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विद्युल्लताकी कथा ।
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छोटा होता है, पर तारीफ उसीकी होती है । संभुक्त बालबधू यद्यपि शिथिल हो जाती है, पर सुन्दर गिनी जाती है। दाताओंका धन याचकोंको दान देनेसे घट जाता है, पर संसारमें उस दाताकी सब ही प्रशंसा करते हैं । कहनेका सार यह कि दुबला-पतला पन भी बुरा नहीं है । यह विचार कर राजाने अपने योद्धाओंसे कहा-जो कोई इस घोड़ेको लाकर मुझे देगा उसे मैं अपना आधा राज्य दूंगा
और राजकुमारीको उसके साथ ब्याह दूंगा । नीतिकार कहते हैं-नीच मनुष्योंकी बुद्धि नीच कामोंमें बड़ी जल्दी स्फुरायमान होती है । उल्लुओंको अँधेरेहीमें दिखाई देता है । अस्तु । राजाकी यह बात सुनकर सब सुभटोंने अपने अपने मुँह नीचे कर लिये-किसीकी हिम्मत 'हाँ' करनेकी न हुई । परन्तु उनमेंसे कुन्तल नामके एक सुभटने आगे बढ़कर कहा-महाराज, मैं इस घोड़ेको लाने जाता हूँ।
राजाके सामने ऐसी प्रतिज्ञा कर कुन्तल चला गया। उसने घोड़ेकी प्राप्तिके लिए सेठके घरमें प्रवेश करनेके कई उपाय किये, पर उसे सफलता किसीमें न हुई । इससे उसे बड़ा कष्ट हुआ । आखिर उसे एक युक्ति सूझ गई। वह जैनी हो गया और एक गाँवमें कुछ दिनोंतक किसी मुनिके पास रहकर कपटसे कुछ थोड़ा बहुत लिख-पढ़ कर झूठा ही जैनधर्मका श्रद्धानी बन ब्रह्मचारी हो गया । अब वह सचित्त वस्तुओंका त्याग कर मासुक आहार लेने
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