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कनकलताकी कथा ।
खानेका भी त्याग किया। ग्रन्थकार कहते हैं-गुणवानके संसर्गसे गुणहीन भी गुणी हो जाता है । थोड़ीसी सुगंध सारे घरको सुगन्धित कर देती है।
उमयकी बहिनने जब सुना कि उमयने व्यसनोंको छोड़ दिया-अब वह सदाचारी हो गया, तब वह बड़े आदरसे उसे अपने घर पर लाई और बहुतसा धन भी उसने उसे दिया। यह ठीक ही है, क्योंकि सुमार्ग पर चलनेवालेकी पशु भी सहायता करते हैं, और कुमार्गीको सगा भाई,भी छोड़ देता है। सच्चरित्र मनुष्यों पर आई हुई विपत्ति बहु दिनोंतक नहीं ठहरती। क्योंकि हार्थोके आघातसे गिरा गेंद फिर भी उठता
एक दिन उज्जैनके कुछ व्यापारी कौशाम्बीमें आये । उन्होंने उमयको सदाचारी देखकर उसकी बड़ी प्रशंसा की
और कहा-भाई, तू धन्य है। अच्छा हुआ जो तुझे ऐसी उत्तम संगति मिल गई, जिससे तू ऐसा योग्य बन गया । क्योंकि उत्तम, मध्यम और जघन्य गुणोंकी प्राप्ति उत्तम, मध्यम और जघन्य मनुष्योंकी संगतिसे ही हुआ करती है । देख, गरम लोहे पर पानी पड़नसे उसका नाम निशान भी नहीं रहता, पर कमलके पत्ते पर पड़ा हुआ वही पानी मोती जैसा दिखाई देने लगता है और वही पानी यदि स्वाति नक्षत्रमें समुद्रकी सीपमें पड़ जाय तो मोती ही बन जाता है । उमय, तुम्हें धर्मात्मा देखकर हमें बड़ी प्रसन्नता होती है ।
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