राच्या, शकारी, चाण्डाली, अवन्तिका एवं ढक्की। इस नाटक में कवि ने अनेक ऐसे विषयों के वर्णन में सौन्दयं ढूंढ़ा है जिनकी ओर किसी का ध्यान भी नहीं जाता। शक्लिक के मुख से यज्ञोपवीत की उपयोगिता का वर्णन सुनने योग्य है-'एतेन मापयति भित्तिषु कर्ममार्गानेतेन मोचयति भूषणसंप्रयोगान् । उद्घाटको भवति यन्त्रहढे कपाटे दष्टस्य कीटभुजगैः परिवेष्टनन्च ।। ३।१६ ।' 'इससे सेंध फोड़ते भीत नापी जाती है । इससे अंगों में संलग्न आभूषण निकाले जाते हैं। यह किसी द्वारा दृढ़तापूर्वक बन्द किवाड़ खोलने में सहायक होता है तथा विषैले जीवों तथा सर्पो के काटने पर उसे बांधने में काम
देता है।'
आधारग्रन्थ-१-हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर-दासगुप्त एवं डे । २संस्कृत नाटक-कीथ (हिन्दी अनुवाद)। ३-इण्डियन ड्रामा-स्टेन कोनो। ४-इन्द्रोडक्शन टू द स्टडी ऑफ मृच्छकटिक-जी वी० देवस्थली। ५-प्रिफेस टु मृच्छकटिक-जी० के० भट । ६-द थियेटर ऑफ हिन्दूज-एम. एच. विल्सन । ७-संस्कृत ड्रामा-इन्दुशेखर । ८-संस्कृत साहित्य का इतिहास-पं. बलदेव उपाध्याय । ९-संस्कृत सुकवि-समीक्षा-पं० बलदेव उपाध्याय । १०- संस्कृत कवि. दर्शन-डॉ. भोलाशंकर व्यास। ११-संस्कृत काव्यकार-डॉ. हरिदत्त शास्त्री। १२-मृच्छकटिक-चौखम्बा संस्करण ( हिन्दी-टीका ) भूमिका भाग-पं. कान्तानाष शास्त्री तैलंग। १३-शूदक-पं० चन्द्रबली पाण्डेय । १४-महाकवि शूद्रक-डॉ.