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सम्यक्त्व - कौमुदी -
वह तो गर्व करता ही नहीं तब हम अल्पज्ञोंकी तो बात ही क्या चली? अहंकार से सब गुणोंका नाश हो जाता है । इसलिए गुण चाहनेवालेको अहंकार कभी न करना चाहिए ।
इसके बाद सूरदेवने कुन्तलको बड़ी भक्ति से आहार कराया और उसके रहने के लिए अपने घरहीमें जहाँ वह घोड़ा बँधा करता था उसके पास ही एक एकान्त स्थानमें जगह देदी । और स्वयं सेठ उसकी सेवा-शुश्रूषा करने लगा । कुन्तल भी सेठको प्रतिदिन धर्मोपदेशसे सन्तुष्ट किया करता था। कभी कभी कुन्तल सेठसे कहता - सेठजी, आप बड़े धर्मात्मा हैं, जो जिन भगवान्के उपदेश किये गृहस्थोंके षट्कर्म - देवपूजा, गुरु- सेवा स्वाध्याय, संयम, तप, और दान आदिको निरन्तर करते रहते है । और इसीलिए मुनि जन भी आपके यहाँ आहार के लिए आया करते हैं ।
एक दिन सुरदेव रातको सो रहा था। उसे गाढ़ निद्राके वश देख कुन्तलने अपनी घात लगाई । घोड़े पर सवार हो वह आकाशमार्ग से चल दिया। घोड़ा और अधिक वेगसे चले, इसके लिए उसने घोड़ेको एक जोरका चाबुक जमाया। घोड़ा उस मारको न सह सका । सो उसने उसे गिरा दिया । कुन्तल मर गया । घोड़ा पहलेके अभ्यास से विजयार्द्ध पर्वत पर सिद्धकूट चैत्यालय में आगया और चैत्यालयकी तीन प्रदक्षिणा देकर भगवानके सामने खड़ा हो गया । इतनेही में सिद्धकूट चैत्यालयकी वन्दना
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