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विद्युल्लताकी कथा ।
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करनेके लिए अचिन्त्यगति और मनोगति नामके दो चारण ऋद्धिधारी मुनिराज वहाँ आये । इसी समय वहीं आये हुए एक विद्याधरोंके राजाने उस घोड़ेको भगवान के सामने खड़ा देख अचिन्त्यगति मुनिकी वन्दना कर उनसे उस घोड़ेका हाल पूछा-मुनिराजने अवधिज्ञानसे घोड़ेका सब हाल विद्याधरसे कहकर कहा-राजन्, इस घोड़ेके कारण सूरदेव सेठ पर इस समय बड़ी भारी आपत्ति आई है । इस लिए तुम इसे पुचकार कर और हाथोंसे तीन वार इसकी पीठ ठोककर इस पर चढ़ सेठके पास जल्दी पहुँचो, जिससे उसका उपसर्ग टल जाय ।
नीतिकारने लिखा है-नष्ट-भ्रष्ट हुए कुलका, कुएका तलाव-बावड़ीका, राज्यका, अपनी शरणमें आये हुए लोगोंका, ब्राह्मणका, धर्मात्माओंका और जीर्ण-शीर्ण मन्दिरोका जो उद्धार करता है-इनकी रक्षा करता है उसे चौगुना. पुण्यबन्ध होता है।
मुनिराजके बचनोंको सुनकर वह विद्याधर-सम्राट् घोड़े पर सवार हो जबतक कौशाम्बीमे पहुँचता है, उसके पहले वहाँ जो घटना हुई, उसका वृत्तान्त लिखा जाता है ।
इधर सूरदेवने सोतेसे उठते ही सुना कि घोड़ा चला गया। उसे बड़ी चिन्ता हुई। वह बोला-मायावियोंके प्रपंचोंको कोई नहीं जान पाता । आज मेरे बड़ा ही अशुभ कर्मका उदय आया । घोड़ेके लिए राजा जरूर ही मेरा सिर कटवा
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