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सुयोधन राजाकी कथा ।
की, पर राजाने उस कहानीका सच्चा मतलब न समझा। यमदड घर चला गया। इस तरह उसका दूसरा दिन बीता। . जब तीसरे दिन यमदंड आया तो राजाने फिर उससे पूछा कि यमदंड, चोरका पता पाया क्या? वह बोलामहाराज, नहीं । तब राजा बोला-फिर इतनी देर कहाँ लगी? वह बोला-महाराज रास्ते एक आदमी एक कहानी कह रहा था, मैं उसे सुनने लग गया, इससे देर हो गई । राजा बोला-वह कहानी मुझे भी तो सुना । यमदंड बोलामहाराज, सुनिए-पांचाल देशमें बरशक्ति नामका एक नगर है। उसमें सुधर्म नामका एक राजा था। वह बड़ा ही धर्मात्मा
और जिनमतके अनुसार चलनेवाला था । उसकी रानी जिनमति भी उसीकी तरह धर्मात्मा थी।
राजमंत्रीका नाम जयदेव था। मंत्रीकी स्त्रीका नाम विजया था। ये दोनों श्रावकके व्रतोंको पालते थे । इस प्रकार राजा सुखसे राज्य करता था । एक दिन सभामें बैठे हुए राजाके पास आकर एक गुप्तचरने कहा-महाराज, आपका शत्रु महाबल प्रजाको बड़ा ही कष्ट देता है । राजा कहने लगा-जबतक मैं नहीं पहुँचता तबतक वह ऐसे उपद्रव भले ही मचाले । पीछे मैं उसे देख लूँगा । राजाने और भी कहा-मैं बिना कारण किसी पर हथियार नहीं बाँधता । लेकिन हाँ जो युद्धमें सामने आता है, जो देशका कंटक है, जो देशद्रोही है, उसका निराकरण तो राजाको अवश्य
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