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शूरक
(५७८ )
[भूक
में कुशल, जागरूक, वैदिकों में श्रेष्ठ, तपोनिष्ठ तथा शत्रुओं के हाथी से मल्लयुद्ध करने की अभिलाषा करने वाले राजा थे। 'समरव्यसनी प्रमादशून्य' ककुदो वेदविदां तपोधनश्च । परवारणबाहुयुद्धलुब्धः क्षितिपालः किल शूद्रको बभूव ॥ ५॥ द्विरदेन्द्रगतिश्च. कोरनेत्रः परिपूर्णेन्दुमुखः सुविग्रहश्च । द्विजमुख्यतमः कविवंभूव प्रथितः शूद्रक इत्यगाधसस्वः ॥६॥' शूद्रक राजा का उल्लेख अनेक संस्कृत ग्रन्थों में प्राप्त होता है। स्कन्दपुराण में भी शूद्रक का वर्णन है और वेतालपञ्चविंशति, कथासरित्सागर एवं कादम्बरी में शूद्रक राजा का उल्लेख प्राप्त होता है । इषंचरित में शूद्रक को चकोर के राजा चन्द्रकेतु का शत्रु कहा गया है। स्कन्दपुराण में विक्रमादित्य के सत्ताइस वर्ष पूर्व राज्य करने का शूद्रक का वर्णन है। इन सारे ग्रन्थों के विवरण से ज्ञात होता है कि शूद्रक नाम उदयन की भांति लोककथाओं के नायक का है। यदि शूद्रक को इस प्रकरण का रचयिता माना जाय तो कई प्रकार की आपत्तियां उठ खड़ी हो जाती हैं। प्रसिद्ध नाटककार अपने मरण की बात स्वयं कैसे लिख सकता है ? अतः ऐसा प्रतीत होता है कि प्रस्तावना के पद्य -शूद्रक रचित नहीं हैं। तब प्रश्न उठता है कि ये पद्य किसके द्वारा बौर क्यों जोड़े गए हैं। इस प्रश्न के समाधान में अनेक प्रकार के विवाद उठ खड़े हुए हैं और अनेक पाश्चात्य पण्डित मृच्छकटिक को शूद्रक-कर्तृक होने में सन्देह प्रकट करते हैं। डॉ. पिशेल के मतानुसार मृच्छकटिक का रचयिता दण्डी है। उनका कहना है कि दण्डी के नाम पर तीन प्रबन्ध प्रचलित हैं। उनमें दो हैं-दशकुमारचरित और काव्यादर्श, तथा तीसरी कृति मृच्छकटिक ही है। श्रीनेरूरकर ने भास को ही इसका रचयिता माना है। पर, ये दोनों ही कल्पनाएँ ठीक नहीं हैं क्योंकि मृच्छकटिक के रचयिता के रूप में शूद्रक का ही नाम प्रचलित है, भास और दण्डी का नहीं। यदि वे दोनों इसके प्रणेता थे तो उनके नाम प्रचलित क्यों नहीं हुए ? मृच्छकटिक की प्रस्तावना में शूद्रक राजा बतलाये गए हैं और न तो दण्डी ही राजा हैं और न भास ही। अतः ये कल्पनायें निराधार हैं। डॉ. सिलवा लेवी का मत है कि किसी अज्ञातनामा कवि ने मृच्छकटिक की रचना कर उसे शूद्रक के नाम से प्रसिद्ध कर दिया है। श्री लेवी शूद्रक को इसका रचयिता मानने के पक्ष में नहीं हैं। इसके मूल लेखक ने इसे प्राचीन सिद्ध करने के लिए ही लेखक के रूप में शूद्रक का नाम दे दिया है। डॉ. लेवी ने अपने मत की पुष्टि में जो तकं दिये हैं उनमें कोई बल नहीं है। डॉ. कीथ ने शूद्रक नाम को अजीब मान कर इसे काल्पनिक पुरुष कहा है। 'इन उल्लेखों से प्रतीत होता है कि शूद्रक एक निजंधरी व्यक्ति मात्र थे। उनका विचित्र नाम, जो असामान्य प्रकार के राजा के लिए हास्यास्पद है, इस तथ्य का समर्थन ही करता है।' संस्कृत नाटक पृ० १२६ ।
कीप के अनुसार इसका रचयिता कोई दूसरा व्यक्ति है। पर इनका प्रथम मत इस माधार पर खण्डित हो जाता है कि शूद्रक का उल्लेख अनेक प्राचीन ग्रन्थों में है, और वे काल्पनिक व्यक्ति नहीं हैं। उनका उल्लेख एक जीवन्त व्यक्ति के रूप में किया गया है । शूद्रक के नाम पर शुद्रकचरित, शूदकवध एवं विक्रान्तशूद्रक प्रभृति ग्रन्थ प्रचलित है, किन्तु ये उपलब्ध नहीं होते। शूद्रक के विषय में अद्यतन मत इस प्रकार है । शाक