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शान्तिदेव ]
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[ शारदातनय
आपने अत्यन्त सरल शैली में विषय का प्रतिपादन किया है । 'लोके येष्वर्थेषु प्रसिद्धानि पदानि तानि सति संभवे तदर्थान्येव सूत्रेष्वित्यवगन्तव्यम् । नाध्याहारादिभिरेषां परिकल्पनीयोऽर्थः परिभाषितव्यो वा । अन्यथा इति प्रयत्नगौरवं प्रसज्यते ।" शावर भाष्य १|१|१ | यह शैली आडम्बरहीन भाषा का अपूर्व रूप उपस्थित करती है । शबरस्वामी ने मीमांसा दर्शन को स्वतन्त्र दार्शनिक विचारधारा के रूप में प्रतिष्ठित कर भारतीय आत्मवाद, वेदों की प्रामाणिकता, धर्म एवं कर्मकाण्ड की महत्ता तथा हिन्दू वर्ण व्यवस्था की रक्षा की ।
आधारग्रन्थ - क. इण्डियन फिलॉसफी, भाग २ - डॉ० राधाकृष्णन् । ख. मीमांसादर्शन - पं० मंडन मिश्र । ग. भारतीयदर्शन - आ० बलदेव उपाध्याय ।
शान्तिदेव - बौद्ध दर्शन के शून्यवादी आचार्यों में शान्तिदेव आते हैं । ये सौराष्ट्रनरेश कल्याणवर्मन् के पुत्र थे तथा तारादेवी द्वारा प्रोत्साहित होकर बौद्ध धर्म में दीक्षित हुए थे | इन्होंने नालन्दा विहार के पण्डित जयदेव से दीक्षा ली थी। इनके तीन ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं । १. शिक्षा - समुच्चय- इसमें कुल २६ कारिकायें हैं तथा महायान के आचार एवं आदर्श का वर्णन है। स्वयं लेखक ने इस पर विस्तृत व्याख्या लिखी है । इसमें ऐसे ग्रन्थों ( महायान के ) उद्धरण प्राप्त होते हैं जो सम्प्रति नष्ट हो चुके हैं : २. बोधिचर्यावतार - इसमें लेखक ने षट्पारमिताओं का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया है। इसमें कुल नौ परिच्छेद हैं तथा अन्तिम परिच्छेद में शून्यवाद का निरूपण है । इनकी तीसरी रचना का नाम ' सूत्र समुच्चय' है । शून्यवाद के लिए दे० बौद्धदर्शन |
आधारग्रन्थ बौद्धदर्शन
-आ० बलदेव उपाध्याय ।
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शान्तरक्षित बौद्धदर्शन के माध्यमिक सम्प्रदाय के आचार्यों में शान्तरक्षित का नाम आता है । इनका समय अष्टम शतक है। इन्होंने ७४९ ई० में तिब्बत के राजा का आमन्त्रण प्राप्त कर वहीं सम्मे नामक बिहार का स्थापन किया था और वहीं १३ वर्षों तक रहे । ७६२ ई० में इन्हें तिब्बत में ही निर्वाण प्राप्त हुआ था । सम्बे बिहार तिब्बत का प्रथम बौद्ध विहार माना जाता है। इनकी एकमात्र रचना 'तत्त्वसंग्रह' है जिसमें ब्राह्मण एवं अन्य सम्प्रदाय के मतों का खण्डन किया गया है । इस पर इनके शिष्य कमलशील द्वारा रचित टीका भी प्राप्त होती है । इसमें लेखक का प्रकाण्ड पाण्डित्य एवं प्रतिभा का दिग्दर्शन होता है । माध्यमिक सम्प्रदाय के लिए दे० बोद्ध-दर्शन ।
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आधारग्रन्थ बौद्ध दर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय ।
शारदातनय - नाट्यशास्त्र के आचार्य । इनका समय तेरहवीं शताब्दी का मध्य चरण है । इन्होंने 'भावप्रकाशन' नामक ग्रन्थ की रचना की है जिसमें दस अधिकार ( अध्याय ) हैं । इसमें वर्णित विषयों की सूची इस प्रकार है - १ भाव, २ रसस्वरूप, ३ रसभेद, ४ नायक-नायिका, ५ नायिकाभेद, ६ शब्दार्थसम्बन्ध, ७ नाट्येतिहास, दशरूपक, ९ नृत्यभेद तथा ८ नाट्यप्रयोग । इस ग्रन्थ के निर्माण में भोजकृत 'शृङ्गार
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