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शाङ्गधरसंहिता]
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[शिवचरित्र बम्पू
इनके पिता का नाम शकल था। वायुपुराण में वेदमित्र शाकल्य को वेदवित्तम कहा गया है, इससे ज्ञात होता है कि शाकल्थ ने ही 'पदपाठ' का प्रणयन किया था। वेद. मित्रस्तु शाकल्यो महात्मा द्विजसत्तमः । चकार संहिताः पञ्च बुद्धिमान् पदवित्तमः ।। ६०।६३ ।
आधारग्रन्थ-व्याकरणशास्त्र का इतिहास भाग १।-५० युधिष्ठिर मीमांसक
शार्ङ्गधरसंहिता-आयुर्वेदशास्त्र का सुप्रसिद्ध ग्रन्थ । इसके रचयिता शाङ्गंधर हैं जिनके पिता का नाम दामोदर था। ग्रन्थ का रचना काल १२ वीं शताब्दी के भासपास है। यह ग्रन्थ तीन खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड के विवेच्य विषय हैं-औषध ग्रहण करने का समय, नाड़ीपरीक्षा, दीपनपाचनाध्याय, कल्कादिविचार, सृष्टिक्रम तथा रोगगणना। मध्यम खण्ड में निम्नांकित विषय हैं-श्वास, क्वाथ, फांट, हिम, कल्क, चूर्ण, गुग्गुल, अवलेह, आसव, धातुओं का शोधन तथा मारण, रसशोधन-मारण एवं रसयोग। इसमें औषधिनिर्माण की प्रक्रिया तथा प्रसिद्ध योगों का भी निदर्शन है । तृतीय खण्ड के वर्णित विषय हैं-स्नेहपानविधि, स्वेदविधि, वमनविधि, विरेचनाध्याय, वस्ति, निरूहवस्ति, उत्तरवस्ति, नस्य, गण्डूष, कवल, धूमपान, लेप, अभ्यंग, रक्तस्रावविधि तथा नेत्रकर्मविधि। इस पर दो संस्कृत टीकायें उपलब्ध हैंआढमल्लकृत 'दीपिका' तथा काशीराम वैद्य रचित 'गूढार्थदीपिका'। आढमल्ल का समय १३ वीं शताब्दी है । शाङ्गंधरसंहिता के कई हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं । सुबोधिनी हिन्दी टीका-चौखम्बा प्रकाशन ।
आधारग्रन्थ-आयुर्वेद का बृहत् इतिहास-श्री अत्रिदेव विद्यालंकार।
शिङ्गभूपाल-नाट्यशास्त्र एवं संगीत के आचार्य। इन्होंने 'रसाणवसुधाकर' नामक प्रसिद्ध नाट्यशास्त्रीय ग्रन्थ की रचना की है । इनका समय १४ वीं शताब्दी है । इन्होंने अपने ग्रन्थ में अपना परिचय दिया है जिसके अनुसार ये रेचल्ल वंश के राजा थे और विन्ध्याचल से लेकर श्रीबेल पवंत तक इनका राज्य था। ये शूद्र थे और इनकी राजधानी का नाम 'राजाचल' था। 'रसाणवसुधाकर' का प्रचार दक्षिण भारत में अधिक है। इसकी पुष्पिका में लेखक ने अपना परिचय इस प्रकार दिया है-इति श्रीमन्दान्ध्रमण्डलाधीश्वरप्रतिगुणभैरवश्री अन्नप्रोतनरेन्द्रनन्दनभुजबलभीमशिङ्गभूपालविर. चिते रसाणवसुधाकरनाम्नि ग्रन्थे नाट्यालंकाररब्जकोल्लासो नाम प्रथमो विलासः । शिङ्गभूपाल ने 'सङ्गीतरत्नाकर' नामक संगीतशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रन्थ की टीका भी लिखी है जिसका नाम संगीतसुधाकर है। रसाणवसुधाकर में तीन विलास हैं। प्रथम विलास में ( रजकोल्लास ) नायक-नायिका के स्वरूप, भेद एवं चार वृत्तियों का विवेचन है। द्वितीय विलास का नाम रसिकोझास है। इसमें रस का विस्तृत विवेचन है। तृतीय विलास को भावोहास कहते हैं। इसमें रूपक की वस्तु का वर्णन है।
आधारग्रन्थ-भारतीय साहित्यशास्त्र भाग १-आ० बलदेव उपाध्याय।
शिवचरित्र चम्पू-इस चम्पू-काव्य के प्रणेता कवि वादिशेखर हैं। इसमें कवि ने भगवान शंकर के महनीय कार्यों का वर्णन किया है। इसकी मद्रास वाली प्रति तीन आश्वासों में प्राप्त होती है और तृतीय आश्वास भी मध्य में खण्डित है । इसमें