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सम्यक्त्व-कौमुदी
भाई बाहुबलिसे लड़े थे, उनके मारनेकी उन्होंने चेष्टा की थी। ऐसा विचार कर सुदंड राजा उसी समय चैत्यालयमें आया और हाथ जोड़कर सेठसे बोला-सेठजी, मैंने अज्ञानसे बड़ी भूल की है। मुझे क्षमा कीजिए । सूरदेवने राजाको उचित उत्तर देकर संतुष्ट किया। ___ इसी बीचमें एक आदमीने सेठसे कहा-सेठजी, आपकी मृत्यु तो आ पहुँची थी, पर भाग्यसे आप बच गये । सेठने कहा-मैं मर भी जाता तो कोई आश्चर्य न था । क्योंकि मृत्युसे कौन नहीं मरा? देखो, सुवेल नामका पर्वत जिसका अभेद्य किला था, समुद्र जिसकी खाई थी, कुबेर जिसके खजानेकी रक्षा करता था, मुँहमें जिसके संजीवनी विद्या थी, वह रावण भी जब मृत्युसे नहीं बच सका तब साधारण लोगोंकी क्या चली ? सेठके इस प्रभावको देखकर सब लोगोंने उसकी बड़ी प्रशंसा की। राजाने कहा-जैनधर्मको छोड़कर दूसरे धर्ममें ऐसा चमत्कार नहीं । यह विचार कर उसने अपने राजकुमारको राज्य दे सुमति मंत्री, मुरदेव, सागरदत्त एवं और बहुतसे लोगों के साथ जिनदत्त मुनिराजके पास दीक्षा ग्रहण करली। कुछ लोगोंने श्रावकोंके व्रत लिये । कुछ लोगोंके परिणामोंमें इस वृत्तान्तके देखनेसे सरलता आई। इधर विजया रानी, मंत्रिपत्नी गुणश्री, मुरदेवकी स्त्री गुणवती तथा और बहुतसी स्त्रियोंने अनन्तश्री आर्यिकाके पास दीक्षा ग्रहण की। कुछ स्त्रियोंने श्रावकोंके व्रत लिये।
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