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व्यास]
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[व्यास
नाम नहीं, वह एक पदवी है अथवा अधिकार का नाम है। जब जो ऋषि-मुनि वेदसंहिता का विभाजन या पुराण का संक्षेप कर ले वही उस समय व्यास या वेदव्यास कहा जाता है। किसी समय वशिष्ठ और किसी समय पराशर आदि भी व्यास हुए। इस अट्ठाईसवें कलियुग के व्यास कृष्णद्वैपायन हैं। उनके रचित या प्रकाशित ग्रन्थ बाज पुराण के नाम से चल रहे हैं।' इस कथन से प्रतीत होता है कि व्यास एक उपाधि थी जो वेदों एवं पुराणों के वर्गीकरण, विभाजन एवं संपादन के कारण प्रदान की जाती थी। आचार्य शंकर ने व्यास के संबंध में एक नवीन मत की उद्भावना की है। 'वेदान्तसूत्रभाष्य' में इनका कहना है कि प्राचीन वेदाचार्य अपान्तरतमा ही बाद में ( द्वापर एवं कलियुग के सन्धिकाल में ) भगवान् विष्णु के आदेश से कृष्णद्वैपायन के रूप में पुनरुद्भूत हुए थे। कृष्णद्वैपायन व्यास के संबंध में अश्वघोष ने तीन तथ्य प्रस्तुत किये हैं-क-इन्होंने वेदों को पृथक्-पृथक् वर्गों में विभाजित किया। ख-इनके पूर्वज वसिष्ठ तथा शक्ति थे। ग-ये सारस्वतवंशीय थे तथा इन्होंने वेद-विभाजन जैसा दुस्तर कार्य सम्पन्न किया था। महाभारत में भी कृष्णद्वैपायन को व्यास कहा गया है जोर इन्हें वेदों का वर्गीकरण करने वाला माना गया है-व्यासं वसिष्ठनप्तारं शक्तेः पोत्रम कल्मषम् । पराशरात्मजं बन्दे शुकतातं तपोनिधिम् ॥ व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे । नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नमः ॥ भीष्मपर्व ।
इन्हीं कृष्णद्वैपायन का नाम वादरायण व्यास भी था। इन्होंने अपने समस्त मान की साधना बदरिकाश्रम में की थी, अतः ये वादरायण के नाम से प्रसिद्ध हुए। ब्यास. प्रणीत 'वेदान्तसूत्र' भी 'बादरायणसूत्र' के ही नाम से लोक-विश्रुत हुआ है। इनका अन्य नाम पाराशयं भी है। इससे ज्ञात होता है कि इनके पिता का नाम पराशर था। मलबेरूनी ने भी इन्हें पराशर का पुत्र कहा है और पैल, वैशम्पायन, जैमिनि तथा सुमन्तु नामक इनके चार शिष्यों का उल्लेख किया है, जिन्होंने क्रमशः ऋग , यजु, साम एवं अपर्ववेद का अध्ययन किया था। पाणिनि कृत 'अष्टाध्यायी' में 'भिक्षुसूत्र' के रचयिता पाराशयं व्यास ही कहे गए हैं। 'भिक्षुसूत्र' 'वेदान्तसूत्र' का ही अपर नाम है। कृष्णद्वैपायन की जीवनी सम्प्रति उपलब्ध होती है। वशिष्ठ के पुत्र शक्ति थे और शक्ति के पुत्र पराशर । इन्हीं पराशर के पुत्र व्यास हुए और व्यास के पुत्र का माम शुकदेव था जिन्होंने राजा परीक्षित को भागवत की कथा सुनाई थी। पराशर का विवाह सत्यवती से हुआ था। जिसका नाम मत्स्यगन्धा या योजनगन्धा भी था। इसी से व्यास का जन्म हुआ था। महाभारत के शान्तिपर्व में इनका निवासस्थान उत्तरापथ हिमालय बताया गया है। व्यास प्रथम व्यक्ति हैं जिन्होंने भारतीय विद्या को चार संहिताबों एवं इतिहास के रूप में विभाजित किया था। ये महान दार्शनिक एवं उच्चकोटि के कवि थे इनकी रचनावों में 'महाभारत' एवं 'श्रीमदभागवत' प्रसित है, [दे. महाभारत श्रीमद्भागवत ] । अनेक प्राचीन ग्रन्थों में व्यास की प्रशस्तियां प्राप्त होती हैं-१. मयंयन्त्रेषु चैतन्यं महाभारतविद्यया। अपंयामास तत्पूर्व यस्तस्मै मुनये नमः ॥ अवन्ती सुन्दरी कथा ३ । २. प्रस्तावनादिपुरुषो रघुकौरववंशयोः । बन्दे बाल्मीकिकानीनी सूर्याचन्द्रमसाविव ॥ तिलकमंजरी २० । ३. नमः सर्वविदे तस्मै