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विद्युल्लताकी कथा ।
जमाना है, जो न हो जाय सो थोड़ा है । इसके बाद सेट चैत्यालयमें गया और भगवान्की वन्दना कर प्रार्थना करने लगा-हे दीनबन्धो, अब मैं तभी आहार-पानी ग्रहण करूँगा जब कि मेरा यह उपसर्ग टलेगा। ऐसी प्रतिज्ञा कर सेठ जिनेन्द्र भगवान के सामने संन्यास धारण कर बैठ गया।
इधर राजाने घोड़ेका हाल सुना तो उसे बड़ा क्रोध आया। वह बोला-सूरदेवका सिर कटवा डालना चाहिए। पासमें बैठे हुए लोगोंने भी राजाकी हाँमें हाँ मिलादी। सो यह ठीक ही है, जैसा राजा वैसी ही प्रजा होती है। राजाने यमदंडको बुलाकर आज्ञा दी कि मेरे शत्रु सूरदेवका सिर काट कर जल्दी मेरे पास ला । क्योंकि धर्मकार्यके प्रारंभ करनेमें, ऋण चुकानेमें, कन्याका विवाह करनेमें, धन कमानेमें, आग बुझानेमें, रोग दूर करनेमें और शत्रुका वध करनेमें विलंब करना ठीक नहीं।
राजाकी आज्ञा पाकर यमदंड नंगी तलवार लिए चला। सूरदेवका सिर काटनेके लिए उसने तलवार उठाई कि इतनेमें उसे शासनदेवताने वहाँका वहीं कील दिया ।
इसी मौके पर वह विद्याधर भी उस घोड़े पर चढ़ा हुआ सरदेवके पास चैत्यालयमें आ पहुँचा और तीन प्रदक्षिणा देकर जिनेन्द्र भगवान के सामने खड़ा हो गया। देवोंने सूरदेवके व्रतका प्रभाव देखकर पंचाश्चर्य किये । यह सबवृतान्त सुनकर राजाने कहा-सचमुच धनसे बड़े बड़े अनर्थ हो जाते हैं । देखिए, धनहीके कारण भरतराज अपने छोटे
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